जवाहर लाल ने कांशी राम को दी ‘ पहाड़ी गांधी ’की उपाधि

By: Apr 25th, 2018 12:05 am

1937 ई. में गदरीवाला में एक राजनीतिक सभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कांशी राम को ‘पहाड़ी गांधी’ की उपाधि से नवाजा। वह मधुर आवाज वाले बड़े गायक थे, इसलिए भारत की बुलबुल सरोजिनी नायडू ने 1927 ई. में दौलतपुर चौक में इन्हें ‘पहाड़ां दी बुलबुल’ पदक से प्रतिपादित किया…

कर्म सिंह ठाकुर

इनके पिता का नाम हुरमत सिंह ठाकुर था। 10 जुलाई, 1919 ई. को जिला मंडी तहसील सदर गांव अणु में जन्म हुआ। इन्होंने बीएससी (कृषि) तक शिक्षा प्राप्त की। यह पेशे से बागबान थे। 1947 ई. तक सेना में सेवा की। 1947 ई. में प्रजामंडल में शामिल हुए और प्रदेश में किसान वर्ग के उत्थान के लिए निरंतर प्रयासरत रहे। 1952 ई. प्रदेश विधानसभा के लिए महादेव निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित, 1957 ई. द्वि सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र चच्योट से टैरिटोरियल परिषद के लिए निर्वाचित हुए। 1952 ई. में सराज निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए। 1967 और 1972 ई. में दोबारा चच्चोट निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए। 1952-56 में प्रदेश कांग्रेस विधायक दल के महासचिव रहे। 1957-63 तक टेरिटोरियल परिषद के चेयरमैन और 1967-72 में वित्त मंत्री रहे।

बाबा कांशीराम (पहाड़ी गांधी)

इनका जन्म 11 जुलाई, 1882 ई. को देहरा गोपीपुर तहसील गांव डाडासीबा में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री लखनू राम था। 1902 ई. में यह लाहौर गए तथा उस समय के दो महान क्रांतिकारी स्वर्गीय हरदयाल एमएम तथा सरदार अजीत सिंह से मिले। उन्होंने इन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने की प्रेरणा दी। 1919 ई. में इन्हें दो वर्ष की जेल हुई। 1937 ई. में गदरीवाला में एक राजनीतिक सभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें ‘पहाड़ी गांधी’ की उपाधि से नवाजा। वह मधुर आवाज वाले बड़े गायक थे, इसलिए भारत की बुलबुल सरोजिनी नायडू ने 1927 ई. में दौलतपुर चौक में इन्हें ‘पहाड़ां दी बुलबुल’ पदक से प्रतिपादित किया। 1931 ई. में  जब सरदार भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फांसी पर लटकाया गया, तो इन्होंने कसम खाई कि जब तक भारत आजादी प्राप्त नहीं कर लेता, वह काले कपड़े पहनेंगे। वह महात्मा गांधी के विश्वस्त अनुयायी थे और उनके नियमों को वास्तविक जीवन में भी अपनाया था। वह कांगड़ा क्षेत्र से देश की स्वतंत्रता के लिए कुर्बानी की भावना जगाने वाले अग्रणी प्रकाश थे। उन्हें कई बार जेल में डाला गया। 15 अक्तूबर, 1943 ई. को 61 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया।

सत्यदेव बुशहरी

इनका जन्म 19 नवंबर, 1922 ई. को शिमला जिला की तहसील रोहड़ू के चेबारी(कासाकोटी) में हुआ। उनके पिता पंडित निक्का राम थे। बीए के अंतिम वर्ष में 1942 ईस्वी में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। 1942 ईस्वी से 1949 ईस्वी तक धर्मपुर, कसौली, डगशाई और कोटखाई में क्रंतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। इन्होंने बुशहर और दूसरे रजवाड़ों की रियासतों में प्रजामंडल व्यवस्थित किए। प्रजामंडल कार्यों में भाग लेने के कारण उन्हें बिलासपुर और सुकेत में दो बार गिरफ्तार किया गया। दो बार हिमाचल विधानसभा के लिए चुने गए। 15 सितंबर, 1999 ईस्वी को इनका निधन हो गया।

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