कानूनी दस्तावेजों की अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण

By: Apr 3rd, 2018 12:05 am

एसआर आजाद

लेखक,  बिलासपुर से हैं

बिलासपुर नगर के भाखड़ा बांध विस्थापितों के पुनर्वास के लिए न्यू बिलासपुर टाउन बसाया गया। नियोजित ढंग से बसाए गए नए नगर तथा विस्थापितों की दुर्दशा का दुखद पहलू यह है कि उनके हितों तथा उनसे संबंधित प्रामाणिक दस्तावेजों-लैसी इन पोजेशन के अवार्ड, लीज डीड, मास्टर प्लान, भवन की अपू्रव्ड ड्राइंग आदि की निरंतर अनदेखी की जा रही है…

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की ‘बहु-उद्देश्यीय जल विद्युत परियोजनाओं’ के निर्माण की नीति के अंतर्गत 1960 के दशक में स्वतंत्र भारत के प्रथम विकास मंदिर को मूर्त रूप दिया गया। जिला बिलासपुर के भाखड़ा (गांव) नामक स्थान पर सतलुज नदी पर विश्व के सबसे ऊंचे बांध का निर्माण किया गया। भाखड़ा से लेकर सलापड़ तक लगभग 70 किलोमीटर लंबी झील (1700 फुट जल स्तर) अस्तित्व में आई, जो विश्व की बड़ी मानव निर्मित झीलों में शुमार है। बिलासपुर जिला के 250 के करीब रसते-बसते गांव और 300 साल पुराना बिलासपुर नगर (जिसमें 7वीं से 9वीं शताब्दी में निर्मित शिखर शैली के भव्य मंदिर, शृंखलाबद्ध ढंग से सतलुज नदी के वाम तट निर्मित, भी विद्यमान थे) अपनी-अपनी अनेक मूल्यवान धरोहरों, प्रकृति प्रदत्त स्वर्ग तुल्य सुविधाओं तथा समृद्ध संस्कृति सब विवश होकर झील में समा गए। जलमग्न बिलासपुर नगर के भाखड़ा बांध विस्थापितों (अवार्डी) के पुनर्वास हेतु न्यू बिलासपुर टाउन बसाया गया। 1960 के आसपास एक मास्टर प्लान और बाइलॉज के मुताबिक एनबीटी मंडल हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग के निर्देशानुसार व देखरेख में इस शहर के निर्माण को अंजाम दिया गया। इसे स्वतंत्र भारत के प्रथम पहाड़ी नियोजित नगर होने का गौरव प्राप्त है। छह सेक्टरों वाले इस नियोजित नगर में तीन जनता सेक्टर हैं, सेक्टर-1(डियारा), सेक्टर-2 (रौड़ा-1) और सेक्टर 2(रौड़ा-2) मेन मार्केट सेक्टर छह और औद्योगिक क्षेत्र सेक्टर (निहाल)। मकानों के प्लाट के दो साइज हैं। 30×60 और 37.6×48, हाउस कम शॉप के प्लाट का साइज 15×60 तथा दुकान के प्लाट का साइज 15×30 है। गवर्नमेंट सेक्टर चंगर में केवल सरकारी भवन हैं। इनमें सरकारी कार्यालय, न्यायालय, बैंक, अस्पताल, प्राइमरी स्कूल, कर्मचारियों-अधिकारियों के श्रेणी अनुसार क्वार्टर तथा सर्किट हाउस और रेस्ट हाउस शामिल हैं। विस्थापितों को डिवेलप्ड प्लाट आबंटित किए गए तथा सभी नागरिक सुविधाएं नियोजित ढंग से उपलब्ध करवाई गईं। प्रत्येक मकान-दुकान तक पक्की मोटरेबल सड़कों का निर्माण किया। सड़कों के दोनों तरफ एल टाइप नालियां बनाकर छायादार पेड़ लगाए गए। मकान-दुकानों के आगे और पीछे पक्की ईंटों और डिं्रकिंग वाटर सप्लाई लाइन तथा उस पर सीवरेज लाइन बिछाई गई।

स्ट्रीट लाइट्स की व्यवस्था की गई। आवश्यकता अनुसार सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण तथा सार्वजनिक पेयजल लगवाए गए। यह भी उल्लेखनीय है कि विस्थापितों को आबंटित प्लाटों की निर्धारित धनराशि की अदायगी के बाद लीज डीड भरने पर ही प्लाट का विधिवत कब्जा दिया गया। लोक निर्माण विभाग द्वारा अपू्रव्ड ड्राइंग (तीन कापियां-एक प्रति 16/-एक लैस-इन पोजेशन, एक लोनि विभाग और नगरपालिका कार्यालय) के अनुसार केवल दो मंजिला भवन निर्माण हुआ। न्यू टाउन में सबसे पहले भवन निर्माण करने वाले को 500 इनाम राशि देने की घोषणा की गई। अनुसूचित जाति से संबंधित प्रति अवार्डी विस्थापित को करीब 1500 रुपए कीमत की निर्माण सामग्री अनुदान के रूप में दी गई। विशेष दर्जा प्राप्त इस नगर निर्माण से संबंधित एक और दिलचस्प तथ्य वर्णनीय है। अलग-अलग ईंट के भट्ठों पर दो किस्म की ईंटें बनाई गईं।

सरकारी निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाली ईंटों पर एनबीटी (न्यू बिलासपुर टाउनशिप) तथा निजी प्रयोग की ईंटों पर एनबीटीसीएस (न्यू बिलासपुर टाउनशिप सिविल सप्लाई) का ठप्पा लगा हुआ था। जिन प्लाटों के दायीं अथवा बायीं ओर खाली जगह थी, उन्हें एयर, लाइट व व्यू की सुविधा के लिए केवल खिड़कियां लगाने की छूट दी गई। अन्य किसी प्रकार से इस्तेमाल करने की कदापि नहीं। इन प्लाटों की कीमत सामान्य से अधिक वसूल की गई। भवनों के नक्शों में रसोईघर-शौचालय का प्रावधान पीछे की ओर रखा जाता, जिससे कनेक्शन के लिए मात्र दस-15 फुट पाइप लगती थी। सीवरेज लाइन के ऊपर खाली जगह सर्विसलेन के रूप में इस्तेमाल होती। इस ढंग से नियमानुसार तथा नियोजित ढंग से बसाए गए नए नगर तथा विस्थापितों की दुर्दशा का दुखद पहलू यह है कि उनके हितों तथा उनसे संबंधित प्रामाणिक दस्तावेजों-लैसी इन पोजेशन के अवार्ड, लीज डीड, मास्टर प्लान, भवन की अपू्रव्ड ड्राइंग आदि की निरंतर अनदेखी की जा रही है, जिनका संज्ञान लिया जाना अत्यावश्यक है। इन्हीं कानूनी दस्तावेजों के आधार पर लोक निर्माण द्वारा अवैध कब्जों और निर्माण तथा भूमि आबंटन की पैमाइश करके आकलन किया जाना चाहिए, क्योंकि इसी विभाग ने अपनी देखरेख में न्यू बिलासपुर टाउनशिप में नागरिक सुविधाओं तथा सरकारी-गैर सरकारी भवनों के निर्माण में काबिलेतारीफ भूमिका निभाई है। 1960 में इस अजूबे को धरती पर स्थापित करने वाले विभाग को इनाम देना तो दूर, किसी ने दो शब्द उसकी प्रशंसा में नहीं कहे। विभाग को निर्माण कला में अद्भुत कार्य करने के लिए अवार्ड देना तो निश्चित तौर पर बनता ही है। बिलासपुर ने खुद को मिटाकर देश के कई राज्यों को रोशन किया है। जिन लोगों ने इस यज्ञ में आहुति दी, वे आज भी न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं। सरकार उन लोगों का भी साथ दे, जो अभी भी अपनी कुर्बानी की कीमत नहीं वसूल पाए हैं।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

 -संपादक


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