कश्मीरी पंडितों का असमंजस

By: Apr 9th, 2018 12:08 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

मैं उनसे इस बात पर सहमत हूं क्योंकि यह कोई हिंदू-मुसलमान का सवाल नहीं है और न ही इसे इस तरह का सवाल बनाया जाना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो सके। उनकी अधिकतर संपत्तियां अब भी अक्षुण्ण हैं। कुछ मामलों में, जहां जबरन संपत्तियों पर कब्जा हुआ है, वहां उन संपदाओं को वापस लिया जा सकता है। वास्तव में कश्मीर तकनीकी रूप से सक्षम लोगों की सेवाओं से वंचित हो गया है। इन उच्च योग्यता वाले लोगों की सेवाएं लेकर राज्य आर्थिक विकास की गाथा लिख सकता है …

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि कश्मीरी पंडितों को अपने मूल जन्म स्थान यानी घाटी का दौरा करना चाहिए। उनकी यह टिप्पणी घाव पर नमक छिड़कने के समान है। कश्मीरी पंडितों को वर्ष 1993 में घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। उनका एकमात्र दोष यह था कि वे 90 प्रतिशत मुस्लिम बहुल घाटी में हिंदू धर्म से संबंध रखते थे। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने एक सार्वजनिक वक्तव्य में स्वीकार किया है कि  घाटी के किसी भी मुसलमान ने कश्मीरी पंडितों के घाटी से निर्वासन का विरोध नहीं किया। वास्तव में यही सत्य है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया जिसके कारण राज्य में राज्यपाल शासन लगाना पड़ा। यह आरोप लगाया जाता है कि तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन कश्मीरी पंडितों के निर्वासन को सुगम बनाने के लिए मुख्यतः जिम्मेवार है। जिस दिन से उन्हें राज्य का राज्यपाल बनाया गया, उसी दिन से कश्मीरी पंडितों को बड़ी संख्या में घाटी से निर्वासन के लिए विवश किया गया। वास्तव में ऐसा जगमोहन की हिंदू समर्थक छवि के कारण हुआ। यह आरोप लगा था कि जब सैकड़ों आतंकवादियों के पास हथियार पाए गए थे, तो श्रीनगर में हरेक घर की तलाशी हुई थी। उनमें से अधिकतर को गिरफ्तार कर लिया गया था, किंतु आपरेशन के दौरान राज्यपाल की भूमिका पर प्रश्न उठाए गए। इसी आपरेशन के परिणामस्वरूप गावकदल नरसंहार हुआ था। संजय गांधी के बहुत करीब माने जाने वाले जगमोहन पर दिल्ली में सौंदर्यीकरण के नाम पर जोर-जबरदस्ती से झुग्गी-झोंपडि़यों को हटाने में शामिल होने का आरोप भी लगा था। कश्मीरी पंडितों ने बड़ी संख्या में घाटी को छोड़ना 1990 में उस वक्त शुरू किया जब आतंकवाद बढ़ने लगा।

आतंकवाद के बढ़ने का कारण कट्टरवादी इस्लाम व आतंकवादियों द्वारा उत्पीड़न व बढ़ती धमकियां थीं। वर्ष 2010 में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने नोट किया कि 808 कश्मीरी पंडित परिवार घाटी में अब भी रह रहे थे तथा घाटी में लौटने के लिए प्रोत्साहित करने के लक्ष्य से जो वित्तीय व अन्य सुविधाएं दी गईं, यह अभियान विफल रहा। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल की एक रपट के अनुसार वर्ष 1989 व 2004 के बीच क्षेत्र में इस समुदाय के 219 लोगों की हत्या की गई, लेकिन इसके बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ। हालांकि जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1989 में जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडित समुदाय के 700 लोगों के मारे जाने से संबंधित 215 मामलों को दोबारा खोलने से इनकार कर दिया। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कश्मीरी पंडितों से घर लौट आने की जो अपील की है, वह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है। उन्होंने यह अपील दिल्ली में कश्मीरी पंडितों से मुलाकात के दौरान की। उन्होंने अपनी अपील में कहा, ‘कश्मीरी पंडितों को घाटी का दौरा करना चाहिए तथा उनकी भावी युवा पीढ़ी को यह देखना चाहिए कि वास्तव में उनकी जड़ें हैं कहां? हम सभी तरह के इंतजाम करेंगे।

पूर्व में जो कुछ हुआ है, वह दुर्भाग्य की बात है, किंतु अब हमें आगे की ओर बढ़ना होगा।’ वास्तव में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी आग्रह किया कि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की किताब के अनुसार आचरण करते हुए पाकिस्तान से संवाद की पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करती हूं कि वह पाकिस्तान से उसी तरह संवाद की पहल करें जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी जी ने किया था। न तो हम, न ही पाकिस्तान इस स्थिति में है कि हम एक और युद्ध लड़ें। दोनों देश यह जानते हैं कि अगर इस बार युद्ध हुआ तो बाकी कुछ नहीं बचेगा। दोनों देश अपना काफी कुछ खो देंगे।’ मैं उनसे इस बात पर सहमत हूं क्योंकि यह कोई हिंदू-मुसलमान का सवाल नहीं है और न ही इसे इस तरह का सवाल बनाया जाना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी हो सके। उनकी अधिकतर संपत्तियां अब भी अक्षुण्ण हैं। कुछ मामलों में, जहां जबरन संपत्तियों पर कब्जा हुआ है, वहां उन संपदाओं को वापस लिया जा सकता है। मुझे याद है कि हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने इस प्रश्न को हिंदू-मुसलमान प्रश्न मानने से जोरदार तरीके से इनकार किया था। उस वक्त कट्टरवाद के डंक ने गिलानी को काटा नहीं था। उसने अपने विचार अभी भी नहीं बदले होंगे। परंतु उसकी खामोशी से उस पर संदेह होता है। उसे यह दोबारा प्रतिस्थापित करना चाहिए कि कश्मीरी पंडित कश्मीरी संस्कृति का बेजोड़ हिस्सा हैं तथा यह हिंदू-मुसलमान प्रश्न नहीं है। वास्तव में गिलानी ने एक बार मुझसे कहा था कि उसने गलत तरीके से यह कह दिया था कि कश्मीरी पंडितों का मसला कश्मीर के पूरे मसले के साथ सुलझाया जाना चाहिए। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यह कहकर एक अनावश्यक मसले को फिर से जीवित कर दिया है कि कश्मीर विभाजन का एक अनंत कार्य है। वह चाहते हैं कि राज्य को धार्मिक आधार पर बांटा जाए। इसका मतलब यह हुआ कि जिस आधार पर भारत का विभाजन हुआ है, उसी आधार का फैलाव जम्मू-कश्मीर तक किया जाए। तब तो जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का यह विचार भी सही माना जाना चाहिए कि राज्य में एक ऐसा क्षेत्र बनाया जाना चाहिए जहां कश्मीरी पंडित सुरक्षित रूप से रह सकें। कश्मीरी पंडितों में से करीब तीस हजार इस समय कश्मीर में ही रह रहे हैं, जबकि उनकी कुल आबादी करीब चार लाख है। जब तक शेख अब्दुल्ला का कश्मीर के मसले पर आधिपत्य था, तब तक उन्होंने धर्म को राजनीति में कोई भूमिका निभाने से रोके रखा। वह अकसर कहा करते थे कि वह राज्य को पाकिस्तान से जोड़ने का इस आधार पर विरोध करते हैं कि जम्मू-कश्मीर एक पंथनिरपेक्ष राज्य है। वह संप्रदायवाद के बजाय बहुलतावाद को प्रमुखता देते थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी शेख अब्दुल्ला ने मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग करने वाली मुस्लिम लीग के बजाय कांग्रेस का साथ दिया था। वास्तव में वह सही अर्थों में पंथनिरपेक्ष थे, लेकिन वह इस बात को लेकर संशकित थे कि भारत लंबे समय तक पंथनिरपेक्ष रहेगा भी या नहीं? कश्मीरियों को यह आभास हो अथवा न हो, परंतु यह सच्चाई है कि कश्मीर प्रशिक्षित लोगों की सेवाओं से वंचित हो गया है। कश्मीरी पंडित अब दूसरे राज्यों में रह रहे हैं और अपनी उच्च योग्यता के कारण उन्होंने वहां काम पा लिए हैं।

वास्तव में कश्मीर तकनीकी रूप से सक्षम युवाओं की क्रीम से वंचित हो गया है। ये युवा कश्मीर के विकास में योगदान दे सकते थे। इसके बावजूद श्रीनगर से ऐसे प्रयास होने चाहिएं जिससे पंडितों की वापसी हो। इससे कश्मीर का पंथनिरपेक्ष स्वरूप लौट आएगा, वह स्वरूप जो वर्षों से इसका रहा है। इस मोर्चे पर प्रयासों के अभाव से शेष देश, जहां कश्मीरी अब काज-काम करके लाभ की स्थिति में हैं, में अलगाव ही पैदा होगा।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com

जीवनसंगी की तलाश हैतो आज ही भारत  मैट्रिमोनी पर रजिस्टर करें– निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन करे!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App