39 का कातिल बगदादी

By: Mar 22nd, 2018 12:05 am

इराक के मोसुल शहर के करीब 39 भारतीय मजदूरों को मार दिया गया। आईएसआईएस आतंकी संगठन और सरगना बगदादी की इस दरिंदगी की पुष्टि अब हुई है, लिहाजा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद को अभी बताया है। इसे संसद और देश को गुमराह और भ्रमित करने की कोशिश नहीं कहा जा सकता। यह कोई राजनीतिक मुद्दा भी नहीं है। हमारे हिंदुस्तानियों का कत्ल किया गया है। आईएस ने पहली बार इतने भारतीयों पर हमला करके उन्हें मारा है। आईएस ने भारत पर भी अपने आतंकवाद की ‘हत्यारी छाया’ छोड़ी है। एक तरफ  मातम, पीड़ा, आंसू, गम और आक्रोश का माहौल है, तो दूसरी तरफ राजनीतिक दलों को यह विमर्श करना चाहिए कि हम आईएस के कातिलों, राक्षसों का वजूद कैसे खत्म कर सकते हैं, क्या तेजस, सुखोई, राफेल विमानों के जरिए आईएस पर हमला किया जाए और राक्षसों को ‘मिट्टी’ बना दिया जाए? लेकिन इस मुद्दे पर भी संसद में सियासत खेली गई। यह देखकर हास्यास्पद लगा और कुछ सवाल भी उभरे। मान सकते हैं कि विदेश मंत्री से गलती हुई। वह संसद और देश को झूठा दिलासा देती रहीं और भ्रम में रखा। चलो, उसकी भी सजा तय कर लीजिए, लेकिन सवाल यह है कि यदि विदेश मंत्री पहले ही लापता भारतीयों को ‘मृत’ घोषित कर देतीं और हरजीत की तरह कोई जिंदा लौट आता, तो उसकी सजा क्या होती? कौन भुगतता वह सजा..? कानून का उल्लंघन होता और संसद की अवमानना होती। मंत्री को इस्तीफा देना पड़ता। सरकार की छीछालेदर होती और दुनिया में भारत की थू-थू होती। दरअसल कानून में भी स्पष्ट प्रावधान है कि एक लापता व्यक्ति को 7 साल तक ‘मृत’ घोषित नहीं किया जा सकता। यानी लौटने की उम्मीद रहती है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उन 39 भारतीयों के परिजनों को यही ढाढस बंधाती रही होंगी। लेकिन मौजूदा सवाल यह है कि भारत सरकार ने जो अनथक प्रयास किए, उन्हें किस श्रेणी में रखेंगे? विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह कई बार इराक गए। चूंकि वह पुराने फौजी जनरल हैं, लिहाजा उन भारतीयों की तलाश में लगातार कोशिशें कीं। आखिर राडार से देखा गया कि मोसुल की पहाडि़यों पर कुछ कड़े गिरे हुए थे। उसी के जरिए भारतीयों की प्राथमिक पहचान हुई और पहाड़ी के नीचे लंबे बालों वाली लाशें मिलीं। वहां करीब 10,000 लाशों की कब्रगाह है। उनमें से 39 भारतीयों की पहचान की गई। कड़ों के अलावा, आईकार्ड से भी पहचान की गई और डीएनए टेस्ट भी किए गए। जब इन प्रक्रियाओं से गुजरते हुए भारतीयों की हत्या की पुष्टि हो गई, तो विदेश मंत्री ने राज्यसभा को सूचना दी। सवाल यह भी है कि राज्यसभा में कांग्रेस ने मंत्री का बयान होने दिया, पूरा ब्यौरा संसद के रिकार्ड में दर्ज हो गया, लेकिन लोकसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस सांसदों ने हंगामा क्यों किया? स्पीकर सुमित्रा महाजन को बार-बार यह क्यों कहना पड़ा कि इतने संवेदनहीन मत बनिए। ऐसी राजनीति मत करिए। क्या यह मुद्दा भी हंगामे का था? मोसुल में आईएस के आतंकियों ने कुल 91 लोगों को अगवा किया था। उनमें 51 बांग्लादेशी थे। उन्हें छोड़ दिया गया, क्योंकि वे मुसलमान थे। एक भारतीय हरजीत भी तभी बच पाया, जब उसने खुद का नाम ‘अली’ बताया। यानी आतंकवाद भी मजहब के आधार पर…! हिंदू भारतीयों को मार दिया गया। भारत सरकार ने यमन, सूडान, पाकिस्तान में भी अभियान चलाकर न केवल भारतीयों को मुक्त कराया है, बल्कि कई अन्य देशों के नागरिक भी छुड़ाए हैं। इस बार ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि आईएस ने बंधक बनाया था। समस्या यहीं तक ही सीमित नहीं है। भारत में भी आईएस के दल्ले, गिरोह और हमदर्द सक्रिय हैं। केरल से कश्मीर तक फैले इस ‘बगदादी ब्रिगेड’ का समूल नाश करना बहुत जरूरी है। नरमी या मानवता के मूल्यों को कुछ वक्त के लिए खूंटी पर टांग देना चाहिए। माना जाता है कि आईएस का विस्तार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर से लेकर अमरीका, यूरोप के देशों तक है। लंबे वक्त से अमरीका और रूस सीरिया और इराक के कई इलाकों में हवाई हमले कर रहे हैं, लेकिन न तो बगदादी मरा और न ही आईएस की आतंकी सेना खत्म हुई। इस्लामी खलीफाई और शरियाई हुकूमत के सपने दिखाकर, नौजवानों को बरगला कर, आईएस में भर्ती करने की साजिशें भी जारी हैं। इन साजिशों के तार भी छिन्न-भिन्न करने होंगे। बहरहाल जिन 39 भारतीयों की हत्या की गई है, उनमें सर्वाधिक 27 तो पंजाब के थे और शेष में 4 हिमाचल के, 6 बिहार के और 2 पश्चिम बंगाल के थे। सभी का मातम ‘राष्ट्रीय’ है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने मृतकों के परिजनों को सांत्वना दी है, लेकिन सरकारें उन परिवारों को नौकरी और मुआवजा भी दें।

 


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