श्रीविद्या स्तोत्रम की महिमा अपरंपार

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

यह दुर्लभ स्तोत्र है, सर्वसिद्धिदायक, साधना में सफलता दिलाने वाला, सर्वविध संपत्ति का दाता, दरिद्रता को मिटाने वाला, आपत्ति निवारक, अष्टविध ऐश्वर्यदाता, विजयप्रद, कीर्तिकारी, सौंदर्यकर, स्वर्णादि अष्टसिद्धि का दाता सर्वोत्तम एवं भुक्ति-मुक्ति को देने वाला है। त्रिपुरसुंदरी की तंत्र साधना करने वाले साधक को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए…

-गतांक से आगे…

यह दुर्लभ स्तोत्र है, सर्वसिद्धिदायक, साधना में सफलता दिलाने वाला, सर्वविध संपत्ति का दाता, दरिद्रता को मिटाने वाला, आपत्ति निवारक, अष्टविध ऐश्वर्यदाता, विजयप्रद, कीर्तिकारी, सौंदर्यकर, स्वर्णादि अष्टसिद्धि का दाता सर्वोत्तम एवं भुक्ति-मुक्ति को देने वाला है। त्रिपुरसुंदरी की तंत्र साधना करने वाले साधक को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए।

श्री भैरव उवाच

अधुना देव! बालाया स्तोत्रं वयामि पार्वति।

पंचमांगं रहस्यं मे श्रुत्वा गोप्यं प्रयत्नतः।।

विनियोग

अस्य श्रीबाला त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र मंत्रस्य श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषिः, पंक्तिश्छंदः, श्रीबालात्रिपुरसुंदरी देवता, ऐं बीजम, सौः शक्ति, क्लीं कीलकं, श्रीबाला प्रीतये पाठे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

श्रीदक्षिणामूर्ति ऋषये नमः (शिरसि)।

पंक्तिश्छंदसे नमः (मुखे)

श्रीबाला त्रिपुरसुंदरी देवतायै नमः (हृदि)।

ऐं बीजाय नमः (गुह्यो)।

सौः शक्तये नमः (नाभौ)।

क्लीं कीलकाय नमः (पादयोः)।

श्रीबाला प्रीतये पाठे विनियोगाय नमः (सर्वांगे)।

षडंग-कर एवं अंगन्यास

ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः, ह्दयाय नमः।

क्लीं तर्जनीभ्यां नमः, शिरसे स्वाहा।

सौः मध्यमाभ्यां नमः, शिखायै वषट्।

ऐं अनामिकाभ्यां नमः, कवचाय हुम्।

क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः, कवचाय हुम्।

सौः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः, अस्त्राय फट्।

ध्यान

अरुण-किरण जालै रंजिताशावकाशा।

विधृत जप वटीका पुस्तकाभीति हस्ता।।

इतर कर वराढ्या फुल्ल कह्लार संस्था।

निवसतु ह्दि बाला नित्य कल्याणरूपा।।

 अर्थात भगवती श्री बाला त्रिपुरसुंदरी के शरीर की आभा अरुणोदय काल के सूर्य बिंब जैसी रक्तवर्ण की है। उस आभा की किरणों से सभी दिशाएं एवं अंतरिक्ष लाल रंग से रंगे हुए हैं। चार कर-कमलों में जप-माला, पुस्तक, अभय और वर मुद्राएं हैं। पूर्ण खिले हुए रक्त कमल के पुष्प पर अवस्थित हैं। ऐसी श्रीबाला जगत का नित्य कल्याण करने वाली हैं। वे मेरे ह्दय में निवास करें।

स्तोत्रम

वाणीं जपेद् यस्त्रिपुरे! भवान्या बीजम् निशीथे जड़ भाव लीनः।

भवेत् स गीर्वाण गुरोर्गरीयान गिरीश-पत्नि प्रभुतादि तस्य।।

अर्थात हे त्रिपुरे, जो (साधक) भगवती के वाणी बीज ‘ऐं’ का महारात्रि में भाव निमग्न होकर जाप करता है, वह देवगुरु बृहस्पति से भी बढ़कर विद्वान होता है और हे शंभुपति! सभी प्रकार का स्वामित्व उसे मिल जाता है। माता त्रिपुरसुंदरी का साधना विधि-विधान से की जानी चाहिए। विधि-विधान से की गई साधना का फल जल्द व अवश्य मिलता है। साधक को निर्लिप्त भाव होकर साधना करनी चाहिए।


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