विष्णु पुराण

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

अपृथग्धर्म चरणास्तेऽतण्बस्ते महत्तपः।

दशवर्त सहृस्राणि समुद्रसलिलेशयाः।।

यदर्थ तेमहात्मानस्तपस्ते पुर्महामुने।

प्रचेतसः समुद्रांभस्येतदाख्यातुमर्हसि।।

पिता प्रचेतसः प्रोत्ताः प्रजार्थमतितात्मना।

प्रजापतिनियुक्तेन बहुमानपुपरस्रम।।

ब्रह्मणा देवदेवेन समादिष्टोऽस्यह सुताः।

प्रजाः सवर्द्धनीयास्ने मया चोक्त तधैति तत।।

तन्मम प्रीतये पुत्राः प्रजावृद्धिमतान्द्रिताः।

कुरुध्व माननीया वः सम्यगाज्ञा प्रजापतेः।।

ततस्ते यत्पितुः श्रुत्वः वचनं नृपनंदनाः।

तथेत्युक्त्वा च तं भूयः पप्रच्छः पितर मुने।।

येन तता प्रजावृद्धौ सतर्थाः कर्मणा वथम।

भवेम तत समस्त नः कर्म व्यायातुमहसि।।

श्रीमैत्रेयजी ने कहा,  हे महामुने! उन महात्मा प्रचेतागण ने समुद्र में रहकर किस लिए ऐसा तप किया था यह बताने की कृपा कीजए। श्री पराशर जी ने कहा, हे मैत्रेय जी! एक समय प्रचेताओं के पिता महात्मा प्राचीनवर्हि ने प्रजापति की प्रेरणा से उनसे संतानोत्पति के लिए कहा था। प्राचीनवर्हि बोले, हे पुत्रो! देव ब्रह्माजी ने मुझे प्रजा के बुद्धि का आदेश दिया और मैंने भी उनसे स्वीकार कर लिया। इसलिए हे पुत्रो! मेरी प्रसन्नता के लिए प्रजा-बुद्धि का कार्यकारी क्योंकि प्रजापति की आज्ञा तो माननी होगी। श्रीपराशरजी ने कहा हे मुने! उन राजकुमारों ने पिता की आज्ञा स्वीकार करके उनसे पूछा। प्रचेता बोले, हे पिता जी! हम जिस प्रकार प्रजावृद्धिकर सकें। वह भले प्रकार बताइए।

आराध्य वरद विष्णुमिष्टप्राप्तिमसंशयम।

समति नान्यथा मत्य किमन्यत्यकथयामिवः।।

त्तस्माप्प्रजाविबृद्धि यथा सर्व मतप्रभु हरिम।

आरधयत गोविज्दि यदि सिद्धमभीष्ठध।।

धर्ममर्थ च काम च मोक्षं चांविज्छतां सदा।

आराधनीयो भगवानादिपुरुषोत्तमः।।

यस्मिन्नाराधिते सर्ग चकारादो प्रजापतिः।

तमाराध्याच्युत वृद्धिः प्रजानां बो भविष्यति।।

इत्येवमुक्तास्ते पिता पुत्राः प्रचेतसो दश।

मग्नाः पयोधिसलिले तपस्तेषुः समाहिताः।।

दशवर्षसहस्राणि न्यस्तत्रित्ता जगत्पतौ।

नारायणे मुनिश्रेष्ठ सर्वलोकपरायण।।

तत्रैववस्थिता देवमेकाग्रमनसो हरिम।

तुष्टुवुयस्तुतः कामान स्तातुरिष्ठाप्रयच्छति।।

पिता बोले, भगवान विष्णु वर देने वाले हैं, उनकी आराधना करने से अवश्य ही इच्छित वस्तु प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त और क्या कहूं? यदि तुम सफलता की कामना करते हो तो प्रजा की वृद्धि के निर्मित्त सर्व भूतेश्वर श्रीगोविंद की आराधना करो। धर्म, अर्थकाम मोक्ष को चाहने वाले पुरुषों को भगवान विष्णु की सदैव आराधना करनी चाहिए। जिनकी कल्पारंभ में उपासना करके प्रजापति ने इस विश्व की रचना की है, उन्हीं की आराधना करने से प्रजा की वृद्धि होगी। पराशर जी ने कहा कि पिता की इस प्रकार आज्ञा पाकर दसों प्रचेतागण समुद्र के तल में निमग्न रहकर यत्नपूर्वक तपस्या करने लगे। हे मुनिवर! वे लोकश्रय भगवान विष्णु में ध्यान लगाए वहां दस हजार वर्ष तक रहकर उन्हीं की स्तुति करते रहे। वे भगवान अपने स्रोता का सम अभिलाषित प्रदान करते हैं।

स्तव प्रचेतसो विष्णोः समुद्राभ्भांस स स्थिता।

चक्रुस्तन्मे मुनिश्रेष्ठ सुपुण्यं वक्तुमर्हसि।।

श्रृणु मेत्रेय गोविन्द यथापूर्वप्रचेतसः।

तुष्टुवुस्तन्मयोभूताः समुद्रसलिलेशयाः।।

नताः स्म सर्ववचसां प्रतिष्ठा यत्र शाश्वती।

तमाद्यंतमशेषस्य जगतः परमं प्रभुम।।

ज्योतिराद्यमनौरुम्यमण्वनन्तमपारवत।

योनिभूतमशेषस्व स्थावरस्य च।।

 


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