कब होगी हिमालयन रेजिमेंट की स्थापना

By: Apr 11th, 2018 12:05 am

घनश्याम सिंह

लेखक,  मंडी से हैं

मेरा अनुरोध भारत सरकार से है कि इस वीरभूमि के लिए अलग से एक रेजिमेंट खोल दी जाए, ताकि यहां के युवा उसमें भर्ती होकर देशरक्षा में सेवा दे सकें तथा देश और प्रदेश का नाम रोशन कर सकें। देश में जो युवा बेरोजगारी के कारण भटकने को मजबूर है, रेजिमेंट खोलने से उनकी बेरोजगारी भी कम हो जाएगी…

हम आज स्वच्छ खुली हवा में निश्चिंत होकर सांस ले रहे हैं, रात को निर्भय होकर गहरी नींद में खर्राटे ले रहे हैं, निधड़क हो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक घूम रहे हैं, पेट भर खाना खा रहे हैं तथा तरह-तरह के उत्सव निश्चिंत होकर मना रहे हैं, कोई भय नहीं है। यह सब देन हमें उन वीर सैनिकों की सजगता व कुर्बानी के कारण मिली है, जो सीमाओं पर सजग पहरा देकर देश की सीमाओं पर दुश्मन की गतिविधियों पर पैनी नजर रखते हैं तथा देश के अंदर व बाहर विभिन्न प्रकार की आपदाओं के समय देश के नागरिकों की रक्षा व सहायता करते हैं। अपनी जान की परवाह न करके इसे अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। यह सब आम नागरिक नहीं कर पाता। इसीलिए सैनिक को एक विशेष नागरिक का दर्जा प्राप्त है, क्योंकि सैनिक को दोहरे कानून लागू होते हैं, एक सैन्य, दूसरा नागरिक कानून। आम आदमी को केवल एक ही कानून लागू है। यह सच है कि विकसित देशों की सेनाएं विभिन्न प्रकार के आधुनिक हथियारों तथा उपकरणों से लैस हैं, परंतु हमारी सेनाएं भी दिन-प्रतिदिन इनकी बराबरी कर रही हैं। ध्यान रहे अनुशासन, हिम्मत तथा मनोबल में हमारी सेनाएं विश्व में पहले पायदान पर हैं। हमारे देश में सेना के अधिकारियों के हजारों पद रिक्त पड़े हैं, जबकि पड़ोसी देशों में इतनेपद रिक्त नहीं हैं।

भारत में पढ़े-लिखे युवा वर्ग अधिकतर डाक्टरी, इंजीनियर, वकालत, अध्यापन तथा कई नागरिक अन्य पेशों में जाना पसंद करते हैं, जबकि सेना की ओर लोगों की रुचि कम है। आपने किसी भी विषय में डिग्री या डिप्लोमा किया है, तो सेना में विभिन्न विषयों में सेवा करने का अवसर प्राप्त है। आपको याद होगा कि भारत की ऐतिहासिक रेलवे हड़ताल 1973 में हुई थी, तब सेना के जवानों-अधिकारियों ने स्वयं रेलें चलाकर पूरा प्रबंध करके इतिहास रचा था। सभी कार्य कुशलतापूर्वक चलाए। देश में बाढ़, सुनामी, भूकंप तथा सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं से देश को उबारा। समाज तथा देश की रक्षा करना सैनिक का परम धर्म है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जो मानव समाज व देश की रक्षा करता है, उसे जप-तप करने की आवश्यकता नहीं है, जो मानव देश और समाज की रक्षा में मर मिटता है, वह सीधा स्वर्गवासी हो जाता है। हमारे पूर्वज भी कहते हैं कि रण में मरना सीधा स्वर्ग सिधारना होता है। कहा भी गया है ‘जननी जने तो भक्तजन या दाता या शूर, नहीं तो जननी बांझ रहे काहे गंवाए नूर।’ हमारे समय व आज सेना में सुविधाएं अलग हैं। हमारे समय में वेतन भी बहुत कम था, शुरू में मुझे 26 रुपए मिले, रिटायर होने पर केवल 375 रुपए पेंशन मिली।

आजकल शुरू से ही लगभग बीस हजार वेतन सिपाही को मिलता है। वर्दी हमारी सूती हुआ करती थी, उसमें मांड या कलफ चढ़ाकर सख्त किया जाता था, आज टेरीकाट की सुविधाजनक वर्दी मिलती है, अब हथियार भी काफी हल्के हैं, पहले भारी रायफल 7.62 एसएलआर थी। खाना खाने के लिए प्लेट लेकर पंक्ति में खड़ा होना पड़ता था। अब सभी जगह मैस सिस्टम है। रहने के लिए भी अच्छी सुविधाएं हो गई हैं, जो पहले नहीं थीं। जब हमें पूर्वोत्तर क्षेत्रों व अन्य क्षेत्रों में सीमाओं पर सेवा काल में जाना पड़ता था, तो कई ट्रांजिट कैंपों में होकर जाना होता था। अंतिम पड़ाओं तक पहुंचने के लिए कई दिनों का सफर सैन्य ट्रकों में नीचे अपना बिस्तर डालकर उसमें बैठकर धक्के खाते हुए ऊबड़-खाबड़ सड़कों का सफर करके अपनी यूनिट में पहुंचते थे। इतने कष्ट के बाद दिल करता था कि अब क्या करें, जब बहुत समय बाद घर की याद आती थी, तो फिर वैसे धक्के खाते कहीं नीचे किसी शहर में रेल या बस से सफर शुरू होता था। सुना जाता है आजकल सैनिकों के सफर के लिए विशेष प्रकार की टैक्सियां तथा बसें प्रयोग में लाई जाती हैं। आज सैनिकों को हवाई सेवा भी प्रदान की जाती है। आजकल कोई सैनिक छुट्टी आता है, हवाई टिकट बुक करके अपने निकटवर्ती शहर में उतर कर तुरंत टैक्सी में घर के द्वार पर पहुंच जाता है। आज का सैनिक अपने परिवार से दिन में कई बार बात कर सकता है, लेकिन हम जब घर चिट्ठी भेजते थे, तो वह कई महीनों बाद घर पर मिलती थी तथा हमें भी घरवालों की कुशलता का पता महीनों बाद लगता था। पैसे मनीआर्डर के द्वारा घर भेजे जाते थे। पहले जब लड़ाई या शांति काल में किसी सैनिक की मृत्यु होती थी, तो घर को केवल टेलीग्राम किया जाता था, सैनिक का अंतिम संस्कार वहीं पर ही उसकी यूनिट में किया जाता था, बाद में उसका सामान घर पहुंचा दिया जाता था। कारगिल लड़ाई से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कानून पास कर दिया कि शहीद की पार्थिव देह एक ताबूत में रखकर शहीद के पैतृक गांव में पहुंचाकर और अंतिम संस्कार में सैन्य टुकड़ी सेना की तरह हथियारों से फायरिंग करके सलामी देगी। सरकार शहीद के परिवार की आर्थिक सहायता करके परिवार के सदस्य को रोजगार भी देती है। हिमाचल प्रदेश को वीरभूमि से जाना जाता है।

प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध, आजादी की लड़ाई, 1962 की भारत-चीन लड़ाई, 1965 में भारत-पाक युद्ध, 1971 में भारत-पाक संग्राम तथा कारगिल युद्ध में हमारे कई वीरों ने भाग लिया, जिसके कारण हमारे छोटे से प्रदेश का भारत के नक्शे व संसद में सम्मानजनक स्थान है। मेरा अनुरोध भारत सरकार से है कि इस वीरभूमि के लिए अलग से एक रेजिमेंट खोल दी जाए, ताकि यहां के युवा उसमें भर्ती होकर देश रक्षा में सेवा दे सकें। देश में जो भटके हुए युवा किसी के उकसावे में आकर बंदूक थामकर उग्रवाद का रास्ता अपनाते हैं, अंत में उन्हें मौत ही गले लगाती है। देशद्रोह में वे सीधे नरक को जाते हैं, पीछे छूटी तीन पीढि़यों तक उग्रवाद का कलंक लगकर तीनों पीढि़यां इससे उबर नहीं पातीं। अरे भटके हुए राही तुझे बंदूक उठाने का शौक है, तो चल विधिवत सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर, सम्मानजनक जीवन जी कर मान-सम्मान और धन कमा।

जीवनसंगी की तलाश हैतो आज ही भारत  मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें– निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन करे!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App