चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का नोटिस

By: Apr 21st, 2018 12:08 am

नई दिल्ली— कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों के सदस्यों ने राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडु को शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक कुमार मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया। नोटिस सौंपने के बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम बनी आजाद तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने एक संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि कुछ मामलों में मुख्य न्यायाधीश ने मर्यादा भंग की है। उन्होंने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों के कुल 71 सांसदों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें सात सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जबकि 64 अभी संसद के सदस्य हैं। मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस के लिए कम से कम 50 सांसदों के समर्थन की जरूरत होती है। श्री सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका कमजोर हो रही है और इससे लोकतंत्र खतरे में पड़ा है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। विपक्षी दलों के पास मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है। श्री सिब्बल ने बताया कि न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ पांच आरोप लगाए गए हैं, जिनमें संगीन मामलों में पद का दुरुपयोग और एक भूमि संबंधी मामले में गलत शपथ पत्र दाखिल करना आदि शामिल हैं। महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस पर कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी  तथा इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सांसदों के हस्ताक्षर हैं। श्री सिब्बल ने कहा कि इसके अलावा कुछ अन्य दलों की भी इस पर सहमति है। श्री सिब्ब्ल ने स्पष्ट किया कि महाभियोग नोटिस का जज लोया मामले पर उच्चतम न्यायालय के गुरुवार के फैसले से कोई लेना-देना नहीं है और नोटिस में इसका जिक्र भी नहीं किया गया है। विपक्ष ने महाभियोग का नोटिस तो दे दिया है, लेकिन उसमें इसे लेकर मतभेद हैं। प्रस्ताव का समर्थन करने वाली प्रमुख वामपंथी पार्टी सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी तो प्रस्ताव के साथ हैं, लेकिन पार्टी के सीनियर लीडर प्रकाश करात ने कहा कि उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी ही नहीं है। यही नहीं, खुद कांग्रेस पार्टी के भीतर भी इस प्रस्ताव को लेकर मतभेद की स्थिति दिखती है। सीनियर लीडर और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि वह इस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं। वहीं, मनमोहन सिंह को लेकर पार्टी का कहना है कि हमने उनके साइन इसलिए नहीं करवाए हैं, क्योंकि वह पूर्व पीएम हैं और उनकी संवैधानिक मर्यादा को ध्यान में रखते हुए उन्हें इससे परे रखा गया है। उधर, चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव के बीच सत्ताधारी दल और विपक्षी पार्टी की बयानबाजी तेज हो गई है। इस पूरे मामले पर भाजपा ने कांग्रेस पर संविधान का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। भाजपा ने कहा कि विपक्ष की तरफ से न्यायपालिका को लेकर लगातार राजनीति हो रही है। विपक्ष कोर्ट पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह महाभियोग को हथियार बनाकर जजों को डराने की कोशिश कर रही है। इसी बीच, उच्चतम न्यायालय ने राजनेताओं द्वारा मीडिया में न्यायपालिका के सदस्यों के खिलाफ आरोप लगाने और देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के खिलाफ महाभियोग शुरू करने के वक्तव्य देने पर चिंता व्यक्त की है। न्यायमूर्ति एके सकरी ने न्यायपालिका के खिलाफ आरोप लगाने की मीडिया रिपोर्टों का जिक्र करते हुए कहा ॑कि हम सभी परेशान हैं। यह क्या हो रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि मीडिया को इस तरह की निंदनीय रिपोट्र््स प्रकाशित करने से रोका जाना चाहिए। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा मामले की सुनवाई के बिना आदेश नहीं दिया जा सकता। शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की सहायता लेने की बात कही है।

27 साल में 3 बार हो चुकी हैं कोशिशें

1991 – सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन लोकसभा में इस प्रस्ताव को पास कराने को जरूरी समर्थन नहीं मिला।

2009 – सिक्किम हाई कोर्ट के जस्टिस पीडी दिनाकरण के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश हुई। संसद में प्रस्ताव पर बात आगे बढ़ने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

2011 – कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में पेश महाभियोग प्रस्ताव पास हुआ। लोकसभा में प्रस्ताव आने से पहले उन्होंने जज पद से इस्तीफा दे दिया।

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