चौदह की उम्र में बन गई ‘बालिका वधू’

By: Apr 22nd, 2018 12:10 am

चौदह साल की उम्र में मौसमी चटर्जी बालिका वधू बन गईं। खिलखिलाती सहेलियों के साथ स्कूल जाते हुए, मासूमियत भरी मस्ती और हंसने पर बढ़ा हुआ दांत दिखना, कंधे पर बस्ता टांगे हुए, लंबी-लंबी दो चोटियां उन्हें और भी मासूम बना देती थीं…

इंदिरा चटर्जी  का जन्म 26 अप्रैल, 1953 को कोलकाता में हुआ था, जिनका नाम मशहूर बंगाली फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार द्वारा बदलकर मौसमी चटर्जी कर दिया गया था। चौदह साल की उम्र में मौसमी चटर्जी बालिका वधू बन गईं। खिलखिलाती सहेलियों के साथ स्कूल जाते हुए। मासूमियत भरी मस्ती और हंसने पर बढ़ा हुआ दांत दिखना, कंधे पर बस्ता टांगे हुए, लंबी-लंबी दो चोटियां उन्हें और भी मासूम बना देती थी। मशहूर बंगाली फिल्म निर्देशक तरुण मजूमदार को नायिका के रोल के लिए स्कूली लड़की की तलाश थी, जो देखने में मासूम लगे और चंचल भी।

तरुण मजूमदार को लगा कि यह छात्रा उस रोल के लिए सही रहेगी। तरुण मजूमदार रोज मौसमी चटर्जी को देखते। उनकी निगाह में मौसमी चटर्जी की मासूमियत इस कद्र बस गई कि उन्होंने सोच लिया कि मौसमी ही उनकी फिल्म में बालिका वधू बनेंगी। उन्होंने जब इंदिरा से पूछा कि मेरी फिल्म में काम करोगी, तब बड़ी मासूमियत से उन्होंने ‘हां’ कह दिया और पूछा कब से काम शुरू करना है। क्या आज से ही करना होगा, लेकिन मैं स्कूल से छुट्टी नहीं ले सकती। मुझे बाबा ‘पिताजी’ से पूछना पड़ेगा।

सेना में नौकरी करने वाले सख्त स्वभाव वाले इंदिरा के पिता प्रांतों, चट्टोपाध्याय ने साफ  मना कर दिया, सवाल ही नहीं उठता। मेरी बेटी पढ़ेगी और खूब पढ़ेगी। तब तरुण मजूमदार ने बाबा को मनाने की जिम्मेदारी अपनी पत्नी संध्या राय को सौंपी जो उस समय बंगाल की लोकप्रिय कलाकार थीं। संध्या ने जैसे-तैसे बाबा को मना लिया और इस तरह चौदह साल की उम्र में इंदिरा बालिका वधू बन गई, लेकिन उन्हें अपना नाम बदलना पड़ा। मौसमी का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था वे जितनी कम उम्र में पर्दे पर आई, उतनी ही कम उम्र में उनका विवाह भी हो गया। संयोग से प्रसिद्ध गायक हेमंत कुमार ने अपने बेटे रीतेश के लिए मौसमी का हाथ मांग लिया। शादी के बाद वे कोलकाता में रहने लगीं कोलकाता से मुंबई आने पर हेमंत कुमार ने मौसमी से कहाए ‘तुममें अच्छे कलाकार के सभी गुण मौजूद हैं’  तुम्हारा चेहरा भी सिल्वर स्क्रीन के लिए एकदम सही है। तुम प्रतिभावान हो, फिल्मों में अभिनय जारी रखो। इस तराह उनके पति ने भी उन्हें हौसला दिया द्य उस समय तक कई जाने-माने निर्देशक पटकथा लेकर हेमंत कुमार के पास आते थे। तब उन्हें शक्ति सामंत की फिल्म ‘अनुराग’ की कहानी बहुत पसंद आई और 1972 में उन्होंने ‘अनुराग’ में काम करने के लिए शक्ति सामंत को हामी भर दी, लड़की की भूमिका इतने सशक्त ढंग से निभाई कि उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार उन्हें दिया गया। इस फिल्म के सभी गाने खूब लोकप्रिय हुए थे। इस तरह यह सिलसिला चल निकला। उसके बाद मौसमी ने कई प्रमुख फिल्मों में उस दौर के सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया। रोटी, कपड़ा और मकान, उधार की जिंदगी, मंजिल, बेनाम, जहरीले इनसान, हमशक्ल, सबसे बड़ा रुपइया और स्वयंवर, उल्लेखनीय फिल्में हैं।

उनकी छोटी बेटी पायल भी कैमरे की बारीकियां समझने लगी हैं। हाल ही में मौसमी चटर्जी को बंगाल सिने आर्टिस्ट द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया। मौसमी की बड़ी बेटी मेघा को भी उनकी ही तरह तरुण मजूमदार बंगाली फिल्म ‘भालोबासेर अनेक’ नाम से फिल्मी दुनिया में पदार्पण करवा चुके हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि इस फिल्म में मौसमी ने मेघा की चचेरी बहन की भूमिका अदा की है।

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