शिवजी : अध्यात्म के किसी अजूबे से कम नहीं

By: Mar 31st, 2018 12:05 am

शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व ऊष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है…

शिवजी या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्त्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हें भैरव के नाम से भी जाना जाता है। ये हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अंतर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिकतर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार हैं। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।

शिव स्वरूप सूर्य

शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व ऊष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।

शिव स्वरूप शंकर जी

पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलियुग तक, एक ही मानव शरीर ऐसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है। वेदो शिवम शिवो वेदम। परमात्मा शिव के इसी स्वरूप द्वारा मानव शरीर को रुद्र से शिव बनने का ज्ञान प्राप्त होता है।

शिव की अष्टमूर्ति

  1. क्षितिमूर्ति-सर्व
  2. जलमूर्ति-भव
  3. अग्निमूर्ति-रुद्र 4. वायुमूर्ति-उग्र
  4. आकाशमूर्ति-भीम
  5. यजमानमूर्ति-पशुपति
  6. चंद्रमूर्ति-महादेव
  7. सूर्यमूर्ति-ईशान

व्यक्तित्व

शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं है। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है। वे स्वयं द्वंद्वों से रहित सह-अस्तित्व के महान विचार का परिचायक हैं। ऐसे महाकाल शिव की आराधना का महापर्व है शिवरात्रि।

पूजन

शिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में करनी चाहिए। शिव को बिल्वपत्र, धतूरे के पुष्प, प्रसाद में भांग अति प्रिय है। इनकी पूजा के लिए दूध, दही, घी, शक्कर, शहद-इन पांच अमृत, जिसे पंचामृत कहा जाता है, इनका उपयोग करें। मूर्ति का पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद इत्र चढ़ा कर जनेऊ पहनाएं। अंत मे भांग का प्रसाद चढाएं। शिव के त्रिशूल और डमरू की ध्वनि मंगल व गुरु से संबद्ध है। चंद्रमा उनके मस्तक पर विराजमान होकर अपनी कांति से अनंताकाश में जटाधारी महामृत्युंजय को प्रसन्न रखता है तो बुधादि ग्रह समभाव में सहायक बनते हैं। महामृत्युंजय मंत्र शिव आराधना का महामंत्र है।

ज्योतिर्लिंग स्थान

पशुपतिनाथ (नेपाल की राजधानी काठमांडू), सोमनाथ मंदिर (सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात), महाकालेश्वर, उज्जयिनी (उज्जैन), कारेश्वर अथवा अमलेश्वर, केदारनाथ मंदिर (रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड), भीमाशंकर मंदिर, निकट पुणे, महाराष्ट्र, काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, नासिक, महाराष्ट्र, रामेश्वरम मंदिर, रामनाथपुरम, तमिलनाडु, घृष्णेश्वर मंदिर, औरंगाबाद, वैद्यनाथ  मंदिर, महाराष्ट्र, नागेश्वर मंदिर, द्वारका, गुजरात, श्रीशैल             श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम (श्री सैलम), आंध्र प्रदेश, रौला केदार नेपाल।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App