क्या एक संघीय गठबंधन संभव है ?

By: Apr 2nd, 2018 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

वास्तव में एक संघीय ढांचे की संभावना को देखने के लिए गैर भाजपा शासित राज्यों के कुछ नेता एक-दूसरे के संपर्क में हैं। अगर आप पीछे की ओर देखें, तो जनता पार्टी एक संघीय ढांचा था। यह पार्टी शासन की अपनी पूरी अवधि पूरा नहीं कर पाई क्योंकि इसके नेता आपस में ही लड़ते रहे। विशेषकर, टॉप के नेता जैस मोरारजी देसाई व चरण सिंह सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे से लड़ते रहे और जनता की अपेक्षाओं पर वे खरे नहीं उतर पाए। वास्तव में जब धर्म निरपेक्ष शक्तियां बंट जाती हैं तो कट्टरवादी ताकतों को सिर उठाने का मौका मिलता है…

जब कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि वे वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी को फिर से सत्ता में नहीं आने देंगी, तो उन्होंने विपक्ष के स्तर पर संयुक्त कार्रवाई का भी संकेत दिया। इसका यह अर्थ भी है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दूसरी बार इस पद पर नहीं देखना चाहती हैं। वैसे यह एक सच्चाई है कि कांग्रेस अपने स्तर पर भाजपा की सरकार अथवा मोदी के लिए कोई चुनौती खड़ी करने की स्थिति में नहीं है। आज की जो स्थिति दिख रही है, उसके अनुसार इस बात की संभावनाएं हैं कि मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन सकते हैं और एनडीए सत्ता पर काबिज रहेगा। हालांकि हाल में हुए लोकसभा व विधानसभा के उपचुनाव में भाजपा को कुछ झटके भी लगे, इसके बावजूद वह एक के बाद एक राज्य में अपनी सत्ता कायम करती जा रही है। वह धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से आगे बढ़ती जा रही है। इसके बावजूद वर्ष 2019 के आम चुनाव अभी होने हैं। जल्द होने जा रहे कर्नाटक चुनाव व उसके बाद कुछ अन्य चुनावों में भाजपा की उपलब्धियां मोदी के फिर सत्ता में आने के लिए उनकी ताकत व कमजोरियों की परीक्षा लेंगी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने वर्ष 2019 में भाजपा का मुकाबला करने के लिए गैर भाजपा शक्तियों को एकजुट करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसमें कांग्रेस की क्या भूमिका होगी, इस संबंध में ममता का कहना है कि वह सोनिया गांधी से हर रोज संपर्क करके चर्चा कर रही हैं।

वास्तव में एक संघीय ढांचे की संभावना को देखने के लिए गैर भाजपा शासित राज्यों के कुछ नेता एक-दूसरे के संपर्क में हैं। अगर आप पीछे की ओर देखें, तो जनता पार्टी एक संघीय ढांचा था। यह पार्टी शासन की अपनी पूरी अवधि पूरा नहीं कर पाई क्योंकि इसके नेता आपस में ही लड़ते रहे। विशेषकर, टॉप के नेता जैस मोरारजी देसाई व चरण सिंह सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे से लड़ते रहे और जनता की अपेक्षाओं पर वे खरे नहीं उतर पाए। तब जनसंघ ने शक्ति को बटोर लिया क्योंकि उसके विरोधी आपस में ही बंटे हुए थे। जैसे ही गैर जनसंघ पार्टियां एकजुट हुईं, जनसंघ सरकार अल्पमत में आ गई। एक संघीय ढांचा, जो सामने आएगा, उसे जनता पार्टी की मिसाल से सबक लेना होगा और एक साथ काम करना होगा, विशेषकर विपक्ष की बड़ी नेताओं सोनिया गांधी व ममता बैनर्जी को इस बात का ध्यान रखना होगा। मुख्य प्रश्न यह है कि विपक्ष के नेताओं में से किसके पास जनता का समर्थन हासिल है जो प्रधानमंत्री बन सके। अगर इस प्रश्न को सुलझा लिया जाए, तो सभी चीजें खुद ही व्यवस्थित होती जाएंगी तथा संघीय ढांचा अपना अस्तित्व बचा सकता है। आज देश जिस प्रश्न का सामना कर रहा है, वह यह है कि अगर राष्ट्र की आत्मा बहुलतावाद पराजित हो जाता है, तो कौनसी शक्तियां सत्ता में आएंगी। भाजपा लोगों को बांटने के लिए प्रतिबद्ध है। वे अकसर किसी न किसी रूप में हिंदू समर्थक सरकार बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं।

भाजपा का अनुषंगी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मोदी के सपनों को पूरा करने के लिए काम में लगा हुआ है। यह वह बात है जिसके प्रति नए संघीय गठजोड़ को सचेत रहना होगा। इस गठजोड़ के लिए यही उपयुक्त होगा कि यह एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ आगे आए तथा इसमें सभी नेताओं के दृष्टिकोणों व अपेक्षाओं को स्थान दिया जाए। यह वह महत्त्वपूर्ण विषय जिसे गैर भाजपा शक्तियों को संबोधित करना चाहिए। लोगों के हित इसमें सर्वोपरि होने चाहिएं। भारत, धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र जिसके आधार हैं, के आदर्श को बचाए रखने के लिए इस नए संघीय ढांचे में धर्म व जातियों पर आधारित पार्टियों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो खतरा यह रहता है कि विविध शक्तियां अपनी-अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए विविध दिशाओं में काम करती रहेंगी। यहां तक कि वैयक्तिक नेताओं को भी देश की एकता को व्यक्तिगत व पार्टी हितों के ऊपर प्राथमिकता देकर आगे रखना होगा। अगर वे एकसाथ रहना सीख लेती हैं, तो उनके पराजित होने का खतरा टल जाएगा। भाजपा व मोदी के देश को बांटने वाले विचारों को मात देने के लिए यही एक रास्ता है कि धर्मनिरपेक्ष शक्तियां एक साथ रहना व चलना सीख लें। अन्यथा धर्मनिरपेक्षता को खतरा ही खतरा है। महात्मा गांधी के विचार-विविधता में एकता को भाजपा पराजित नहीं कर सकती है। महात्मा गांधी के विचार को सही साबित करना का मौका है। भारत की एकता को अलगाववाद से खतरा है। मैं मानता हूं कि हिंदू-मुसलमान में अविश्वास के कारण ही पाकिस्तान का जन्म हुआ। हिंदू-मुसलमान एकता के प्रतीक मोहम्मद अली जिन्ना मानते थे कि हिंदू बहुलता व कट्टरवाद मुसलमानों के लिए खतरा है। इसीलिए उन्होंने अलग पाकिस्तान की मांग उठाई। विभाजन के दौरान दोनों ओर से करीब 10 लाख लोग हिंसा का शिकार हुए जिसमें दोनों वर्गों के लोग शामिल थे। हिंदुओं ने पाक से भारत के लिए तथा मुसलमानों ने भारत से पाकिस्तान के लिए पलायन किया। दोनों का एक-दूसरे पर विश्वास खत्म हो गया था। आरएसएस विभाजन के विचार की नकल करता लग रहा है। इसका दर्शन इसके अलावा कुछ नहीं है कि यह गांधी जी के विचारों व शिक्षाओं का मजाक उड़ाता है। आरएसएस जीत नहीं सका क्योंकि सांप्रदायिक शक्तियां गांधी जी को चुप नहीं करा सकीं। इसी कारण ऐसी शक्तियों को उनकी हत्या करनी पड़ी ताकि उस आवाज को बंद किया जा सके जिसे जनता सुनती थी तथा जिसका जनता में सम्मान था। मैंने उस पत्र को देखा है जिसे नाथूराम गोडसे ने अपने किए हुए कृत्य के संबंध में अपने पक्ष में लिखा था। वह गांधी जी के प्रति सम्मान रखता था, परंत उसका विश्वास था कि अगर महात्मा गांधी ज्यादा देर जीवित रहे तो इसका देश को नुकसान होगा। मुझे याद है एक बार एक प्रार्थना सभा हुई जिसमें मैं भी मौजूद था। जैसे ही गांधी ने बैठक शुरू की, पंजाब के एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा कि वह कुरान को सुनना नहीं चाहेगा।

वास्तव में इस प्रार्थना सभा में गीता, कुरान व बाइबल पढ़े जाने थे। गांधी जी ने ऐसी स्थिति में सभा करने से तब तक इनकार कर दिया जब तक ऐतराज जताने वाला अपनी आपत्ति वापस नहीं ले लेता। आज ऐसी स्थिति में जबकि आसएसएस शिक्षकों, लाइब्रेरियन व अकादमी संस्थानों के प्रमुखों की नियुक्ति में सरकार का मार्गदर्शन करता है, यह संभव नहीं है कि योग्यता को वरीयता दी जाएगी। इस तरह की स्थितियों में एक संघीय पार्टी कैसे इस तरह के तत्त्वों से लड़ सकती है। वास्तव में देश को खतरा उन लोगों से है, जो यह सोचते हैं कि चूंकि देश में रहने वाले 80 प्रतिशत लोग हिंदू हैं, इसलिए राज करने का अधिकार केवल उन्हीं को है। भारत आज 80 फीसदी द्वारा शासित नहीं है, बल्कि उस संविधान द्वारा शासित है, जो एक व्यक्ति को केवल एक वोट देने का अधिकार देता है। यहां तक कि जब हिंदू बहुमत में होते हैं, तो भी संविधान सर्वोच्च होता है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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