शिव-पार्वती का पर्व है गणगौर पूजा

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गई। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती हैं। सुहागिन स्त्री पति की लंबी आयु के लिए यह पूजा करती है…

गणगौर एक त्योहार है, जो चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह व्रत विवाहित लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न कराने वाला और कुंवारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।

गणगौर पूजन कब और क्यों

नवरात्र के तीसरे दिन यानी कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता (मां पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गई। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती हैं। सुहागिन स्त्री पति की लंबी आयु के लिए यह पूजा करती है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरंभ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बागीचे में जाती हैं, दूर्वा व फूल चुन कर लाती हैं। दूर्वा लेकर घर आती हैं, उस दूर्वा से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही, पानी, सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है। आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर) के साथ अपने ससुराल आते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहां जाती हैं और वहां से मिट्टी के बरतन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती हैं। उस मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाती हैं। जहां पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जन किया जाता है, वह स्थान ससुराल माना जाता है।

राजस्थान का अत्यंत विशिष्ट त्योहार

राजस्थान का तो यह अत्यंत विशिष्ट त्योहार है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वती को तथा पार्वती ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है। राजस्थान से लगे ब्रज के सीमावर्ती स्थानों पर भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास की तीज को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है। दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है, यानी कि विसर्जित किया जाता है। विसर्जन का स्थान गांव का कुआं या तालाब होता है। कुछ स्त्रियां जो विवाहित होती हैं, वे यदि इस व्रत की पालना करने से निवृति चाहती हैं, वे इसका अजूणा करती है (उद्यापन करती हैं) जिसमें सोलह सुहागन स्त्रियों को समस्त सोलह शृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती हैं। इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती हैं एवं उनका पूजन किया जाता है। इसके पश्चात गौरी जी की कथा सुनी जाती है। कथा के बाद गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से स्त्रियां अपनी मांग भरती हैं। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है।


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