रावण से जुड़े रहस्यों में है रोमांच ही रोमांच

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

जब रावण युद्ध में हार रहा था और अपनी तरफ से अंतिम शेष प्राणी जब वही बचा था, तब रावण ने यज्ञ करने का निश्चय किया जिससे तूफान आ सकता था, लेकिन यज्ञ के लिए उसको पूरे यज्ञ के दौरान एक जगह बैठना जरूरी था। परंतु वह ऐसा नहीं कर पाया…

-गतांक से आगे…

आपने रावण के 10 सिरों की कहानियां सुनी होंगी। इसमें दो प्रकार के मत हैं। एक मत के अनुसार रावण के दस सिर नहीं थे जबकि वह केवल 9 मोतियों की एक माला से बना भ्रम था जिसको उसकी माता ने दिया था। दूसरे मत के अनुसार जब रावण शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप कर रहा था, तब रावण ने खुद अपने सिर को धड़ से अलग कर दिया था। जब शिवजी ने उसकी भक्ति देखी तो उससे प्रसन्न होकर हर टुकड़े से एक सिर बना दिया था जो उसके दस सिर थे। शिवजी ने ही रावण को रावण नाम दिया था। ऐसा कथाओं में बताया जाता है कि रावण शिवजी को कैलाश से लंका ले जाना चाहता था, लेकिन शिवजी राजी नहीं थे तो उसने पर्वत को ही उठाने का प्रयास किया। इसलिए शिवजी ने अपना एक पैर कैलाश पर्वत पर रख दिया जिससे रावण की अंगुली दब गई। दर्द के मारे रावण जोर से चिल्लाया, लेकिन शिवजी की ताकत को देखते हुए उसने शिव तांडव किया था। शिवजी को यह बहुत अजीब लगा कि दर्द में होते हुए भी उसने शिव तांडव किया तो उसका नाम रावण रख दिया जिसका अर्थ था जो तेज आवाज में दहाड़ता हो। जब रावण युद्ध में हार रहा था और अपनी तरफ से अंतिम शेष प्राणी जब वही बचा था, तब रावण ने यज्ञ करने का निश्चय किया जिससे तूफान आ सकता था, लेकिन यज्ञ के लिए उसको पूरे यज्ञ के दौरान एक जगह बैठना जरूरी था। जब राम जी को इस बारे में पता चला तो राम जी ने बाली पुत्र अंगद को रावण के यज्ञ में बाधा डालने के लिए भेजा। कई प्रयासों के बाद भी अंगद यज्ञ में बाधा डालने में सफल नहीं हुआ। तब अंगद इस विश्वास से रावण की पत्नी मंदोदरी को घसीटने लगा कि रावण यह देखकर अपना स्थान छोड़ देगा,  लेकिन वह नहीं हिला। तब मंदोदरी रावण के सामने चिल्लाई और उसका तिरस्कार किया। उसने राम जी का उदाहरण देते हुए कहा कि एक राम है जिसने अपनी पत्नी के लिए युद्ध किया और दूसरी तरफ आप हैं जो अपनी पत्नी को बचाने के लिए अपनी जगह से नहीं हिल सकते। यह सुनकर अंत में रावण उस यज्ञ को पूरा किए बिना वहां से उठ गया था। रावण और कुंभकर्ण वास्तव में विष्णु भगवान के द्वारपाल जय और विजय थे जिनको एक ऋषि से मिले श्राप के कारण राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था और अपने ही आराध्य से उनको लड़ना पड़ा था। राम-रावण की बातचीत में एक बार राम जी ने रावण को महा-ब्राह्मण कहकर पुकारा था क्योंकि रावण 64 कलाओं में निपुण था जिसके कारण उसे असुरों में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि रावण महिलाओं के प्रति बहुत जल्द आसक्त होता था। अपनी इसी कमजोरी के कारण जब वह नालाकुरा की पत्नी को अपने वश में करने की कोशिश करता है तो वह स्त्री उसको श्राप देती है कि रावण अपने जीवन में किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श नहीं कर सकेगा वरना उसका विनाश हो जाएगा। यही कारण था कि रावण ने सीता को नहीं छुआ था। हम हमेशा पढ़ते हैं कि रावण ने सीता का हरण किया था, जबकि जैन ग्रंथों की रामायण के अनुसार रावण सीता का पिता था जो हिंदू धर्म के लोगों को बहुत अजीब बात लगती है।


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