शिव के सिर पर आधा चांद क्यों ?

By: Mar 24th, 2018 12:08 am

सोम का अर्थ है चंद्रमा या कोई नशीला रूप। सोम रेखा का अर्थ है तृतीया के दिन यानी तीसरे दिन के चंद्रमा के मार्ग को रेखांकित (जमीन पर बनाना) करना। भारत में यह कथा है कि समुद्र मंथन से अमृत और विष निकला, शिव ने विष पी लिया और बाकी सभी लोग अमृत को पीकर अमर होना चाहते थे। मुख्य रूप से अमृत का अर्थ अमरता से है। इसका मतलब है आपका जीवन-अनुभव भौतिक सीमाओं से परे चला जाता है। अगर जीवन का आपका अनुभव भौतिक से परे चला जाए, तो आप एक तरह से अमर हो जाते हैं। अमरता का अर्थ यह नहीं है कि हमें आपको हमेशा के लिए झेलना पड़ेगा। इसका मतलब है कि हमें आपको बिल्कुल भी नहीं झेलना पड़ेगा क्योंकि आपकी भौतिक प्रकृति समाप्त हो गई है।

परमानंद का प्रतीक चांद

अगर इसे चक्रों के हिसाब से समझना चाहें, तो यह सहस्रार चक्र है। तीसरे दिन का चंद्रमा परमानंद का प्रतीक है और ये परमानंद सहस्रार चक्र से टपका हुआ है। शिव के सहस्रार चक्र से अमृत की तीन बूंदें टपकीं जिसे हर कोई पाना चाहता है। उन्होंने इसे एक आभूषण की तरह अपने सिर पर धारण किया हुआ है। ये महत्त्वपूर्ण है ः इसका मतलब है कि हमेशा परमानंद का एक हल्का सा रंग चढ़ा है, मगर वह उसमें डूबे हुए नहीं हैं। वे कभी-कभी इसमें खो जाते हैं, पर हमेशा हल्का सा परमानंद रहता है। अगर परमानंद का यह स्वाद न हो, तो आप बैठ नहीं सकते। कोई इनसान बिना बाहरी सुख-संतुष्टि की जरूरत के और बिना किसी बाहरी गतिविधि के स्थिर होकर एक जगह बैठता है, तो इसका मतलब है उसे परमानंद का हल्का सा स्वाद मिला है। इसका अर्थ है कि आप हल्के सुरूर में हैं। अगर आप उसमें पूरी तरह डूबे हुए और नशे में हैं, तो आप किसी काम के नहीं रह जाएंगे। ‘किसी काम का नहीं रह जाना’ से मेरा मतलब है दुनिया के मामले में है, जीवन के मामले में नहीं। जीवन के मामले में तो वह भी ठीक है। मगर आप दुनिया के काम नहीं कर पाएंगे। लेकिन अगर परमानंद का थोड़ा सा स्वाद हो तो आप कितनी भी चीजें कर सकते हैं और फिर भी आपको महसूस होगा कि आपने कुछ नहीं किया है। यह इसी तरह है, जैसे हल्के नशे में लोग नाचते ही रहते हैं, जब तक उनके पैर जवाब नहीं दे जाते क्योंकि वहां आनंद का एक सुरूर रहता है। बाकी समय वे ऐसा करने में समर्थ नहीं होंगे। इसलिए परमानंद के सुरूर के साथ आप नाच सकते हैं, कोई काम कर सकते हैं या जो चाहे कर सकते हैं और आपको कोई बोझ भी नहीं महसूस होगा। आदियोगी इस बात के प्रतीक हैं कि उनमें हमेशा परमानंद का एक हल्का सा सुरूर रहता है।

लोग मांगें रखना भूल जाते हैं

जब हम एक खास रूप तैयार करते हैं, सभी लिंग नहीं बल्कि अधिकांश, अगर उन्हें उचित ढंग से बनाया जाए, तो उनमें परमानंद की एक झलक होती है। अगर आप खुद में और उन सभी आकारों में, जिनकी प्राण-प्रतिष्ठा की गई है, उनमें परमानंद की यह झलक नहीं ला पाते, तो उससे कोई प्रेरणा नहीं मिलेगी। वे अपनी इच्छाओं के बारे में सोचते रहेंगे। भारत के बहुत से मंदिरों में ऐसा होता है, जहां सही तरीके से प्राण-प्रतिष्ठा की गई है, कि लोग वहां प्रार्थना करने और तरह-तरह की मांगें रखने जाते हैं, मगर वहां जाते ही वे सब कुछ भूल जाते हैं और बस खड़े रह जाते हैं। ऐसा परमानंद की झलक के कारण होता है।

  -सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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