दृष्टिहीन बच्चों की नजर बनीं शालिनी

By: Apr 22nd, 2018 12:15 am

शिखर पर

बुआ से मिली प्रेरणा

शालिनी वत्स किमटा का कहना है कि उनकी बुआ उनके लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनका कहना है कि वह आज दृष्टिहीन बच्चों को पढ़ा रही हैं तो बुआ के नक्शे कदमों पर चलकर। उनका कहना है कि बुआ के देहांत के बाद उन्होंने चंद्रआभा मेमोरियल स्कूल का कार्यभार संभाला था। 2001 से लेकर आज तक वह दृष्टिहीन बच्चों के साथ रह रही हैं। किमटा का कहना है कि वह छोटी उम्र से ही बुआ के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेती थीं और इसके बाद कालेज की पढ़ाई करने के बाद सीधी इस स्कूल में जुड़ी और समाजसेवा का कार्य आरंभ कर दिया।

शालिनी की शालीनता उन बच्चों के भविष्य को संवार रही है, जो दृष्टिहीन हैं। हालांकि बच्चों के अभिभावकों को उम्मीद नहीं थी कि हमारे बच्चे दृष्टिहीन हैं यह कहीं भी कुछ नहीं कर पाते हैं। जिस तरह देवभूमि कुल्लू जिला से संबंध रखने वाली शालिनी वत्स किमटा ने दृष्टिहीन बच्चों को शिक्षित कर नौकरी दिलवाई है, उसी तरह दृष्टिहीन बच्चे और उनके अभिभावक किमटा को भगवान के रूप में मानते हैं। किमटा जहां दृष्टिहीन बच्चों में शिक्षा की लौ जगा रही है। वहीं, उन बच्चों को चंगुल से छुड़वा रही है, जो बाल मजदूरी कर रहे हैं।

कहीं किमटा को बाल मजदूरों की सूचना मिले तो वह तुरंत मौके पर पहुंचकर बच्चों छुड़वाकर उनके माता-पिता के हवाले कर देती है। बाल मजदूरों को न्याय दिलाने में भी किमटा का काफी योगदान रहता है। किमटा इस कार्य को समाज सेवा मानती हैं। वहीं, गरीब लोगों के लिए आगे आती है। बता दें कि जिला मुख्यालय स्थित सरवरी में शालिनी वत्स किमटा चंद्रआभा मेमोरियल ब्लाइंड स्कूल की संचालिका है।

यहां पर वर्तमान में 42 दृष्टिहीन बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। शालिनी वत्स किमटा ने इन बच्चों का भविष्य संवारने के लिए यहां एक अदद टीम रखी है, जो बच्चों को किताबें ही नहीं पढ़ा रही है बल्कि आधुनिक जमाने के हिसाब से कम्प्यूटर भी सिखा रही है। यही नहीं, मोबाइल ऐप चलाकर भी बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है।

किमटा का कहना है कि 37 बच्चे पासआउट हुए हैं, जिसमें से 18 के करीब उनके द्वारा शिक्षित किए बच्चे सरकारी नौकरी कर रहे हैं। स्कूल में ही बच्चों को रहने की व्यवस्था कर रखी है। बच्चों के अभिभावकों को किमटा यह महसूस होने नहीं देती है कि उनके बच्चे दृष्टिहीन हैं। यही नहीं कालेज, यूनिवर्सिटी में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों के लिए भी किमटा की शालीनता कारगर साबित हो रही है और कालेज और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को पाठ्य सामग्री दी जा रही है। इस सेवा के लिए बच्चों के अभिभावक शालिनी वत्स किमटा की सराहना करते हैं।

मुलाकात

दिखावे के लिए समाज सेवा नहीं होनी चाहिए…

समाज की लकीरों को तोड़ना आपके लिए क्या मायने रखता है?

मुझे लगता है कि मैं सिर्फ  वह कर रही हूं जो भगवान ने निर्धारित किया है।

आपने समाज सेवा का अनूठा रास्ता संयोगवंश चुना या इस यात्रा के पीछे किसी अज्ञात शक्ति का आशीर्वाद मानती हैं?

इस राह की प्रेरणा कुछ व्यक्ति रहे हैं, जिसमें मेरी बुआ और मेरे होस्टल की वार्डन हैं।

जो आंखों वाले नहीं देख पाते, दृष्टिविहीन उससे भी कहीं आगे निकल सकते हैं?

हर चीज का नजरिया है, जो इनसान को आगे या पीछे ले जाता है।  हम सिर्फ  हमारे बच्चों को नजरिया और मुश्किल को  खुद पार करने की शिक्षा दे रहे हैं।

आपने अपने छात्रों में ऐसी क्या मजबूती देखी, जो कहीं अन्यत्र संभव नहीं?

हर बच्चे में अपनी क्षमता है। हमने तो रास्ता दिखाना है । सब से ऊपर भगवान का चुना रास्ता है, जिस पर चल रही हूं।

ऐसी कौन सी डोर है आपके पास, जो दृष्टिविहीन समाज आपसे बंध गया?

हम अपने बच्चों को सीख देते हैं कि हम अपने रास्ते खुद चुनते हैं और उन पर खुद चलना है।

कोई ऐसा क्षण या अनुभव जो ऐसे बच्चों के बीच आपको संतुष्ट करता है। या जब आप यह साबित कर पाती हैं कि शारीरिक रूप से अक्षम होना कोई कमजोरी या लाचारी नहीं?

मैंने अकेले कुछ नहीं किया है। बच्चे खुद अपने रंग भरने में सक्षम हैं और जितने भी लोग आज तक हमारे संगठन के साथ हैं, वे सब इस सपने को सच करने के सारथी हैं।

कोई एक प्रश्न जो अकसर दृष्टिविहीन बच्चे आपसे पूछते हैं?

मुझे खुशी है कि बच्चे खुद अपनी राह चुन रहे हैं और आज तक 19 बच्चे हमारे यहां से नौकरी कर रहे हैं।

इनकी जिंदगी में आप किस तरह रंग भरती हैं । पूरी प्रक्रिया जो आप अपनाती हैं?

इनकी जिंदगी में मैं तो क्या रंग भरती हूं, लेकिन मैंने यह ठान लिया है कि मैं इन बच्चों का भविष्य सुधारने में सक्षम बनूं।

दृष्टिविहीन बच्चों के सपनों के बीच आपके अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना?

मैं जब बुआ के साथ संस्था में जाती थी तो उसी दौरान मुझे बच्चों से लाड़-प्यार हो गया था। मेरे जीवन का सपना यह है कि मैं इन बच्चों को शिक्षित कर इन्हें जीने की राह दिखा सकूं।

शालिनी खुद को किस तरह देखती हैं। कोई प्रेरणा या लक्ष्य जो आपके साथ हमेशा तत्पर रहता है?

मुझे समाज सेवा करने की प्रेरणा मेरे परिजनों ने दी है। मैं समाज सेविका हूं और बुआ मेरे लिए प्रेरणा स्रोत रही हैं। मैं अपने जीवन में उनके कदमों पर चलती रहूंगी।

समाज सेवा सही अर्थों में है क्या?

समाज सेवा दिखावा नहीं होना चाहिए। धरातल पर उतर कर जो समाज सेवा में खास योगदान देता है, वही सही अर्थों में समाज सेवा है।

अब तक के सफर को कैसे देखती हैं। आप इन बच्चों की उम्मीदों को कैसे रूपांतरित कर पाती हैं?       

अब तक मैं समाज सेवा में जिस भी मुकाम तक पहुंची हूं, यह भगवान का आशीर्वाद है और मेरे अंदर समाज सेवा में अलग कार्य करने का लक्ष्य रहता है।

– मोहर सिंह पुजारी, कुल्लू

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