चार धाम की यात्रा

By: Apr 21st, 2018 12:09 am

यमुनोत्री धाम के दरवाजे भक्तों के लिए अक्षय तृतीया के दिन खोल दिए गए हैं, लेकिन इस साल कुछ ऐसा संयोग बना है कि केदारनाथ के कपाट अक्षय तृतीया के 11 दिन बाद 29 अप्रैल को और बद्रीनाथ के कपाट अक्षय तृतीया के 12 दिन बाद 30 अप्रैल को खुल रहे हैं। जबकि आमतौर पर अक्षय तृतीया के दो-तीन दिन बाद केदारनाथ और इसके अगले दिन बद्रीनाथ के कपाट खुल जाते हैं…

चार धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को अब और इंतजार नहीं करना होगा। इस माह यानी अप्रैल माह से ही उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा शुरू हो जाएगी। आस्था का केंद्र माने जाने वाले इन मंदिरों के कपाट इस माह ही खुल जाएंगे और सबसे पहले यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे। मंदिरों के कपाट खुलने के बाद अगले छह महीने तक श्रद्धालू हिमालय की सुंदर चोटियों के बीच बसे इन देव स्थलों के दर्शन का लाभ उठा पाएंगे। यमुनोत्री धाम के दरवाजे भक्तों के लिए अक्षय तृतीया के दिन खोल दिए गए हैं, लेकिन इस साल कुछ ऐसा संयोग बना है कि केदारनाथ के कपाट अक्षय तृतीया के 11 दिन बाद 29 अप्रैल को और बद्रीनाथ के कपाट अक्षय तृतीया के 12 दिन बाद 30 अप्रैल को खुल रहे हैं। जबकि आमतौर पर अक्षय तृतीया के दो-तीन दिन बाद केदारनाथ और इसके अगले दिन बद्रीनाथ के कपाट खुल जाते हैं। अक्षय तृतीया से लंबे अंतराल पर केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलने के बारे में बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य धर्माधिकारी के अनुसार यमुनोत्री एवं गंगोत्री के कपाट अक्षय तृतीया के अवसर पर खोले जाने की ही परंपरा है। यमुनोत्री धाम- हिमालय की पर्वत शृंखलाओं में बसा यमुनोत्री धाम हिंदुओं के चार धामों में से एक है। यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्रतल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर चार धाम यात्रा का पहला धाम अर्थात यात्रा की शुरुआत इस स्थान से होती है तथा यह चार धाम यात्रा का यह पहला पड़ाव है। यमुनोत्री धाम का इतिहास यानी मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने  सन् 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था। यमुनोत्री मंदिर भुकंप से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है और इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया था। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुई बर्फ  की एक झील और हिमनद है, जो समुद्रतल से 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। मंदिर के मुख्य कर्व गृह में मां यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजित है। इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्त्व है। श्रद्धालू इस मंदिर के परिसर में अपने पितरो का पिंड दान करते हैं। गंगोत्री मंदिर- उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यह मंदिर मां गंगा को समर्पित है यहां से करीब 18 किलोमीटर ऊपर गंगा जी का उद्गम स्थल है,जो गोमुख के नाम से जाना जाता है। यह चार धाम यात्रा का दूसरा पवित्र पड़ाव है , जो कि यमुनोत्री धाम के बाद आता है। गंगोत्री मंदिर हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थान है। गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर 3100 मीटर (10,200 फुट) की ऊंचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है। गंगोत्री मंदिर भारत का सबसे प्रमुख मंदिर है। गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहां से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4, 225 मीटर की ऊंचाई पर होने का अनुमान है। गंगा मंदिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुंड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं।

केदारनाथ मंदिर- भोलेनाथ के दर्शन के लिए बाबा केदारनाथ के इस धाम के कपाट 29 अप्रैल को सुबह 6ः15 मिनट पर खोले जाएंगे। भगवान भोलेशंकर के इस धाम में पहुंचने के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश वाहन तो मिल जाते हैं, लेकिन वाहन केवल गौरीकुंड तक ही जाते हैं। यहां से करीब 21 किमी. की चढ़ाई के बाद आप बाबा के धाम तक पहुंच पाएंगे। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हंै। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है, जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ  है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ  है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ  है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। केदारनाथ मंदिर न सिर्फ  तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है। केदारनाथ धाम के इतिहास के अनुसार  ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। केदारनाथ मंदिर के इतिहास  के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था, लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते है। श्री केदारनाथ मंदिर में शंकर बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में पूजे जाते हैं। शिव की भूजा तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को ‘पंचकेदार’ कहा जाता है।

बद्रीनाथ धाम- बद्रीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को प्रातः 4ः30 बजे खोले जाएंगे। बद्रीनाथ धाम में 9 मई, 2018 को हीरों और रत्नों से जडि़त स्वर्ण छतर बदरीनाथ गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा। वर्तमान में बद्रीनाथ गर्भगृह में वर्षों पुराना सोने का छतर मौजूद है। सोने का यह छतर करीब दो किलोग्राम का है, जिसे मध्य प्रदेश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने चढ़ाया था।  बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच में स्थित है। ये पंच बद्री में से एक हैं। उत्तराखंड में पंच बद्री, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर शहर में मुख्य आकर्षण है। प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है। इसकी ऊंचाई करीब 15 मीटर है। माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने  8वीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था। शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। यहां भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और पूरा मंदिर प्रकृति की गोद में स्थित है। यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है। बद्रीनाथ जी के मंदिर के अंदर 15 मूर्तिया स्थापित हंै। साथ ही साथ मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है। इस मंदिर को धरती का वैकुंठ भी कहा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर में वन तुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिसरी आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। नारायण के इस धाम में सीधे बस या अपने वाहन से पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको कोई चढ़ाई नहीं चढ़नी होती है। बद्रीनाथ जाने के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश से बस मिल जाती है।

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