सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वस्त्रधारिणी तथा

By: Mar 17th, 2018 12:08 am

चैत्र नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्त्व वाले होते हैं, इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना प्रारंभ होती है…

शक्ति उपासना का महापर्व है नवरात्र। एक वर्ष में कुल चार नवरात्र पड़ते हैं, इसमें से दो नवरात्र प्रत्यक्ष और दो गुप्त होते हैं। प्रत्यक्ष नवरात्रों को शारदीय और बासंती या चैत्र नवरात्र के नाम से जाना जाता है। यह चारों नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल काल में मनाए जाते हैं। प्रत्यक्ष नवरात्रों को योग-भोग प्रदाता माना जाता है, जबकि गुप्त नवरात्र साधना और सिद्धि के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। मौसम में होने वाले बदलाव के समय सृष्टि और शरीर में बड़े बदलाव होते हैं। ऐसे समय में आहार-विहार-विचार की सात्विकता से शक्ति संचित होती है और जीवन के वृहदतर लक्ष्य और संभावनाएं साकार होने लगती हैं। इन नवरात्रों में शक्ति के विभिन्न विग्रहों की पूजा की जाती है। शक्ति स्वरूपा मां भगवती संपूर्णता की प्रतीक हैं। वह शास्त्रों से अपने भक्तों को विमल मति प्रदान करती हैं तो दूसरी तरफ  अस्त्रों से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। इसीलिए भगवती को सर्वशास्त्रमयी और सर्वास्त्रधारिणी कहा जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मनुष्य अपने सर्वविध कल्याण की कामना करता है और चतुर्विध पुरुषार्थ को पूरा करने की कोशिश करता है। कल्याण और प्रगति शक्ति के अभाव में संभव नहीं, इसलिए शक्ति उपासना के महापर्व नवरात्र का प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज में विशेष स्थान रहा है। चैत्र नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्त्व वाले होते हैं, इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना प्रारंभ होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, वर्षा, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आकलन किया जाता है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे। धार्मिक दृष्टि से नवरात्र का अपना अलग ही महत्त्व है क्योंकि इस समय आदिशक्ति, जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढका हुआ है, जिनकी शक्ति से सृष्टि का संचालन हो रहा है, जो भोग और मोक्ष देने वाली देवी हैं, वह पृथ्वी पर होती हैं। इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा शीघ्र और सुगमता से होती है। चैत्र नवरात्र का सृष्टि की संरचना की दृष्टि से विशेष महत्त्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थीं और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का काम शुरू किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय नववर्ष की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार, जो भगवान राम का है, वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए सृष्टि और उसकी निर्मिति की दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का विशेष महत्त्व होता है।  ऋतु परिवर्तन के समय आसुरी शक्तियों के प्रतीक रोग बढ़ जाते हैं, उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन किया जाता है, जिसमें कई तरह की जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने न सिर्फ धार्मिक दृष्टि को ध्यान में रखकर नवरात्र में व्रत और हवन पूजन करने के लिए कहा है, बल्कि नवरात्र के दौरान व्रत और हवन पूजन स्वास्थ्य के लिए भी बहुत स्वास्थ्यकर माने जाते हैं। शरीर और संकल्प को पुष्ट करने के लिए नवरात्र का व्रत बहुत शक्तिशाली साधन है और जब शरीर तथा संकल्प पुष्ट होते हैं तो सर्वविध कल्याण होता ही है।

घटस्थापना-मुहूर्त

सुबह 7 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक। इसी मुहूर्त में घटस्थापना इस बार के नवरात्र में शुभ मानी गई है। यह इच्छित फल देने वाली है।


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