तबादला विधेयक से नहीं आएगी शिक्षा में गुणवत्ता

By: Apr 5th, 2018 12:05 am

दत्ता रविकांत

लेखक, जवाली से हैं

राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अब ऐसे युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है, जो स्वरोजगार की तरफ प्रेरित होकर अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकें और इसके लिए शिक्षा में गुणात्मक सुधार की नितांत आवश्यकता है। केवल तबादला विधेयक से ही शिक्षा में गुणात्मक सुधार की अपेक्षा नहीं की जा सकती…

जनता को शिक्षित करने में शिक्षा संस्थानों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। शिक्षा संस्थान ही एकमात्र ऐसे संस्थान होते हैं, जहां शिक्षार्थी रूपी कच्चे माल को उपयोगी संसाधन के रूप में तबदील किया जाता है। हमारे नीति-निर्माताओं तथा शिक्षाविदों को यह सोचना होगा कि क्या शिक्षा संस्थान शिक्षार्थियों को पूरी तरह उपयोगी संसाधन के रूप में तैयार कर रहे हैं अथवा नहीं क्योंकि देश को उपयोगी संसाधन ही उन्नति के शिखर तक पहुंचाते हैं। शिक्षा केवल प्रमाणपत्र या डिग्री लेने तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। बदलते परिवेश में रोजगारोन्मुख शिक्षा व्यवस्था समय की मांग है। इस क्रम में हिमाचल सरकार शायद शिक्षक तबादला विधेयक के आइने में गुणात्मक शिक्षा के रास्ते का निर्माण करने का प्रयास कर रही है, जो शायद ही सफल हो। एक समुदाय विशेष पर यह एक्ट लागू करना इनके प्रति अन्याय और रोष की भावना ही पैदा करेगा।

मुझे नहीं लगता कि तबादला नीति से शिक्षा में कोई गुणात्मक सुधार होगा या शिक्षा का व्यापारीकरण बंद होगा या सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या में इजाफा होगा। यह तबादला नीति कई तरह की अनावश्यक समस्याएं तथा अनावश्यक न्यायिक विवाद पैदा करेगी। सरकार को अपनी ऊर्जा रोजगारपक शिक्षा व्यवस्था की तरफ लगानी होगी, ताकि बेरोजगारी की समस्या से निपटा जा सके। आज ऐसी कोई सरकार नहीं है जो सभी युवाओं को सरकारी क्षेत्र में नौकरी दिलवा सके। अब हमें ऐसी शिक्षा पद्धति अपनानी होगी, जो ऐसे युवाओं को तैयार कर सके जो अपनी काबिलियत के दम पर स्वरोजगार प्राप्त कर सकें। शिक्षा में ऐसी तकनीक व कौशल की आवश्यकता है, जिससे हमारा भविष्य अपने भविष्य की तलाश में न भटके। केवल शिक्षक तबादला विधेयक से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। सरकार को अपना ध्यान गुणात्मक शिक्षा की तरफ ज्यादा लगाना होगा, ताकि सरकारी शिक्षण संस्थानों पर अभिभावकों और बच्चों का विश्वास बढ़े। हिमाचल प्रदेश में प्राथमिक स्तर के विद्यालयों की दशा बड़ी ही दयनीय है।

कई प्राथमिक विद्यालय केवल एक अध्यापक के सहारे चल रहे हैं और उस अध्यापक पर पांच-पांच कक्षाओं की जिम्मेदारी होती ही है। कई स्कूलों में कमरों की भारी कमी है। बच्चों को बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है। हिमाचल सरकार को अध्यापन को एक सम्मानजनक पेशा बनाना चाहिए। प्रोत्साहन से सही लोगों को अध्यापन के पेशे में लाया जाए। अध्यापन कार्य में ठेका प्रथा को बढ़ावा देकर तथा न्यूनतम से भी कम वेतन देकर हम क्या आशा कर सकते हैं। प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर पर बच्चों को फेल न करने वाली नीति से हम पूरी तरह गुणात्मक शिक्षा से विमुख हो रहे हैं। तथ्यों के अनुसार कई बच्चे जमा-घटाव, गुणा-विभाजन जैसे आधारभूत गणितीय कौशल भी हासिल नहीं कर पाए हैं। कई बच्चे अपनी मातृभाषा को धाराप्रवाह ढंग से नहीं पढ़ पाते।

सरकार के अलावा अधिकारियों को अपने बच्चों को सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने चाहिएं, जिससे उनको मूलभूत समस्याओं के बारे में पता चल सके। वातानुकूलित कमरों में शिक्षा के सुधार पर नीतियां नहीं बनती, उसके लिए जमीनी स्तर से जुड़ना पड़ता है। अगली पीढ़ी का भविष्य गुणात्मक शिक्षा व्यवस्था पर टिका हुआ है। इसके लिए कठोरता से गुणवत्ता के मानकों को लागू करने की आवश्यकता है। आज स्थिति यह है कि गरीब से गरीब अभिभावक भी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाना नहीं चाहते। सरकारी विद्यालयों के प्रति आम जनता का मोहभंग होना हिमाचल सरकार के लिए चिंतनीय विषय है। सरकार का पूरा ध्यान गुणात्मक शिक्षा व शिक्षा के मूलभूत ढांचे को सुधारने पर होना चाहिए, ताकि अभिभावकों व बच्चों का ध्यान सरकारी शिक्षा संस्थानों के प्रति आकर्षित किया जा सके। हिमाचल में गुणवत्तायुक्त शिक्षण संस्थानों की अधिक आवश्यकता है। अध्यापकों की कमी को पूरा करना, बच्चों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाना, शिक्षा में तकनीकी विषय शामिल करना तथा सबसे बढ़कर अभिभावकों का सरकारी शिक्षण संस्थानों के प्रति विश्वास जगाना ऐसे कदम हैं, जिससे शिक्षा प्रणाली में सुधार लाया जा सकता है।

हिमाचल ही नहीं बल्कि पूरा देश कौशल व तकनीकी विकास के मामले में काफी पीछे है। स्किल इंडिया कार्यक्रम सही ढंग से लागू नहीं हो पाया है। कई देश शिक्षा में तकनीकी ज्ञान को बढ़ावा देकर रोजगार के नए-नए अवसर पैदा कर रहे हैं।  हिमाचल में हर पांच वर्ष बाद सरकार बदल रही है। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि युवाओं को रोजगार का सपना दिखाकर ही सत्ता तक पहुंचा जा सकता है। राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अब ऐसे युवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है, जो स्वरोजगार की तरफ प्रेरित होकर अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकें और इसके लिए शिक्षा में गुणात्मक सुधार की नितांत आवश्यकता है। केवल तबादला विधेयक से ही शिक्षा में गुणात्मक सुधार की अपेक्षा नहीं की जा सकती। यदि हम भारत को आर्थिक शक्ति की राह पर देखना चाहते हैं, तो निश्चय ही शिक्षा के क्षेत्र में कौशल विकास की नितांत आवश्यकता है और इसके लिए प्रयास बिल्कुल प्राथमिक स्तर से ही करने होंगे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App