कठुआ कांड जिहाद का नया रूप

By: Apr 21st, 2018 12:05 am

विनोद कुमार

लेखक, गाजियाबाद से हैं

हिंदुओं की पुण्य भूमि ‘भारत’ को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए सैकड़ों वर्षों से जिहाद जारी है। इतिहास साक्षी है कि समय के साथ-साथ जिहाद भी नित्य नए-नए रूप लेते जा रहा है। इसी संदर्भ में राष्ट्रीय एकता व अखंडता पर प्रहार करने के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। इस दृष्टि में मुख्य रूप से देश का सीमांत प्रदेश जम्मू-कश्मीर सन् 1947 से ही सर्वाधिक पीडि़त राज्य बना हुआ है। क्या जम्मू-कश्मीर में दशकों से हो रहे अनेक अमानवीय आत्याचारों को भुलाया जा सकता है? उन समस्त अत्याचारों से केवल हिंदू समाज ही क्यों पीडि़त होता है? अधिक पीछे न जाते हुए 1990-91 में जब सामूहिक रूप से कश्मीर घाटी में कश्मीरी हिंदुओं की बच्चियों, युवतियों और महिलाओं की इज्जत लूटी और हत्या की गई, तब उस दहशतगर्दी पर क्यों नहीं कोई राजनीतिक चालबाज अपने तथाकथित प्रगतिशील वर्ग के साथ आगे आया? क्यों नहीं उस समय की भयावह पीड़ादायक परिस्थितियों में खदेड़े गए लगभग पांच लाख हिंदू, जो अपने ही देश में विस्थापित कश्मीरी हिंदू कहलाए जाने को विवश हैं। इसके प्रति 28 वर्षों बाद भी देश व प्रदेश की सरकारों के अतिरिक्त तथाकथित मानवाधिकारवादियों, बुद्धिजीवियों व पत्रकारों में भी कोई संवेदना नहीं जागी है। उस समय की सरकारें हिंदुओं पर हो रहे ऐसे अत्याचारों के प्रति उदासीन व निष्क्रिय होकर कहती थी कि यह तो आतंकवाद है, हम क्या कर सकते हैं। क्यों नहीं उस समय 100 करोड़ देशवासियों ने कश्मीरी हिंदुओं के पक्ष में धरना-प्रदर्शन करके उनको न्याय दिलवाने का प्रयास किया। लेकिन अभी तीन माह पूर्व जनवरी 2018 में कठुआ, जम्मू में एक मुस्लिम बालिका की निर्मम हत्या जो अत्यंत दुखदायी है। प्रदेश सहित देश का एक विशिष्ट वर्ग सड़कों पर धरना-प्रदर्शन करके अपनी पूर्वाग्रही हिंदू विरोधी मानसिकता के भ्रम में डटा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ तत्त्वों ने इस निंदनीय कांड की ओट में राजनीतिक चालबाजों को साथ लेकर अपनी रोटियां सेंकनी आरंभ कर दी हैं। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्त्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार अनेक आतंकी व देशद्रोही गतिविधियों की अनदेखी करते हुए लगभग तीन मास बाद कठुआ कांड के प्रति अचानक क्यों इतनी अधिक सक्रिय हो गई? कठुआ के हीरानगर के रसना गांव में इस कांड को लेकर अनेक अनसुलझी विवादों भरी चर्चाएं हो रही हैं। कुछ सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि वहां के प्रशासन ने पहले भी कठुआ कांड के कुछ दोषियों को पकड़ा था, परंतु उनको छोड़ा गया और कुछ अन्य तथाकथित दोषियों को पकड़ा गया है। क्या ऐसी विकट स्थिति में कोई निष्पक्ष जांच हो पाएगी? इसीलिए जिन लोगों को आरोपी बनाया गया हैं, उन्होने व उनके परिवार सहित वहां के अधिकांश लोगों ने राज्य सरकार से सीबीआई से जांच करवाने की मांग की है। परंतु क्या राज्य सरकार इसको स्वीकार करेगी इसमें संदेह है। फिर भी सच्चाई सामने आने में अभी समय अवश्य लगेगा। लेकिन क्या म्यांमार से अवैध रूप से घुसपैठ करके आए रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू में बसा कर वहां के जनसांख्यिकी अनुपात के असंतुलित होने की सच्चाई पर राज्य सरकार का चिंताग्रस्त न होना क्या सर्वथा अनुचित नहीं है? जम्मू की जनता ने ऐसे अवैध घुसपैठियों को वहां से बाहर करने के लिए अनेक आंदोलन किए, पर वहां की सरकार सहित केंद्रीय सरकार भी ऐसे राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय की प्राथमिकता से बचती हैं। देश व प्रदेश में हो रहे दीमक के समान ऐसे घुसपैठिए समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे हैं, जिनका जुनून ही जिहाद करना है, हमारे राजनीतिक चालबाजों व तथाकथित मान्यवरों को दिखाई ही नहीं देते हैं। संभवतः कठुआ के घटनाक्रम से कुछ-कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वहां रोहिंग्या घुसपैठियों के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान का यह दुष्परिणाम राष्ट्रवादी नागरिकों पर भारी पड़ रहा है। ऐसे में कठुआ जैसे प्रकरणों पर सच-झूठ की आड़ में चुनावी वातावरण में सत्ताहीनता की पीड़ा से पीडि़त कुछ नेतागण अपनी दूषित कूटनीतिज्ञता से सत्ताधारियों को कटघरे में खड़ा करने के लिए समाज को धार्मिक व जातीय आधार पर परस्पर भेदभाव बढ़ाने में सरलता से सफल हो जाते हैं। हमारे देश के अनेक बुद्धिजीवियों व पत्रकारों की सोच केवल हिंदू विरोध तक ही सीमित होने के कारण कोई ऐसी घटना जिसमें कोई मुस्लिम या ईसाई रूपी मानव उत्पीडि़त हो, तो तुरंत धरना व प्रदर्शन करके अपने आकाओं के षड्यंत्रों को आगे बढ़ाने में प्रभावी भूमिका निभाने से नहीं चूकते हैं। जबकि प्रायः देश में इस्लास्मिक आतंकवाद, जिहाद से अधिकांश पीडि़त हिंदुओं के पक्ष में ऐसे मान्यवर केवल बगलें झांकते दिखाई देते हैं। उन्हें वास्तव में देश व देशवासियों के प्रति कोई सरोकार नहीं है। संवेदनहीन तत्त्व अपने ऐसे ही आचरणों से राष्ट्रीय विकास में बाधक होते जा रहे हैं। ऐसे तथाकथित नेता व समाज सेवक समाज व राष्ट्र का भला करने के नाम पर नकारात्मक वातावरण बना कर समाज के विभिन्न भटके हुए युवा वर्ग को धरना-प्रदर्शन करने के लिए उकसाते हैं। विभिन्न विद्यार्थियों, युवाओं व बेरोजगारों को ऐसे ही आंदोलनों में कुछ लालच देकर व्यस्त करने का कार्य करके उनके भविष्य से खिलवाड़ करने का सिलसिला चलता आ रहा है। हमारे नेतागण कब तक धर्मनिरपेक्षता की वास्तविकता से बचते हुए विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के प्रति अधिक चिंतित होते रहेंगे और हिंदुओं की पीड़ाओं पर कोई प्रतिक्रिया भी नहीं करेंगे? क्योंकि ऐसा होने व करने से वे कम से कम सांप्रदायिक तो नहीं कहलाएंगे। यह दुःखद है कि हिंदुत्व व राष्ट्रीयत्व के लिए संघर्षरत भाजपा के एक महासचिव ने अपने उन मंत्रियों व कार्यकर्ताओं को ही दोषी बना दिया, जो कठुआ कांड पर हो रहे शासकीय कार्रवाई के विरोध में हिंदू एकता मंच के एक कार्यक्रम में सम्मिलित हुए थे। क्या गठबंधन की यह राजनीति भाजपा के उन सिद्धांतों को भी ठुकरा रही है जिसके कारण आज भाजपा दस करोड़ से अधिक सदस्यों वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। क्या आज सत्तालोलुपता और सिद्धांतहीनता एक-दूसरे के पूरक हैं? ऐसे में भाजपा को यह समझना होगा कि उसने करोड़ों राष्ट्रवादियों को निराश करके अपनी अदूरदर्शिता का परिचय दिया है। कठुआ कांड के मुख्य आरोपियों को बचाया जाएगा, तो यह राष्ट्रवादी समाज के साथ अन्याय होगा।

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