हिमाचली पुरुषार्थ : खुंब में खुशहाली खोजते सुनील दत्त

By: Mar 28th, 2018 12:07 am

सुनील दत्त ने वर्ष 2006 में भारत की चंडीगढ़ स्थित मशहूर खुंब उत्पादन कंपनी एग्रो डच  इंडस्ट्रीज लिमिटेड में बतौर प्रबंधक अपनी सेवाएं आरंभ कीं। इस कंपनी द्वारा प्रतिदिन लगभग 100 टन मशरूम का उत्पादन किया जाता है। कंपनी द्वारा उनके उल्लेखनीय योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें महाप्रबंधक के पद पर प्रोन्नति दी गई, जहां पर 6 वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात उन्होंने अपनी सेवाओं को प्रदेश के लोगों  के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया…

‘हिम्मते मर्दा मददे खुदा’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए सुनील दत्त ने अपने कृषि वैज्ञानिक बनने के सपने को तिलांजलि देकर अग्रणी खुंब उत्पादक के रूप में अपनी एक अलग पहचान बना ली है। यह हकीकत है मूलतः मंडी जिला के तहत लडभड़ोल तहसील के लांगना गांव के रहने वाले पढ़े-लिखे नौजवान सुनील दत्त की, जो बचपन से ही पढ़ाई में काफी होशियार थे। उनकी बचपन से ही कृषि वैज्ञानिक बनने की अभिलाषा थी, ताकि वह गरीब  किसानों-बागबानों के दर्द को समझते हुए उनकी मदद कर सकें।  अपने इसी सपने को साकार करने के लिए डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) से बीएससी तथा एमएससी (औद्यानिकी) की डिग्री हासिल करने के बाद सुनील दत्त ने वर्ष 2006 में भारत की चंडीगढ़ स्थित मशहूर खुंब उत्पादन कंपनी एग्रो डच  इंडस्ट्रीज लिमिटेड में बतौर प्रबंधक अपनी सेवाएं आरंभ कीं। इस कंपनी द्वारा प्रतिदिन लगभग 100 टन मशरूम का उत्पादन किया जाता है। कंपनी द्वारा उनके उल्लेखनीय योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें महाप्रबंधक के पद पर प्रोन्नति दी गई, जहां पर 6 वर्षों तक कार्यरत रहने के पश्चात उन्होंने अपनी सेवाओं को प्रदेश के लोगों  के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया, जिसके बाद वह प्रदेश के पांवटा साहिब में हिमालयन इंटरनेशनल तथा नालागढ़ में विद्यमान इंका फूड्स खुंब  उत्पादन कंपनियों में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे।  परंतु नौकरी में रहते हुए बचपन से ही मन में पल  रही इच्छा के मकसद को पूरा नहीं कर पाने की वजह से उन्होंने अपनी इस नौकरी को तिलांजलि देकर अपना रोजगार शुरू करने का प्रण किया, ताकि वह गरीब एवं जरूरतमंद लोगों के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा सकें।  सुनील ने वर्ष 2012 में   विकास खंड नगरोटा सूरियां के तहत पड़ती तहसील कोटला के छोटे से गांव अनुही  में लगभग 12 कनाल भूमि खरीद कर खुंब  उत्पादन शुरू करने का मन बनाया, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही पिता  का साया सिर से उठ जाने के कारण परिवार के पालन- पोषण के खर्चे को ध्यान में रखते हुए मन में दृढ़ इच्छा करके आत्मसम्मान के साथ स्वावलंबी बनने का निर्णय लिया था, लेकिन आर्थिक स्थिति सामान्य होने के कारण अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहे सुनील दत्त ने अपने मकसद को पूरा करने के लिए केंद्र  प्रायोजित योजना के अंतर्गत एकीकृत बागबानी विकास मिशन के तहत लाभ उठाते हुए वर्ष 2016 में बैंक से 1 करोड़ रुपए ऋण खुंब उत्पादन के साथ-साथ उसके बीज तथा खाद  की इकाइयां स्थापित करने के लिए लिया।  जिसके लिए उन्हें प्रदेश के उद्यान विभाग द्वारा 22 लाख रुपए का अनुदान प्रदान किया गया।  इस राशि से उन्होंने अनुही में मशरूम, कवक(स्पान) तथा खाद तैयार करने की इकाई स्थापित की। उन्होंने अपने व्यवसाय में रुचि दिखाकर क्षेत्र को और व्यापक कर दिया । इस प्लांट में प्रतिदिन  6 से 7 क्विंटल मशरूम का उत्पादन हो रहा है।  इसके साथ ही वह यहां पर कवक(रुपान)तथा  खाद का  उत्पादन भी कर रहे  हैं। उनका यह फारम पूरी तरह वातानुकूलित है तथा मौसम का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।  सारा साल उच्च किस्म का खुंब उगाकर वह इसे सीमांत राज्यों जम्मू-कश्मीर के जम्मू, पंजाब तथा प्रदेश के महत्त्वपूर्ण शहरों में बेच रहे हैं। इसके अलावा वह खाद और बीज प्रदेश के अन्य जिलों तथा स्थानीय लोगों को भी बेच रहे हैं।  उन्होंने अपने मशरूम यूनिट में 25 महिला एवं पुरुषों को भी रोजगार उपलब्ध करवाया है तथा सर्दियों में पीक सीजन में खुंब और खाद की स्थानीय स्तर पर भी मांग बढ़ जाने पर और अधिक लोगों को  रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाते हैं।  सुनील दत्त का धौलाधार मशरूम प्लांट अनुही प्रतिवर्ष 1.5  करोड रुपए के मशरूम  के साथ-साथ बीज व खाद बेचकर लगभग 20 से 25 लाख रुपए का सालाना लाभ कमा रहा है।  सुनील बेरोजगार तथा पढ़े -लिखे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। उनका कहना है कि युवा वर्ग को रोजगार के लिए सरकारी अथवा निजी क्षेत्र में नौकरी की तलाश के लिए दूसरे राज्यों में जाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि रोजगार के साधन घर पर ही विद्यमान हैं।  जरूरत है बस दृढ़ इच्छाशक्ति और उपलब्ध संसाधनों के दोहन की। जिस गति से सुनील अपने व्यवसाय में रुचि दिखाकर इसका विस्तार कर रहे हैं साथ और लोगों को प्रेरित कर इस व्यवसाय से जोड़ रहे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि निकट भविष्य में खुंब  के लिए देश में अपनी ख्याति अर्जित कर चुके सोलन जिला से मुकाबला करने में सक्षम हो जाएंगे।

– बलजीत चंबियाल, नूरपुर

जब रू-ब-रू हुए…

हिमाचली युवाओं को खेतीबाड़ी की ओर मोड़ने की जरूरत है…

क्या हिमाचली जमीन का कृषि- बागबानी के लिए सही इस्तेमाल हो रहा है?

पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर बाकी जगह अभी भी और जिलों में जमीन का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। लोगों ने अभी अपनी जमीने बंजर छोड़ी हुई हैं।

क्या वजह रही कि हिमाचली युवा जमीन से जुड़े व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं?

हिमाचली युवा अभी भी खेतीबाड़ी को निम्न स्तर का कार्य समझते हैं। अभी भी युवाओं में खेतीबाड़ी के प्रति कोई उत्साह नहीं है।

दो-दो विश्वविद्यालयों के बावजूद कृषि-बागबानी में हमारी योग्यता क्यों नहीं भविष्य की चुनौतियों का सामना कर पा रही?

हमारे वैज्ञानिक अभी भी अपनी टेक्नोलॉजी को विश्वविद्यालय के बाहर ले जाने में असमर्थ हैं। विस्तार शिक्षा अभी भी किसानों के पास नहीं पहुंच पा रही है।

आपका अपना अनुभव क्या रहा और स्थायी नौकरी, अच्छे खासे वेतन व आसान सी जिदंगी त्याग कर यह मार्ग क्यों चुना?

मेरा लक्ष्य किसानों को साथ लेकर चलना, उनकी आय बढ़ाना और लोगों को रोजगार देना रहा है। इसलिए मैंने इस व्यवसाय को चुना। यही वजह रही कि मैंने सरकारी नौकरी को छोड़कर इस व्यवसाय को चुना है।

खुंब उत्पादन की दृष्टि से हिमाचली संभावना?

हिमाचल में अभी भी बाहर के राज्यों से काफी मशरूम आ रहा है। हम हिमाचल में मार्केटिंग व्यवस्था को बढि़या करवा कर मशरूम का उत्पादन बढ़ा सकते हैं। संभावनाएं बहुत हैं, पर प्रयत्न करने की जरूरत है।

इसके अलावा अन्य नकदी फसलों में स्वरोजगार कैसे देखते हैं?

अगर हम समूह में खेती करते हैं तो उससे मार्केटिंग करना आसान हो जाएगा और इससे रोजगार की संभावना और बढ़ जाएगी। हिमाचल में कम जमीन की होल्डिंग से हम समूह में एक ही फसल की खेती करेंगे तो उससे हमें एकीकृत मार्केटिंग करके अपने उत्पाद को बेचना आसान हो जाएगा।

जमीन से हासिल करने का आपका सिद्धांत है क्या?

अगर हमारे पास जमीन बहुत कम है तो मशरूम जैसी खेती को बढ़ावा दे सकते हैं। कम जमीन में भी काफी कुछ हासिल किया जा सकता है।

खुंब जैसे उत्पाद के लिए बाजार से कैसे तालमेल बैठाते हैं। मार्केटिंग की दिक्कत के बीच उत्पादक कैसे अपनी राह सफल कर सकता है?

उत्पादक समूह खेती करके उसकी इकट्ठा करके बेच सकता है। उत्पादक की अधिकतम अपने  आप नजदीक की मार्केट तैयार करना पड़ेगी, जिससे उसकी अच्छे दाम प्राप्त हो जाएंगे।

एग्रो प्रोसेसिंग व अभिशीतन की दृष्टि से हिमाचल में उपलब्ध ढांचे से कितने संतुष्ट?

एग्रो प्रोसेसिंग अभिशीतन को हमें हर जिले में स्थापित करना होेगा ताकि हमें अपने उत्पाद के खराब होने का भय न सताए। हम अपने उत्पाद को प्रोसेस करके बाजार में बेचें।

क्या आम किसान केंद्र प्रदत्त योजनाओं का पूर्ण लाभ उठा रहा है। कमी है कहां?

आम किसान केंद्र प्रदत्त योजनाओं का पूणतया लाभ नहीं उठा पाता है क्योंकि उसे योजनाओं की जानकारी ही नहीं होती। इसीलिए वह केंद्र से स्वीकृत योजनाओं का लाभ उठाने में नाकाम रहता है। अधिकारी उस तक योजनाएं पहुंचाने की कोशि करें, तो यह काम हो सकता है।

छोटे-छोटे खेतों की मिलकीयत में उत्पादकता को किस तरह आर्थिक रूप से सक्षम किया जा सकता है?

अगर हमारे पास छोटी मिलकियत है तो हम समूह में काम करके अपने उत्पाद की ज्यादा पैदावार कर सकते हैं। समूह में काम करके हम एक ही प्रकार की फसल एक जगह ज्यादा मात्रा में तैयार कर सकते हैं, जिससे हम उसको इकट्ठा बेचकर  अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं।

ग्रामीण पृष्ठभूमि के हिमाचली युवा को आपकी सलाह?

ग्रामीण पृष्ठभूमि के हिमाचली युवा के लिए यही सलाह है कि वह सरकारी नौकरी के पीछे न भागकर खेतीबाड़ी के व्यवसाय की ओर मुड़े। खेती की ओर मुड़कर वह अपने भविष्य की राहें आसान बना सकता है। खेतों के जरिये वह अपनी आर्थिकी सुदृढ़ बना सकता है। युवा को खेतीबाड़ी बारे ज्यादा से ज्यादा आधुनिक तकनीक सीखने की कोशिश करनी चाहिए।

आपकी निगाह में हिमाचल की ग्रामीण आर्थिकी को किस दिशा में संवारा जा सकता है। कोई मॉडल, अधोसंरचना या नवाचार, जिससे प्रेरित हुआ जा सकता है?

ग्रामीण आर्थिकी को हम खेती व बागबानी के माध्यम से युवाओं को प्रेरित कर और फसलों की गुणवत्ता को बढ़ाकर  या अर्गेनिक फार्मिंग या प्राकृतिक  खेती के माध्यम से अच्छी कीमत अर्जित करके गांव की आर्थिक स्थिति को बेहतर कर सकते हैं।


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