युवा पीढ़ी को सड़क हादसों में गले लगाती मौत

By: Mar 21st, 2018 12:10 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में 90 फीसदी सड़क हादसे मानवीय चूक के चलते होते हैं। ज्यादातर मामलों में कॉमन ड्राइविंग सेंस की कमी, रैश ड्राइविंग, नशा करके ड्राइविंग, लापरवाहीयुक्त ड्राइविंग, ओवरलोडिंग और यातायात नियमों की अवहेलना इत्यादि कारणों से दिन-प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है…

हिमाचल प्रदेश में रोजाना समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते सड़क हादसों में होती युवाओं की मौत ने कई परिवारों का सुख-चैन छीन लिया है। कोई दिन खाली नहीं गुजरता जब शाम ढलते-ढलते तीन-चार युवा सड़क हादसों का शिकार होकर मौत का ग्रास न बनते हों। आखिरकार हिमाचल प्रदेश में जगह- जगह सड़कों के किनारों पर और कितने हनुमान मंदिर स्थापित करवाए जा सकते हैं, जो संभावित सड़क दुर्घटनाओं की रफ्तार को थाम लें। मनुष्य के रूप में प्राप्त देह रूपी जीवन एक दुर्लभ ईश्वरीय उपहार है, जो हमें पट्टे अर्थात लीज पर मिली जमीन की तरह एक निश्चित अवधि के लिए मिला है। लेकिन अधिकांशतः हमारी युवा पीढ़ी अपनी अज्ञानता, नादानी, उतावलेपन और जागरूकता के अभाव में इसी सुंदर जीवन को दांव पर लगा बैठती है। बैजनाथ उपमंडल के पपरोला कस्बे से ताशिजोंग के आधा किलोमीटर के दायरे में पिछले एक साल के भीतर हुए विभिन्न सड़क हादसों में 6 युवाओं की दर्दनाक मौतें विचलित करने वाली हैं। अभी 12 मार्च को तेज गति से स्कूटी चलाते हुई दुर्घटना में एक युवा तिब्बती की मौत दिल दहलाने वाली है। पूरे हिमाचल की क्या तस्वीर होगी, इसकी सहज कल्पना ही की जा सकती है। इस समय हिमाचल की अनुमानित जनसंख्या 73 लाख 80 हजार के करीब है। मेट्रो शहरों की तर्ज पर हमारे यहां की जीवनशैली भी अब धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती जा रही है।

ऊपर से युवाओं द्वारा नशा करके लापरवाहीपूर्वक तेजगति से वाहन चलाना उनके साथ-साथ राहगीरों की जिंदगियों पर भी भारी पड़ रहा है। सड़कों, गलियों और बाजारों की चौड़ाई पहले की तरह जस की तस है, लेकिन आबादी के साथ- साथ वाहनों की तादाद भी बड़ी है, तो ऊपर से निराश्रित पशु भी सड़कों पर आ चुके हैं। आजकल की युवा पीढ़ी में हाई-फाई फैशनेबल बाइक्स खरीदने का इतना प्रचलन बढ़ गया है कि ये बच्चे अपने मां-बाप से महंगी मोटरसाइकिलें खरीदने की जिद्द करते हैं, धमकियां देते हैं और कई मामलों में अपनी जान तक भी दे देते हैं। मां-बाप के लिए तो परिस्थितियां ऐसे बन चुकी हैं जैसे आगे कुआं पीछे खाई। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में कुल 5 लाख 1423 सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 46 हजार 233 लोगों की मौतें हुई थीं। सेव लाइफ फाउंडेशन के अनुसार सड़क हादसों में सर्वाधिक मौतें युवाओं की होती हैं। 33 फीसदी मौत के गाल में समाने वाले युवाओं की औसत आयु 18 से 30 वर्ष के बीच थी। दुनिया के कुल वाहनों का मात्र एक प्रतिशत भारत में है, लेकिन वैश्विक सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों में हमारी हिस्सेदारी 15 फीसदी है। ज्यादातर मामलों में 80 प्रतिशत पीडि़तों को आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं ही नहीं मिल पाती हैं। एनसीआरबी के अनुसार ज्यादातर मामलों में दुर्घटनाएं दोपहिया वाहन चालकों द्वारा होती हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा ने मार्च 2010 में सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ती मौतों का संज्ञान लेते हुए वर्ष 2011 से 2020 की अवधि कोश डिकेड ऑफ एक्शन फॉर रोड सेफ्टी घोषित किया था, ताकि सड़क सुरक्षा को लेकर जागरूकता कार्यक्रमों द्वारा लोगों को संवेदनशील बनाया जा सके। इसमें सरकारों से भी यह उमीद की गई है कि वे ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने से पहले ड्राइविंग सिखलाने के नियमों का सख्ती से अनुपालन करवाए तथा सभी विभागों के तालमेल से नए वाहन चालकों को यातायात संबंधी नियमों के बारे में जरूरी मार्गदर्शन करने के बाद ही सड़क पर वाहन चलाने की अनुमति दी जाए। अकेले हिमाचल में रैश ड्राइविंग और खस्ताहाल सड़कों के कारण पिछले 9 महीनों में 866 लोग अपनी कीमती जानें गंवा बैठे हैं। अधिकांश जगहों पर अभी भी स्टील क्रैश बैरियर्स नहीं लगे हैं। सड़कें चौड़ी नहीं हैं। सड़कों पर गढ्ढे हैं। विजिबिलिटी कम है और तीखे मोड़ हैं। बिना हेल्मेट, सीट बैल्ट बांधे बिना बिगड़ैल वाहन चालकों, जिनमें प्राइवेट बस चालक भी शामिल हैं, बढ़ते सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार हैं। छोटे थ्री व्हीलर्स, जीपों और ट्रकों में ओवरलोडिंग एवं निजी बसों की रूट में आपसी होड़ भी सड़क दुर्घटनाओं के लिए उत्तरदायी है। सड़कों पर नाममात्र के ट्रैफिक पुलिस कर्मियों और चालान इत्यादि का भय न होने के कारण भी युवा एवं बिगडै़ल वाहन चालकों के हौसले बुलंद रहते हैं।

हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2016 की अवधि में 3168 सड़क दुर्घटनाओं में 1271 लोग मारे गए थे, जबकि एक्सिडेंट क्लेम एक्सपर्ट के आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2015 में कुल 3010 सड़क हादसों में 1096 लोग मरे थे और 5108 घायल हुए थे। एक्सिडेंट क्लेम एक्सपर्ट संस्था सड़क-रेल दुर्घटनाओं में प्रभावितों को नो विन-नो फीस अनुबंध के तहत न्यायिक सेवाएं भी उपलब्ध करवाती है। 108 राष्ट्रीय एंबुलेंस सेवा के पास उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में 682 ब्लैक स्पॉट हैं, जो बड़े सड़क हादसों को न्योता देते हैं। 2011 से आज तक 108 एनएएस को प्राप्त 8 लाख, 67 हजार, 763 आपातकालीन फोन कॉल्स में से 49 हजार 430 कॉल्स सड़क दुर्घटनाओं को लेकर थीं। आज की तारीख में 108 राष्ट्रीय एंबुलेंस सेवा की आपातकालीन सेवाएं किसी देवदूत से कम नहीं हैं। 2011 के बाद से लेकर आज तक इनके द्वारा 70 हजार 860 के लगभग कीमती जानें बचाई गईं हैं।

हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में 90 फीसदी सड़क हादसे मानवीय चूक के चलते होते हैं। ज्यादातर मामलों में कॉमन ड्राइविंग सेंस की कमी, रैश ड्राइविंग, नशा करके ड्राइविंग, लापरवाहीयुक्त ड्राइविंग, ओवरलोडिंग और यातायात नियमों की अवहेलना इत्यादि कारणों से दिन-प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। जिला स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति की ऊना और कांगड़ा की बैठकों में इन जिलों के उपायुक्तों ने लोगों को सड़क सुरक्षा कानूनों को पढ़ाने के पुलिस प्रशासन को निर्देश दिए हैं। पुलिस एवं यातायात पुलिस विभाग को स्कूल तथा कालेज में लगातार जागरूकता शिविर आयोजित कर किशोर एवं युवाओं को यातायात नियमों के बारे में जागरूक करने की नितांत आवश्यकता है। युवाओं को भी अपनी अनमोल जिंदगी की कीमत समझनी चाहिए, तभी सड़क हादसे कुछ हद तक कम हो सकते हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App