कैग हमें बचा लो…

By: Apr 16th, 2018 12:05 am

कैग की रिपोर्ट में लगभग हर विभाग की लापरवाही सामने आई है। विभिन्न महकमों को करोड़ों का नुकसान रिपोर्ट में दर्शाया गया है। बड़ी बात यह है कि अगर सरकारी खजाने को नुकसान न हो तो प्रदेश तरक्की के लंबे डग भर सकता है। हर साल ऐसे ही चपत लगती रही तो यकीनन  हिमाचल में बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा। किस तरह लापरवाही और चोरी का घुन प्रदेश की अर्थव्यवस्था को  काट रहा है, बता रहे हैं शकील कुरैशी…

प्रदेश के नियंत्रक महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट हर साल सामने आती है, जिसमें  सरकारी व्यवस्थाओं की खामियों को गिनाया जाता है। बावजूद इसके इन खामियों को दूर नहीं किया जाता क्योंकि हमारी व्यवस्था में ही घुन लग चुका है। न अधिकारी इसे गंभीरता से लेते हैं और न ही सरकारें। हर साल महालेखाकार विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करते हैं, बाकायदा सरकार को उन कमियों को दूर करने का मौका भी दिया जाता है, मगर अंजाम ढाक के तीन पात। अब जयराम सरकार ने यह भरोसा दिलाया है कि कैग द्वारा उठाए सवालों का माकूल जवाब दिया जाएगा और सरकारी कार्यप्रणाली में सुधार को गंभीरता से कदम उठाए जाएंगे, परंतु इस भरोसे पर वह कितना खरा उतरते हैं,यह कैग की अगली रिपोर्ट बताएगी। फिलहाल यह बता दें कि कैग ने प्रदेश सरकार के लगभग हरेक उस विभाग को निशाने पर लिया है जो कि सरकार को किसी न किसी रूप में राजस्व जुटाता है। ऐसे भी कई विभाग हैं, जिन्होंने राजस्व जुटाने में कोताही बरती। वहीं,जनता के पैसे का दुरुपयोग भी किया। इनसे जुड़े अधिकारियों पर ऑडिट पैरा तो बन जाते हैं परंतु इनकी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं होता। हालांकि कुछ मामलों में एसीआर में इसका जिक्र जरूर होता है परंतु आपसी मिलीभगत से सब कुछ ठीक कर दिया जाता है। आलम यह है कि एक साल बाद फिर से कैग की रिपोर्ट आती है और पन्ने हैं कि भरते ही जाते हैं।

आबकारी विभाग को करोड़ों की चपत

कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कई मामलों में ढिलाई बरतने के चलते सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। जिला ऊना की एक कंपनी में स्पिरिट का कम उत्पादन हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप 21.23 लाख के आबकारी शुल्क का अल्प उदग्रहण हुआ। इसी तरह से जिला सोलन एवं सिरमौर में दो शराब फैक्टरियों को बीयर के बोतलीकरण टैंकों के चरण तक पहुंचने के बाद नियमों में किसी प्रावधान के बिना बीयर उत्पादन में 14.88 लाख बल्क लीटर की क्षति की स्वीकृति के चलते 2.44 करोड़ के आबकारी शुल्क की हानि पहुंची।   2014-15 में उठाए गए कोटे की तुलना में शराब के कोटे के कम आबंटन के चलते 4.12 करोड़ की अनुज्ञप्ति फीस कम वसूल की गई। इसी तरह से आबकारी विभाग ने 10.01 करोड़ रुपए की लाइसेंस फीस भी कम वसूल की, वहीं 4.94 करोड़ की अतिरिक्त फीस न्यूनतम गारंटिड कोटा को कम उठाने पर विभाग ने दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैट, आईटी प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन में नियमों के तहत अनुपालना की कमी, प्रवेश कर की कम वसूली, मनोरंजन कर नहीं लगाने से संबंधित 27.37 करोड़ रुपए की अनियमितताएं सामने आई हैं। 2.41 करोड़ के प्रवेश कर के प्रति 1.38 करोड़ का प्रवेश कर लिया गया, जिससे सरकार को 1.03 करोड़ का कम एंट्री टैक्स मिल पाया।  यह भी बताया कि वर्ष 2008-09 व 2009-10 के लिए एक व्यापारी के कर निर्धारण के दौरान सकल बिक्री से 6.39 करोड़ की आय को निकालने के परिणामस्वरूप 25.52 लाख के राजस्व की हानि विभाग को हुई। वहीं, सकल बिक्री में से 61.42 करोड़ आय को निकालने के कारण राज्य सरकार को 7.68 करोड़ के राजस्व की हानि हुई है।  कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि आबकारी एवं कराधान विभाग ने केबल आपरेटरों से मनोरंजन शुल्क नहीं वसूला, जिस कारण 9.93 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है। ऑडिट में सामने आया है कि आबकारी शुल्क की हानि, लाइसेंस फीस की कम वसूली व अतिरिक्त फीस का उदग्रहण नहीं करने से सरकार को 132.46 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है।

260 करोड़ वापस न करना सही

किन्नौर की विवादित जांगी-थोपन-पोवारी परियोजना के 260 करोड़ रुपए की राशि का उल्लेख कैग की रिपोर्ट में भी है।  नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में भी इस परियोजना का विस्तार से उल्लेख किया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पूर्व सरकार यदि 260 करोड़ रुपए की जब्त की गई राशि को वापस लेने का फैसला लेती, तो वह गलत होता, क्योंकि नियमों के अनुसार परियोजना से संबंधित कंपनी पर कार्रवाई की गई है। यदि सरकार पैसा वापस लौटाए तो उसे राजस्व की हानि होगी और यह नियमों का भी सरासर उल्लंघन होगा।

रिपोर्ट में हर विभाग निशाने पर

कैग ने अपनी इस रिपोर्र्ट में राज्य के आबकारी एवं कराधान विभाग, लोक निर्माण विभाग, बिजली बोर्ड, आईपीएच विभाग, कृषि, बागबानी, राजस्व, स्वास्थ्य  व पुलिस समेत कुछ अन्य बोर्डों व निगमों के साथ ग्रामीण विकास व पंचायती राज विभाग की कारगुजारियों को भी उजागर किया है। कैग ने बताया है कि किन-किन मामलों में विभागीय कार्यप्रणाली की ढिलाई के चलते सरकार को चूना लगा।

राजस्व नुकसान का लेखा-जोखा

कैग अपनी रिपोर्ट में उन मामलों को इंगित करता है, जिसमें सरकारी राजस्व को नुकसान होता है। विभाग के अधिकारी तय नियमों को पूरा किए बिना प्रक्रिया पूरी करते हैं, जिससे सरकार को राजस्व हानि होती है। हर साल इन्हीं विभागों की ऑडिट रिपोर्ट में ऐसे ही मामले सामने आते हैं, मगर इन पर विभागीय कार्यप्रणाली में सुधार नहीं हो पाता। सरकार इसे गंभीरता से ले, तो ही संभव है कि कार्रवाई हो।

नियमों से अनजान होते हैं निचले स्तर के कर्मी

साल-दर-साल कैग की रिपोर्ट आती है, मगर उस पर गंभीरता से इस पर कदम नहीं उठाया जाता, जिसके बाद भी ऐसे मामले सामने आते हैं। कुछ मामलों में ऐसा पाया जाता है कि अधिकारियों को निचले स्तर पर नियमों की पूरी जानकारी नहीं होती, जिसके चलते वे गलत प्रक्रिया को अपना लेते हैं, जिससे सरकार को नुकसान होता है।

बाद में कुछ नहीं होता

वर्तमान में कैग रिपोर्ट पर कार्रवाई की बात करें तो यह रिपोर्ट पिछले सालों की है और तब प्रदेश में दूसरी सरकार थी। अब सरकार बदल चुकी है लिहाजा पूर्व सरकार में बरती गई अनियमितताओं को लेकर वर्तमान सरकार भी उतनी गंभीर नहीं होगी। हालांकि मुख्यमंत्री ने कार्रवाई का ऐलान किया है, लेकिन हर बार सरकार बदलने के बाद कोई इसकी पूछ नहीं करता है।

विधानसभा समितियां भी देती हैं सुझाव

विधानसभा की अलग-अलग समितियां भी इस पर जवाब तलब करके कार्रवाई के लिए सुझाव देती हैं मगर कोई प्रभावशाली कार्रवाई नहीं हो पाती, जिस पर खुद महालेखाकार भी कई दफा नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।

स्टांप शुल्क में भी नुकसान

कैग रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दूसरे विभागों के साथ-साथ सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने में राजस्व विभाग भी पीछे नहीं रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 92.03 लाख के स्टांप शुल्क तथा पंजीकरण फीस की कम वसूली हुई। नए उद्योगों की स्थापना के सत्यापन के बिना औद्योगिक इकाइयों के बिक्री विलेखों पर स्टांप शुल्क के 50 प्रतिशत की छूट के परिणामस्वरूप 60.68 लाख के स्टांप शुल्क व पंजीकरण फीस का कम उदग्रहण किया गया। कैग ने रिपोर्ट में बताया है कि 11 उपपंजीयकों ने 27.58 करोड़ की विचारणीय राशि हेतु 314 दस्तावेज दर्ज किए थे तथा संशोधित दरों के आधार पर 1.66 करोड़ के उदग्रहण स्टांप शुल्क के प्रति पुरानी दरों पर 1.38 करोड़ का स्टांप शुल्क उदग्रहित किया था, जिसके चलते 28.00 लाख के स्टांप शुल्क का अल्पोदग्रहण हुआ।

पीडब्ल्यूडी ने गंवाए 1.59 करोड़

साल भर सड़कों की खुदाई होती है, जिसके लिए लोक निर्माण विभाग पैसा भी वसूल करता है, परंतु यहां लोक निर्माण विभाग तय नियमों के तहत राशि वसूलने में विफल रहा है। हमीरपुर मंडल में इस तरह का मामला सामने आया है । कैग रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि हमीरपुर मंडल में विभिन्न सड़कों को खोदने से पहुंचाई गई क्षतियों की पुनःप्रतिपूर्ति के लिए दो टेलिकाम कंपनियों से 4.36 करोड़ रुपए की राशि ली गई।  ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने के लिए 49.075 किलोमीटर की कुल सड़क लंबाई में से लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्धारित दरों के प्रति गलत दरें लागू करके 35.700 किलोमीटर सड़क के अनुमान मंडल ने तैयार किए। इसके परिणामस्वरूप 1.59 करोड़ रुपए की कम वसूली की गई, जिसका नुकसान राज्य सरकार को पहुंचा।

सार्वजनिक उपक्रमों से फूटी कौड़ी तक नहीं आई

महालेखाकार ने वर्ष 2016-17 की अपनी रिपोर्ट में प्रदेश सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निशाने पर लिया है। रिपोर्ट में कहा है कि कुल 21 क्रियाशील सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में से 12 के ऑडिट में सामने आया है कि मात्र 2 निगमों ने ही लाभांश कमाकर सरकार को दिया। शेष 10 ने सरकार को लाभ के रूप में फूटी कौड़ी तक नहीं दी।  कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में निवेश का अधिक जोर ऊर्जा क्षेत्र पर रहा। 12 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने 24.29 करोड़ का कुल लाभ अर्जित किया, जिसमें से मात्र दो ने 2015-16 के दौरान 1.89 करोड़ का लाभांश घोषित किया। लाभ अर्जित करने वाले शेष 10 सार्वजनिक उपक्रमों ने सरकार को लाभांश का हिस्सा नहीं दिया।

बिजली बोर्ड नहीं कर पाया वसूली

कैग ने कहा है कि विभिन्न फील्ड इकाइयों से प्राप्त मासिक लेखों का कंपनी के मुख्य बैंक खाते के साथ अनिवार्य मैनुअल मिलान का संचालन करने में विलंब हुआ, जिसके चलते बिजली बोर्ड को 5.36 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों में जमा संशोधित वेतन तथा भत्तों के लाभ वापस लेते हुए ब्याज के रूप में भुगतान किए गए 37.05 लाख के वित्तीय लाभ की वसूली नहीं की थी। इसके साथ तय विद्युत लोड को पकड़ने का कोई तंत्र नहीं होने के चलते 36.78 लाख रुपए का नुकसान भी बोर्ड को उठाना पड़ा है।

एचपीएमसी को 2.61 करोड़ का नुकसान

कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सेब जूस मिश्रण, सेब के खराब होने, ईंधन की अधिक खपत तथा वितरण को कमीशन के भुगतान के कारण बाजार हस्तक्षेप स्कीम के क्रियान्वयन पर 2.61 करोड़ रुपए की हानि एचपीएमसी को उठानी पड़ी है।

पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल

कैग ने पुलिस महकमे द्वारा सीसीटीवी कैमरों की खरीद पर सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने जहां 285 कैमरे खरीदने के लिए एक करोड़ रुपए की राशि जारी की थी, लेकिन सीसीटीवी कैमरों के लिए ओपन टेंडर नहीं करवाए गए। इसके चलते 62.74 लाख में मात्र 27 कैमरे खरीदे जा सके। यही नहीं गुणवत्ता की दृष्टि से भी ये सीसीटीवी कैमरे सही नहीं पाए गए।

2.25 करोड़ नहीं ले पाया विभाग

वर्ष 1999 से 2014 तक प्रदेश सरकार ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे 19 चिकित्सा अधिकारियों से 2.25 करोड़ की राशि नहीं ली ।  कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रदेश सरकार ने राज्य के 19 चिकित्सकों से यह राशि नहीं ली है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है कि प्रदेश सरकार ने 1.47 करोड़ व्यय करने के बाद और बांड राशि न देने पर ऐसे चिकित्सा अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की।

विधानसभा समिति केपास आती है पेशी

कैग द्वारा उठाए जाने वाले मामलों को विधानसभा की अलग-अलग समितियों को भेजा जाता है। विधानसभा समितियां इसमें विभाग के सचिव स्तरीय अधिकारियों व विभागाध्यक्षों से जवाब तलब करती हैं, जहां उनको जवाब देना पड़ता है। मामलों को दुरुस्त करने के लिए जिस स्तर पर गड़बड़ी हो वहां पर ठीक करने की कोशिश होती है और नियम पूरे नहीं करने वाले अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की जाती है। उनकी एसीआर पर इसका सीधा फर्क पड़ता है।

आर्थिक संकट की ओर कैग का इशारा

कैग की रिपोर्ट का महत्त्वपूर्ण पहलू प्रदेश सरकार की ओवरआल आर्थिक दशा पर था। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में सबसे पहले सरकार को उसकी वित्तीय स्थिति को लेकर चेताया है, जिसे खुद सरकार भी मानती है बावजूद इसके प्रदेश को कर्ज के सहारे ही चलना पड़ेगा, जिसे खुद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने माना है।  हिमाचल प्रदेश पर 46 हजार 500 करोड़ रुपए का बड़ा कर्जा है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार पर आर्थिक संकट का दबाव बढ़ रहा है और दबाव बढ़ने की वजह कर्ज का भुगतान करने के लिए भारी भरकम रकम की जरूरत होना है। प्रदेश सरकार को आने वाले सात साल में 55 फीसदी कर्ज  वापस करना है, जो उसके सामने बड़ी चुनौती है।  कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच साल में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज का बोझ 50 फीसदी तक बढ़ गया है। प्रति व्यक्ति कर्ज का बोझ 65444 रुपए तक पहुंच चुका है। अगर सरकार कैग की रिपोर्ट से सबक लेकर कार्रवाई करे तो आने वाले आर्थिक संकट को काफी हद तक टाला जा सकता है।

…तो अर्थव्यवस्था चरमराएगी

हैरानी की बात तो यह है कि प्रदेश सरकार की देनदारियां जीडीपी का 38 फीसदी तथा राजस्व प्राप्तियों का 180 फीसदी थीं। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि राज्य सरकार को 3096 करोड़ के ऋणों का भुगतान आगामी साल में करना है। ऋण राशि का 31 फीसदी अर्थात 10008 करोड़ आगामी एक से पांच सालों में चुकाना है, जबकि 19466 करोड़ की ऋण राशि का भुगतान पांच साल में करना होगा। भारी भरकम ऋण के भुगतान से प्रदेश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।

15 फीसदी बढ़ी देनदारियां

महालेखाकार की इस रिपोर्ट में प्रदेश की अर्थव्यवस्था को लेकर कोई सुखद तस्वीर नहीं दिखाई गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते सालों की तुलना में प्रदेश सरकार की राजकोषीय देयताएं 15 फीसदी बढ़ी हैं। देनदारियों के आंकड़े पर गौर करें  तो कैग ने इसे 47244 करोड़ बताया है। साफ है कि सरकार ने साल 2016-17 में भारी भरकम खर्च को पूरा करने के मकसद से कर्ज जुटाए।

पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता नहीं

कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2016-17 में  कर्मचारियों को डीए के भुगतान के अलावा वेतन व अन्य लाभों के भुगतान पर 18 फीसदी का इजाफा हुआ। इस मद पर सरकार ने 1508 करोड़ की रकम खर्च की। राज्य सरकार ने पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता नहीं दी। प्रदेश के कुल व्यय का 11.17 फीसदी पैसा 2015-16 में तथा 10.89 फीसदी राशि 2016-17 में पूंजीगत खर्चों पर व्यय की। रिपोर्ट में कहा गया है कि  यह रकम विशेष श्रेणी दर्जा प्राप्त राज्यों की औसत खर्च से कम है।

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