पशुशाला को हमेशा रखें साफ-सुथरा

By: Apr 5th, 2018 12:02 am

मेरे पशुओं को पिस्सु व चिचड़ पड़े हैं, उन्हें बाह्म परजीवी की दवाई भी मली,  परंतु  कोई असर नहीं हो रहा है, क्या करें?

सरला, शिमला

जैसे ही गर्मी व बरसात का मौसम आता है, बाह्म परजीवी का प्रकोप पशुओं में अकसर देखा जाता है। इससे पशुपालक परेशान हैं परंतु इसका मुख्य कारण है पशुशाला की गंदगी व पशुशाला में पशुओं की अत्यधिक संख्या होना। यह  बाह्म परजीवी पशु की चमड़ी पर होते हैं परंतु पशु के शरीर में नहीं बनते हैं। यह बाह्म वातावरण से अर्थात पशुशाला व हरे घास से पशु के शरीर पर आते हैं। इसलिए इनसे छुटकारा पाने के लिए न केवल पशुओं पर दवाई इंजेक्शन लगाएं अपितु पशुशाला में भी दवाई का स्प्रे करें।

अगर आप इस दवाई का स्प्रे केवल पशुओं पर ही करेंगे व पशुशाला में स्प्रे नहीं करेंगे, तो पशुओं की चमड़ी के परजीवी मर जाएंगे परंतु 8-10 दिन बाद वे दोबारा से पशुओं की चमड़ी पर आ जाएंगे।

अकसर देखा गया है कि पशु के गरमाने के  लक्षण न देना व पशुओं का बार-बार गर्भाधान करवाने के बावजूद न टिकने का कारण भी बाह्म परजीवी हैं क्योंकि  इनका काम पशुओं का खून चूसना है। जिससे पशु कमजोर हो जाता है। यह परजीवी मुख्यतः चार तरह के होते हैं : पिस्सु, जुएं, चिचड़ व पिथड़। इन सभी परजीवी को एक ही दवाई है। आप पशु के शरीर पर मलने, स्प्रे करने की दवाई लगा सकते हैं, पशुओं को दवाई खिला सकते हैं या पशुओं को इंजेक्शन लगवा सकते हैं। इसके लिए आप अपने निकटतम पशु चिकित्सा अधिकारी से संपर्क करें। अगर आप पशु के शरीर पर दवाई मलते हैं, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें ः-

– मौसम साफ हो व धूप अच्छी हो।

– पशु को पहले खिला व पिला लें। उसके बाद उसके मुंह पर छक्कू बांध दें। उसके बाद गले व उसके पीछे दवाई को मल दें। ध्यान रखें कि मुंह, कान,नाक व आंखों के आसपास दवाई को न मलें।

पशुओं को दवाई लगाने के साथ-साथ पशुशाला में भी स्प्रे करना आवश्यक है क्योंकि ये परजीवी पशुशाला की दरारों में होते हैं। इसके लिए दवाई पशु चिकित्सा अधिकारी से लिखवाकर उसे पशुशाला में स्प्रे करें। इसके लिए जिस दिन मौसम साफ हो व धूप अच्छी हो, पशुओं को पशुशाला से बाहर बांधकर पशुशाला की सफाई करें। इसके बाद पशुशाला में दवाई का स्प्रे करें। स्प्रे खासकर दरारों में अवश्य करें। 8-10 घंटे बाद पशुशाला की फिर सफाई करें।

पशुशाला की सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। पशुशाला में जगह-जगह पानी न इकट्ठा न होने दें। खुरली में बचे हरे व सूखे घास को अवश्य फेंक दें। कोशिश करें कि पशुशाला का फर्श समतल हो व थोड़ा ढलानदार हो  ताकि पशु का मल मूत्र अपने आप ही पशुशाला से बाहर हो जाए। हो सके तो पशुशाला की दीवारों को भी पक्का व समतल बनाएं।

डा. मुकुल कायस्थ रिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी, उपमंडलीय पशु चिकित्सालय पद्धर(मंडी)

फोनः 94181-61948

नोट : ल्पलाइन में दिए गए उत्तर मात्र सलाह हैं।

Email: mukul_kaistha@yahoo.co.in


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