श्रीविश्वकर्मा पुराण

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

हे देवेश! विधिपूर्वक दूध से शुद्ध किया हुआ तथा घी तथा शक्कर से युक्त ऐसा ये नैवेद्य आप ग्रहण करो और मेरे ऊपर प्रसन्न हों। इस तरह कहकर प्रभु को नैवेद्य अर्पण करना चाहिए और नैवेद्य के थाल में तुलसी पात्र रखकर प्रभु को जगाने की भावना करनी चाहिए..

यज्ञोपवीत का मंत्र

ब्रह्मसूत्रं परं पुण्यं धर्म कर्म विवर्धनम्।

धर्मकर्माथ सिद्धयर्थ दत्तं ते प्रतिगृहयताम्।।

ेहे देव! धर्म के लिए कर्म तथा अर्थ की सिद्धि के लिए अत्यंत पुण्यकारक और धर्म तथा कर्म को बढ़ाने वाला ऐसा यह ब्रह्मसूत्र रूपी जनेऊ मैं आपको अर्पण करता हूं। आप उसको स्वीकार करो, इस प्रकार कह कर भगवान को उत्तम सूत में से बनाया हुआ जनेऊ प्रेमपूर्वक अर्पण करना चाहिए।

चंदन चारू गंध च मलयाचल संभवम।

विलेपनार्थ ते दत्तः गृह्यतां परमेश्वर।।

हे देव! मलयाचल से उत्पन्न हुआ अनेक प्रकार की सुगंधी वाला सुंदर चंदन मैंने आपके विलेयपन के लिए तैयार रखा है इसलिए हे परमेश्वर आप ये चंदन ग्रहण करो।

पुष्प का मंत्र-

उदानोदभूत पुष्पाणि चित्राणि विविधानिच।

गृहाण परमेशान मालायां गुंफितानिवै।।

हे परमेश्वर! तरह-तरह के रंग वाले अनेक प्रकार के पुष्प जो कि उद्यान में उत्पन्न हुए हैं, वह पुष्प आप ग्रहण करो तथा आपके लिए गूंथे हुए पुष्प की माला को भी आप स्वीकार करो। इस मंत्र से फूल तथा माला अर्पण करें।

सौभाग्य द्रव्य मंत्र-

नानावर्ण समायुक्तं नृणां सौभाग्य दं परम।

मया प्रीत्ग्रा च यदृतं संग्ठह्यतां विभो।।

मनुष्य को उत्तम प्रकार के सौभाग्य अर्पण करने वाला ऐसे अनेक रंगों से शोभायमान सौभाग्य द्रव्य मैं आपको अर्पण करता हूं, तो हे विभो! आप उसको स्वीकार करो इस प्रकार बोलकर अबीर, गुलाल, सिंदूर, हल्दी, रोरी बगैरह सौभाग्य द्रव्य अर्पण करना चाहिए।

दीपक का मंत्र-

कापसि वर्तिना युक्त घृत तेल यमन्वितं।

दीपं च देव देवेश शांत्यर्थ स्तिगृह्यताम्।।

जिसे में रुई की बाती रखी हुई है एवं घी तथा तेल भरे हैं ऐसे दीपों को ग्रहण करके हे देवाधिदेव आप मेरे सुख में बृद्धि करो।

नैवेद्य मंत्र-

नैवेद्य विधिवदेव पांचित पयसा किल।

घृत कर्करया युक्तं गृह्यतां च प्रसीदमे।।

हे देवेश! विधिपूर्वक दूध से शुद्ध किया हुआ तथा घी तथा शक्कर से युक्त ऐसा यह नैवेद्य आप ग्रहण करो और मेरे ऊपर प्रसन्न हों। इस तरह कह कर प्रभु को नैवेद्य अर्पण करना चाहिए और नैवेद्य के थाल में तुलसी पात्र रखकर प्रभु को जगाने की भावना करनी चाहिए।

ॐ प्राणाय नमः अपानाय नमः व्यानाय नमः उदानाय नमः समानाय नमः।

इस तरह पांच बार बोलकर प्रभु जो जगाना इसके बाद मध्ये पानीयम कहकर पानी रखना, इसके बाद फिर ऊपर के पांच मंत्रों से भगवान को जगाना और तीन बार पानी रखना उत्तम पोषणम। हस्त प्रक्षालनम। इस तरह बोलकर तीन बार पानी रखना। प्रभु के हाथ साफ करने के लिए चंदन अर्पण करना चाहिए।

चंदन का मंत्र-

मुखवास का मंत्र-

एला लबंग संयुक्तं कपूरादि समन्वितम।

पुंगीफल समायुक्तं तांबूलं प्रतिगह्ताम।।

इलायची, लोंग, कपूर तथा सुपारी बगैरह अनेक उत्तम पदार्थों से युक्त ऐसे तांबूल को ग्रहण करो।

 


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