इन्कम टैक्स के दायरे का सच

By: Apr 3rd, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं

सरकार का प्रयास है कि इन्कम टैक्स की अधिकतम दरों में कटौती की जाए। इसका प्रभाव देखिए। इन्कम टैक्स की अधिकतम दर में कटौती से अमीरतम लोगों को लाभ होगा, क्योंकि यदि आज वे अपनी आय का 30 प्रतिशत  दे रहे हैं, तो कल वे 25 प्रतिशत देंगे। दूसरी तरफ  मध्यम वर्ग के लोगों को इन्कम टैक्स में लाने से जो आम आदमी इन्कम टैक्स नहीं अदा करता था, अब उसे इन्कम टैक्स अदा करना पड़ेगा। इस प्रकार इन्कम टैक्स जनहितकारी होने के बावजूद उसमें जो प्रस्तावित सुधार हैं, वह आम आदमी के लिए हानिप्रद हैं…

वर्तमान समय में सरकार के राजस्व दबाव में हैं। इस समस्या से निदान के लिए सरकार द्वारा इन्कम टैक्स का विस्तार करने का विचार है और जीएसटी को सरल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था में दो प्रकार के टैक्स होते हैं-पहला प्रत्यक्ष कर या इन्कम टैक्स होता है। यह सीधे जो व्यक्ति द्वारा आय अर्जित की जाती है, उसमें से वह सरकार को टैक्स अदा करता है। यह इन्कम टैक्स सीधे व्यक्ति की आय से लिया जाता है। इस प्रत्यक्ष कर या इन्कम टैक्स को आम तौर पर जनहितकारी माना जाता है, चूंकि यह टैक्स उन्हीं लोगों से वसूल किया जाता है, जिनकी आय ज्यादा होती है। वर्तमान में जिनकी आय तीन लाख रुपए से ज्यादा होती है, उसे ही केवल इन्कम टैक्स अदा करना पड़ता है। दूसरे प्रकार का टैक्स जीएसटी या अप्रत्यक्ष कर होता है। इसे अप्रत्यक्ष इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह करदाता को दिखता नहीं है। जैसे आपने यदि हवाई चप्पल खरीदी उस पर जीएसटी दिया, तो आपको यह स्पष्ट नहीं है कि आपने कितनी रकम टैक्स के रूप में अदा की। आपका मूल ट्रांजैक्शन चप्पल खरीदने का है, न कि टैक्स देने का, इसलिए इसे अप्रत्यक्ष कर कहा जाता है। वर्तमान में सरकार के कुल राजस्व में इन्कम टैक्स का हिस्सा मात्र पांच प्रतिशत है। सरकार का प्रयास है इसे बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया जाए। इन्कम टैक्स की वसूली में वृद्धि  की जाए। माना जाता है कि इन्कम टैक्स की वसूली में वृद्धि करने का ज्यादा प्रभाव अमीरों पर पड़ेगा। इसलिए इन्कम टैक्स की वृद्धि को जनहित कार्य माना जाता है। दूसरी तरफ  इन्कम टैक्स का हिस्सा पांच प्रतिशत से 18 प्रतिशत हो जाने से उसी के अनुसार कुल राजस्व में जीएसटी का हिस्सा घटेगा, जिसे भी जनहितकारी माना जाता है, क्योंकि जीएसटी आम आदमी द्वारा खपत की गई वस्तुओं पर अदा किया जाता है। इस प्रकार इन्कम टैक्स में वृद्धि का दो प्रकार से जनहितकारी प्रभाव दिखता है। पहला कि अमीरों द्वारा इन्कम टैक्स अधिक अदा किया जाएगा। दूसरा कि आम आदमी द्वारा जीएसटी कम अदा किया जाएगा। लेकिन गहराई से पड़ताल करने पर इस कदम का प्रभाव कुछ और ही दिखता है। वर्तमान में देश के केवल चार प्रतिशत लोग जो सबसे ज्यादा अमीर हैं, इन्कम टैक्स अदा करते हैं। सरकार का प्रयास है कि इसे बढ़ा कर 18 प्रतिशत लोगों को इन्कम टैक्स के दायरे में लाया जाए। जो अमीरतम हैं, वे तो इन्कम टैक्स के दायरे में अभी ही हैं। अतः जिन नए लोगों को इन्कम टैक्स के दायरे में लाया जाएगा, वह अमीरतम से नीचे अथवा मध्यम वर्ग के होंगे। साथ-साथ सरकार का प्रयास है कि इन्कम टैक्स की अधिकतम दरों में कटौती की जाए। अब इनका प्रभाव देखिए। इन्कम टैक्स की अधिकतम दर में कटौती से अमीरतम लोगों को लाभ होगा, क्योंकि यदि आज वे अपनी आय का 30 प्रतिशत  दे रहे हैं, तो कल वे 25 प्रतिशत देंगे। दूसरी तरफ मध्यम वर्ग के लोगों को इन्कम टैक्स में लाने से भी आम आदमी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

वह आज तक इन्कम टैक्स नहीं अदा करता था। अब उसे इन्कम टैक्स अदा करना पड़ेगा। इस प्रकार मूल रूप से इन्कम टैक्स जनहितकारी होने के बावजूद उसमें जो प्रस्तावित सुधार हैं, वह आम आदमी के लिए हानिप्रद हैं। जैसे गांव में यदि बस सेवा की शुरुआत हो, तो वह जनहितकारी है, लेकिन यदि बस में बैठने की छूट केवल अमीरों को हो, तो वही बस सेवा जनहितकारी नहीं कही जा सकती है। इसी प्रकार अमीरों के लिए इन्कम टैक्स की दर कम करना और मध्यम वर्ग को इन्कम टैक्स में लाना वास्तव में जनहितकारी नहीं है। यद्यपि इन्कम टैक्स का मूल चरित्र जनहितकारी होता है। इसी प्रकार जीएसटी की भी गंभीरता से पड़ताल करनी चाहिए। सरकार का प्रयास है कि जीएसटी को सरल बनाया जाए, जिससे जीएसटी से वसूली अधिक हो। वर्तमान में जीएसटी के पांच स्लैब हैं और अधिकतम स्लैब 28 प्रतिशत का है। इन स्लैबों में 28 प्रतिशत का टैक्स उस विशेष माल पर वसूल किया जाता है, जो कि मूलतः अमीरों द्वारा खपत किया जाता है, जैसे लग्जरी कार पर। सरकार का मानना है कि जीएसटी से वसूली बढ़ाने के लिए स्लैबों की संख्या में कटौती होनी चाहिए। यदि स्लैब पांच से घटाकर तीन कर दिए जाएं या दो कर दिए जाएं, तो जीएसटी का कार्यान्वयन सरल हो जाएगा और सरकार को आशा है कि इसके सरल होने से जीएसटी की वसूली बढ़ेगी। जीएसटी की वसूली बढ़ने को आम तौर पर जनहितकारी कहा जा सकता है जैसा ऊपर बताया गया है। सरकार का प्रयास है कि कुल राजस्व में जीएसटी का हिस्सा कम किया जाए। जीएसटी का हिस्सा वसूल करने में सरकार को जीएसटी की दरें घटानी पड़ेंगी। यदि यह दरें सभी माल यानी लग्जरी कार और हवाई चप्पल जैसी सभी वस्तुओं पर घटा दी जाएं, तो इसका जनहितकारी प्रभाव होगा क्योंकि सभी क ो कम जीएसटी अदा करना पड़ेगा। लेकिन सरकार का प्रयास है कि जीएसटी का हिस्सा कम करते समय विशेषकर जो ऊंचे स्लैब हैं, उसमें कटौती की जाए। यानी जीएसटी की वसूली में जो कमी आएगी, उसका लाभ केवल अमीरों को होगा जैसे लग्जरी कार खरीदने पर। इस प्रकार यद्यपि जीएसटी मूल रूप से आम आदमी के लिए हानिप्रद होता है, चूंकि उसे जीएसटी अदा करना पड़ता है, लेकिन वर्तमान में जो प्रस्तावित जीएसटी में कटौती है, वह आम आदमी के लिए तनिक भी लाभप्रद नहीं होगी क्योंकि यह कटौती मुख्यतः अमीरों द्वारा खपत की गई वस्तुओं पर की जाएगी।

मूलरूप से इन्कम टैक्स आम आदमी के लिए लाभप्रद एवं जीएसटी आम आदमी के लिए हानिप्रद होता है। इसलिए इन्कम टैक्स में वृद्धि और जीएसटी में कटौती आम आदमी के लिए लाभप्रद होनी चाहिए थी, लेकिन वर्तमान में सरकार द्वारा प्रस्तावित इनमें जो परिवर्तन हुए उनका परिणाम इसके ठीक विपरीत है। इन्कम टैक्स में अमीरतम लोगों के लिए इन्कम टैक्स की दर में कटौती एवं मध्यम वर्ग को इसके दायरे में लाने से इन्कम टैक्स आम आदमी के लिए हानिप्रद हो जाता है। दूसरी तरफ  विलासिता की वस्तुओं पर जीएसटी के स्लैब को कम करने से यह भी आम आदमी के लिए हानिप्रद हो जाता है। अतः सरकार का इन्कम टैक्स में वृद्धि और जीएसटी में कटौती के मंतव्य का स्वागत करना चाहिए, परंतु वर्तमान में जिस रूप में इन परिवर्तनों का कार्यान्वयन किया जा रहा है, उसका प्रभाव ठीक इसके विपरीत होगा। इसलिए सरकार को इन मंतव्यों पर पुनर्विचार करना चाहिए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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