हिमाचली बहस का नवाचार

By: Mar 20th, 2018 12:02 am

अपनी सियासी समीक्षा से हटकर बजट की पड़ताल में अगर विधायक नए विचार-नए विकल्प खोज रहे हैं, तो बहस की जहमत उठाने का अर्थ सार्थक हो सकता है। हिमाचल विधानसभा के कुछ सदस्यों ने प्रदेश की कठिनाइयों के बीच नई दिशा दिखाई, तो ऐसे विचारों की संगत में सियासी मतभेद शांत होने चाहिएं। विधायक प्रकाश राणा ने बंदरों से निजात दिलाने की सरकारी कोशिशों के नाकामयाब होते दखल में खुद की भूमिका तलाशी, तो विकल्प की रोशनी में निजी क्षमता का दोहन होना चाहिए। विधायक ने दावा किया है कि सरकार चाहे तो वह दो सौ करोड़ के खर्च से अपनी कंपनी खड़ी करके हिमाचल को बंदर मुक्त बना सकते हैं। कुछ ऐसे ही समाधानों की किश्ती पर बैठे देहरा के विधायक होशियार सिंह पौंग जलाशय और त्रियूंड में पर्यटन परियोजनाओं का उजाला करने का सामर्थ्य रखते हैं। पर्यटन की दहलीज पर विधायक विक्रमादित्य लॉस वेगास सरीखे कैसिनों तथा औषधीय मूल्यों के कारण भांग की खेती तक पहुंच जाते हैं, तो इससे स्पष्ट है कि हिमाचल में भी वैचारिक नवाचार अपनी भूमिका देख रहा है। ऐसे में सदन की सियासत में कड़वे फैसलों को अमृत बनाने की सहमति भी तो चाहिए। बजटीय घाटे से निपटने के संकल्प अगर विपक्ष भी तैयार करे, तो कई अनावश्यक शिक्षण व चिकित्सा संस्थानों को बंद करने के तर्क सशक्त होंगे। जाहिर है न शिक्षा कोई ढर्रा है और न ही रोजगार की घोषणा, इसलिए नीतियों के संघर्ष में दोनों पक्षों को अपने स्वतंत्र विचार पेश करने होंगे। बिना छात्रों के स्कूल और बिना औचित्य के खुले कालेज बंद होते हैं, तो ऐसे अभियान की जरूरत को समझना होगा। न राजनीतिक प्रतियोगिता के बीच नए विचारों का उदय होगा और न ही सरकारों की निरंतरता का अर्थ खोकर प्रदेश का नया सवेरा होगा। मंजिल हासिल करने के लिए अगर नए मील पत्थर कायम करने हैं, तो अतीत के रास्ते भी स्मरण करने होंगे। दौर बदलने का अर्थ महज राजनीति नहीं हो सकती, इसलिए सदन के कान जो सुनना चाहते हैं वह लगातार वाकआउट के शोर में घुल जाता है। सरकार  के पास आंकड़ों की लंबाई और विपक्ष के पास सियासी पिसाई ही होगी, तो विचार गौण होंगे। बहस के मुहाने और सच के झरोखे में अंतर है, इसलिए बजट सत्र के उस पार जहां हिमाचल बसता है, उसके प्रश्न मामूली होकर भी खामोश रहे हैं- वरना विचारों का नवाचार अपनी मौलिकता प्रकट करता। शिक्षा अपने प्रांगण में हार जाए या चिकित्सा मरीज की मौत बन जाए, तो प्रश्न इन्हें बंद करने से है और पूरी व्यवस्था सुधारने से भी है। शिक्षा तो प्राइमरी स्कूल से ही अपनी दिशा सही करेगी, लेकिन गिनती कालेजों की होने लगी है। चिकित्सा किसी डिस्पेंसरी के डाक्टर की बदौलत भी सही हो सकती है, लेकिन मेडिकल कालेजों के विस्तार ने छोटे अस्पताल भी कंगाल कर दिए। सरकारी क्षेत्र के नखरे प्रदेश की आर्थिकी पर भारी हैं, तो बहस में विरोधी पक्ष भी तो एक जिम्मेदारी है। सियासी वचनबद्धता की परिपाटी में प्रदेश की बहस का स्तर अवांछित सा दिखाई देता है, फिर भी कई मुद्दे हैं जहां वकालत का केवल यही नजरिया बचा है। ऐसे में कब हम क्षेत्रवाद को तोड़ने के लिए सियासी सरहदों से बाहर निकलेंगे या उस हिमाचल को खोजेंगे जो विकास का मुखौटा सा प्रतीत होता है। विकराल होती यातायात समस्या या बदसूरत होती सड़कों पर हमारी दीर्घकालीन सोच क्या है। पक्ष-विपक्ष के सामने भले ही राजनीतिक गुंबद अलग-अलग नजर आएं, लेकिन हिमाचली परिप्रेक्ष्य की सरकारी कार्यसंस्कृति में भविष्य की बुनियाद मजबूत करने का लक्ष्य एक जैसा होना चाहिए। सरकार के प्रबंधन का नवाचार अगर सशक्त नहीं होगा तो स्कूल खुलें या बंद हों, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जिस निजी क्षेत्र से हिमाचल आज तक परहेज करता रहा या परेशान करता रहा, उसकी शरण में प्रदेश की तरक्की का हिसाब देखना होगा। अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति की आजमाइश सदन की बहस से परिलक्षित होती है, तो निजी क्षेत्र का सहयोग सामने आएगा। क्यों न ऐसी नीति बना दी जाए कि सरकारी और निजी स्कूलों के बीच प्रायोगिक तौर पर शिक्षा की अदला-बदली से यह देखा जाए कि काबिलीयत का सही प्रदर्शन कैसे प्राइवेट सेक्टर में होता है। क्यों ट्रैफिक पुलिस से बेहतर सामाजिक-धार्मिक समारोहों में स्वयंसेवक अपने तौर पर ही यातायात संचालन कर पाते हैं। क्यों अदना सा निजी अस्पताल बड़े से बड़ा आपरेशन कर लेता है, जबकि सरकारी मेडिकल कालेज केवल आर्थिक संसाधनों का कसूरवार बना रहता है। राजनीतिक सोच का कूड़ादान हटाकर ही हिमाचली क्षमता का दोहन होगा। पड़ोसी राज्य जम्मू-कश्मीर में वैष्णो देवी दर्शन अब अगर एलिवेटर के जरिए संभव होंगे, तो ऐसे नवाचार से ज्वालाजी, दियोटसिद्ध व नयनादेवी का शृंगार होना चाहिए। मनाली की स्की ढलानों ने दो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पैदा कर दिए, तो ऐसे अभिप्राय का खेल अधोसंरचना में निखार आना चाहिए। शूटिंग के वर्ल्ड कप में दो हिमाचली या एशियन कप पैराग्लाइडिंग में आधे से ज्यादा हिमाचली पायलट देश का प्रतिनिधित्व करेंगे, तो इन खेलों के प्रादेशिक आधार सुदृढ़ करने होंगे। कभी अनर्गल बहस या विवाद ने मनाली स्की विलेज की संभावना छीन ली, तो जरा सदन यह भी टटोले कि विधानसभा का मतैक्य इस प्रदेश के लिए कितना जरूरी है। प्रदेश के विवेक, चिंतन तथा प्रदर्शन में अलग दिशा खोजने के लिए विचारों में नवाचार नहीं आया, तो हम यूं ही फरियादी बनकर, फिजूलखर्ची की नींव खोदते-खोदते अपने अस्तित्व को डुबो देंगे।


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