निर्दोष लोगों की कातिल बनती हिमाचली सड़कें

By: Apr 20th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

हादसे के बाद शवों के पोस्टमार्टम हुए, राजनीतिज्ञों व नेताओं की ओर से हमेशा की तरह संवेदनाएं आईं और समय बीतने के साथ इस हादसे को हमेशा की तरह भुला दिया जाएगा। इस मामले में गंभीर अध्ययन की जरूरत है तथा सरकार को सड़क सुरक्षा के लिए एक नियमित मानिटरिंग एजेंसी की स्थापना करनी चाहिए। हिमाचल में हर साल तीन हजार हादसे होते हैं जिनमें लोगों की जान व माल का भारी नुकसान होता है। अध्ययन से पता चलता है कि अधिकतर हादसे बड़े वाहनों के साथ होते हैं। तेज दौड़ते वाहनों पर कोई अंकुश नहीं है…

हिमाचल प्रदेश के नूरपुर में कुछ दिनों पहले जो कुछ हुआ, वह किसी त्रासदी से कम नहीं है। इससे बुरी जो बात है, वह यह कि स्थिति में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती है तथा न ही बदलाव लाने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाने की संभावना है। उपलब्ध डाटा के अनुसार वर्ष 2009 से अब तक प्रति वर्ष हिमाचल में एक हजार से अधिक लोग हादसों का शिकार हो जाते हैं और इस पर अब भी कोई विराम नहीं लगा है। हर बार जब भी कोई हादसा होता है, मीडिया में शोर-शराबा होता है तथा सरकार उपचारात्मक कार्रवाई के आश्वासन के साथ जांच के आदेश दे देती है। लेकिन इसके बाद स्थिति में बदलाव के लिए कुछ भी नहीं हो पाता है। एंबुलैंस 108 का नवीनतम सर्वे दिखाता है कि हादसों के लिए सड़कें जिम्मेवार होती हैं तथा 600 ऐसे ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए हैं। नूरपुर हादसे में 27 लोगों की जानें चली गईं। इनमें 24 बच्चे थे जिनकी आयु 10 से 13 वर्ष की थी। यह सचमुच ही दिल को दहला देने वाली एक बड़ी त्रासदी थी, जो उस समय हुई जब वे स्कूल से घरों को लौट रहे थे तथा उनके अभिभावक उनके स्वागत के लिए इंतजार में थे। ये बच्चे मौत का शिकार हो गए तथा उनके साथ वे सैकड़ों उम्मीदें व आशाएं भी दफन हो गईं जो इन बच्चों से इनके परिजनों ने लगाई थीं। इस तरह की त्रासदी पर एक उर्दू कवि ने जो लिखा है, वह मुझे याद आ रहा है :

फूल तो चंद दिन बहार अपनी दिखला गए

हसरत उन गुंजों पे है जो बिन खिले मुरझा गए

अर्थात फूल कुछ समय के लिए खिलते हैं, परंतु बड़ी त्रासदी उन कोंपलों के लिए है जो खिल ही नहीं पाईं। हादसे के बाद शवों के पोस्टमार्टम हुए, राजनीतिज्ञों व नेताओं की ओर से हमेशा की तरह संवेदनाएं आईं और समय बीतने के साथ इस हादसे को हमेशा की तरह भुला दिया जाएगा। इस मामले में गंभीर अध्ययन की जरूरत है तथा सरकार को सड़क सुरक्षा के लिए एक नियमित मानिटरिंग एजेंसी की स्थापना करनी चाहिए। हिमाचल में हर साल तीन हजार हादसे होते हैं जिनमें लोगों की जान व माल का भारी नुकसान होता है। अध्ययन से पता चलता है कि अधिकतर हादसे बड़े वाहनों के साथ होते हैं। राज्य में वाहनों की चैकिंग होती है, किंतु यह कुछ ही तय स्थलों पर होती है तथा तेज दौड़ते वाहनों पर कोई अंकुश नहीं है। इस कॉलम के जरिए मैं कई बार सड़कों की दशा की देखरेख के लिए यातायात पुलिस के मोबाइल स्क्वैड की पैरवी  कर चुका हूं। सही तरीके से ड्राइविंग हो तथा गति पर नियंत्रण हो, इसके लिए भी इस तरह की व्यवस्था करना जरूरी है, किंतु अब तक जो कुछ हुआ है, वह केवल इतना है कि कुछ चिन्हित स्थलों पर ट्रकों, बसों व कारों की चैकिंग हो जाती है। अगर आप चैक प्वाइंट से ठीक पहले सड़कों पर पार्क किए गए वाहनों की कतार पाते हैं तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये वाहन चैकिंग से बच निकल रहे हैं और इनके मालिक इन्हें हटाने के लिए पुलिस का इंतजार कर रहे हैं। ऐसे दृश्य कई स्थानों पर होते हैं तथा लोग भी इन्हें अकसर देखते हैं, किंतु यह मजाक की तरह दिखता है।

यह भी एक मजाक है कि पुलिस जानती है कि ये वाहन पार्क किए गए हैं और वाहन मालिक भी जानते हैं कि पुलिस उनका इंतजार कर रही है, परंतु एक-दूसरे का सामना करने के लिए आगे कोई नहीं बढ़ता है। मैंने जब कुछ ड्राइवरों से बात की तो उन्होंने बताया कि चूंकि पुलिस को दौड़ते वाहनों को पकड़ना होता है, इसलिए वह पार्क किए गए वाहनों को चैक नहीं कर पाएगी।  किंतु हर कोई यह जानता है तथा यह ‘आई स्पाई गेम’ क्यों खेली जानी चाहिए। हिमाचल में चूंकि हवाई व रेल परिवहन सेवाओं की सुविधा सीमित है और यहां पर मुख्यतः सड़क परिवहन पर निर्भर रहना पड़ता है, इसलिए सरकार को सड़कों पर प्राथमिकता के साथ ध्यान देना चाहिए। हिमाचल में सड़कों की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है तथा अधिकतर सड़कें अपनी दुरावस्था दर्शा रही हैं। कहीं-कहीं तो स्थिति ऐसी है कि सड़क में गड्ढा है अथवा गड्ढे में सड़क, यह तय करना मुश्लिक हो जाता है। पंजाब से आने वाले कई लोग यहां की सड़कों की दुर्दशा देखकर आलोचना करते हैं क्योंकि हमारे इस पड़ोसी प्रदेश में सड़कों की हालत हमसे कहीं अधिक अच्छी है। हैरानी की बात तो यह है कि हिमाचल में राष्ट्रीय राजमार्गों की गुणवत्ता भी ठीक नहीं है। उधर पंजाब में ऐसे मार्गों की स्थिति हमसे कहीं बेहतर है। धर्मशाला से होशियारपुर मार्ग की ही बात करें तो हिमाचली व पंजाब के हिस्से वाले मार्ग में काफी अंतर है। हिमाचल में इस सड़क की हालत गुणवत्ता से काफी नीचे है, परंतु जैसे ही हम हिमाचल को छोड़कर गगरेट के पास पंजाब में प्रवेश करते हैं, सड़क की हालत नाटकीय ढंग से सुधर जाती है। पंजाब में यह सड़क बेहतर व मखमली मार्ग का एहसास करवाती है। हिमाचल के नए मुख्यमंत्री प्रदेश के विकास के प्रति कटिबद्ध लगते हैं, उन्हें सड़कों तथा परिवहन की दशा में सुधार को प्राथमिकता देनी चाहिए।

सड़कों की गुणवत्ता व रखरखाव के उच्च स्तरीय आडिट को लागू करने के लिए हिमाचल में एक सड़क सुरक्षा आयोग होना चाहिए। इसके अलावा चालकों को सेफ ड्राइविंग सिखाने के लिए एक रोड सेफ्टी विंग भी होना चाहिए। यह भी एक वास्तविकता है कि पंजाब से आने वाले सभी वाहनों के चालक पहाड़ी क्षेत्र में ड्राइविंग करना नहीं जानते हैं। जरूरत पहाड़ी क्षेत्रों के अनुकूल ड्राइविंग सिखाने की है। तीखे मोड़ों पर ओवरटेकिंग भी रोकनी होगी। मैं अकसर देखता हूं कि पंजाब अथवा अन्य राज्यों से आने वाले अथवा वहां जाने वाले वाहनों के चालक इस नियम को नजरअंदाज करते हैं। एक सर्वांगीण नजरिए को लागू करने के लिए सड़क रखरखाव व सड़क सुरक्षा के विलय की सख्त जरूरत है।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com

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