हिंदुत्व के आगे पंथनिरपेक्षता कमजोर

By: Mar 5th, 2018 12:08 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

वास्तव में संघ को इस बात की आशंका है कि जाति व धर्म के नाम पर एक करके हिंदू वोटों को अपनी ओर करना मुश्किल हो सकता है, इसलिए अब केंद्र की नई आर्थिक नीतियों का सहारा भी साथ-साथ लिया जा रहा है। इन नई नीतियों को भुनाने की पूरी कोशिश हो रही है अन्यथा केंद्र में भाजपा की संभावनाएं क्षीण हो सकती हैं। बिहार में दलितों व मुसलमानों का एक गठजोड़ भी बनने जा रहा है जो भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है। यह भी संघ की चिंता का एक कारण है…

मुझे हमेशा हैरानी होती है कि हम कहां गलत हो गए? एक संविधान अपनाने के बाद, जो वास्तव में अपने शब्दों व आत्मा से पंथनिरपेक्ष था, हम एक ऐसे क्षेत्र में भटक गए हैं, जहां हर कंकड़ बहुलतावाद की ओर यात्रा में एक अवरोध है।    भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 14-15 अगस्त 1947 की रात को संसद में कहा था और जो लोकप्रियता के साथ ‘भाग्य के साथ गुप्त भेंट’ संबोधन माना जाने लगा ः  ‘‘भविष्य हमारी ओर देख रहा है, हमारे पास भविष्य में कठिन परिश्रम है। जब तक हम लोगों का नया भाग्य नहीं लिख लेते, जब तक हम अपने संकल्पों को पूरी तरह पूरा नहीं कर लेते, तब तक हमारे पास रुकने या आराम करने का कोई रास्ता नहीं है। हम एक महान देश के नागरिक हैं, हम आधुनिकता के द्वार पर हैं, हमें अभी उच्च मापदंड स्थापित करने हैं। हम सभी, चाहे हम किसी भी धर्म से जुड़े हों, समान रूप से भारत के बच्चे हैं जिनके समान अधिकार, विशेषाधिकार व कर्त्तव्य हैं। हम सांप्रदायिकता व संकुचित दिमाग को प्रोत्साहित नहीं कर सकते, कोई भी देश, जिसके लोग विचारों व कार्यों में संकुचित हों, वह तरक्की नहीं कर सकता…’।

नेहरू के बाद जो मुसलमान नेता बोले, वह इस भाषण को सुन कर इतने अभिभूत हो गए कि उन्होंने रोजगार व शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के प्रस्ताव से सीधे निरस्त कर दिया। हालांकि यह बात उल्लेखनीय है यह कि इस तरह के प्रस्ताव की पेशकश तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने संविधान सभा में की थी। मुस्लिम नेताओं ने संसद के दोनों सदनों में कहा था कि हमें कुछ भी अलग व विशेष नहीं चाहिए। उन्होंने पछतावा व्यक्त किया था कि देश के विभाजन के मसले पर उन्हें गुमराह किया गया तथा इसके बीज अनिच्छापूर्वक व गलती से बोए गए। कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में बताया जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा अधिकार व छूट जरूर चाहते थे, लेकिन विभाजन नहीं चाहते थे। परंतु कहीं और से पाकिस्तान की मांग उठ खड़ी हुई और इस तरह मुसलमान लोग गुमराह होते चले गए। लंदन के नजदीक ब्रौडलैंड्स में मैंने विस्तार से लार्ड माउंटबेटन का इंटरव्यू किया था। उस समय उन्होंने मुझे बताया था कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने उनसे कहा था कि वह इस बात का पता लगाएं कि दोनों देशों, अर्थात भारत व पाकिस्तान के बीच साझा चीज क्या है। जिन्ना ने इस सुझाव को सीधे न कर दिया था। उन्होंने तब कहा था कि वह कांगे्रस नेताओं पर अब विश्वास नहीं करते हैं। क्योंकि कैबिनेट मिशन, जिसमें एक कमजोर केंद्रीय सरकार का प्रावधान था, को अपनाने के बाद वे समूह बनाने के प्रावधान से पीछे हट गए हैं जहां हिंदू बहुल असम इसका एक हिस्सा था। परिणामस्वरूप उन्होंने इस योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन जिन्ना ने तब तक उनका विश्वास खो दिया था। मैं उन भाग्यशाली लोगों में शामिल था, जिन्होंने नेहरू के इस भाषण को सुना था। मैंने संसद की प्रेस गैलरी में बैठकर इस भाषण को सुना था। यह 70 साल पहले की घटना है। आज जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख राज्य चुनावों तथा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए हिंदू वोटों को अपनी ओर करने की कोशिश करते हैं तो मैं स्वयं से पूछता हूं ः हम कहां गलत हो गए? आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी जनसंख्या वाले दो प्रदेशों, उत्तर प्रदेश व बिहार का करीब 15 दिनों का दौरा किया। इन प्रदेशों में जातीय कारक अपना काम करते हैं। जाति व धर्म जैसे कारक यहां प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र में राजनीतिक परिणाम इन दो प्रदेशों, जो हिंदू बहुल हैं, के हिंदू वोटरों पर निर्भर करता है। हाल में मोहन भागवत ने एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया। वह इस मामले में स्पष्ट थे, जब उन्होंने कहा कि हिंदुओं को जात-पात के भेदों से ऊपर उठना चाहिए। उनकी यह टिप्पणी अभिमुख थी, जब उन्होंने कहा, ‘हिंदुओं को एक होना चाहिए। हर मसले पर हिंसा तथा जाति के नाम पर समाज का विभाजन इस एकता में बड़ी बाधा है। यहां ऐसी ताकतें हैं जो इस बात का लाभ उठाती हैं।’ स्पष्ट रूप से उनके दिमाग में गैर हिंदू मतदाता होंगे। हिंदू वोटरों को अपनी ओर करने की उनकी इस कोशिश का संबंध ऊना में दलित परिवार पर हमले के बाद अस्तित्व में आई जिग्नेश मेवानी जैसी ताकतों तथा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलितों व राजपूतों के मध्य संघर्ष से उपजी भीम सेना से भी है। संघ का विश्वास है कि ये ऐसी ताकतें हैं जिन्हें गुपचुप तरीके से वामपंथियों का समर्थन हासिल है। मोहन भागवत ने केंद्र सरकार की नई आर्थिक नीति को भुनाने का भी भरपूर प्रयास किया। केंद्र की नई आर्थिक नीति किसानों व छोटे कारोबारियों पर केंद्रित है। जनसभा के बाद संघ के एक प्रवक्ता ने इस यात्रा को राजनीतिक यात्रा के आरोप से मुक्त करने की कोशिश करते हुए कहा कि यह यात्रा मात्र कार्यकर्ताओं से संपर्क का हिस्सा थी। इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक ही है। वास्तव में संघ को इस बात की आशंका है कि जाति व धर्म के नाम पर एक करके हिंदू वोटों को अपनी ओर करना मुश्किल हो सकता है, इसलिए अब केंद्र की नई आर्थिक नीतियों का सहारा भी साथ-साथ लिया जा रहा है। इन नई नीतियों को भुनाने की पूरी कोशिश हो रही है अन्यथा केंद्र में भाजपा की संभावनाएं क्षीण हो सकती हैं। बिहार में दलितों व मुसलमानों का एक गठजोड़ भी बनने जा रहा है जो भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है। यह भी संघ की चिंता का एक कारण है। इसलिए वह अभी से आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों, विशेषकर कुर्मी व कोरी समुदायों के लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहा है। इन समुदायों का अब तक भाजपा को समर्थन नहीं मिल पाया है और वे उससे दूर ही रहते आए हैं। इन्हीं लक्ष्यों के साथ संघ इन दोनों राज्यों के गांव-गांव में पहुंचने की कोशिश कर रहा है।

हिंदू वोटों के अलावा उसकी नजर गैर हिंदू वोटों पर भी है। दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सरकार को बचाने के लिए एक ऐसी ताकत से गठजोड़ कर लिया, जो विभाजनकारी है। अब इस गठजोड़ पर नीतीश बचाव की मुद्रा में आ गए हैं। यह हैरानीजनक है कि उस व्यक्ति, जो जीवनभर सांप्रदायिकता से लड़ता रहा, उसने उसी ताकत से गठजोड़ कर लिया, यह भुलाते हुए कि वह चुनाव में उन शक्तियों के खिलाफ लड़ा था। नीतीश की भूमिका हास्यास्पद लगती है। यह सच है कि अब तक पंथनिरपेक्ष ताकतें हिंदूवादी ताकतों को रोक नहीं पाई हैं। भारत का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप कायम रखने के लिए कांग्रेस के पास भी इस समय ताकत नहीं है, वह कमजोर हो गई है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी का जलवा अभी भी कायम है। अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा व उसके सहयोगी दलों की व्यापक संभावनाएं हैं। मैं केवल प्रार्थना कर सकता हूं कि भारत फिर से पंथनिरपेक्षता की राह पर लौट आए।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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