बदलाव मांगते सरकारी स्कूल
पूजा, मटौर
सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होने के कई कारण माने जा रहे हैं। एक तरफ जहां शिक्षकों की कमी इसका मुख्य कारण माना जा रहा है, वहीं और भी कई कारण हैं, जैसे सरकारी स्कूलों में प्री-नर्सरी कक्षाएं न शुरू करना, स्कूल के अनुशासन और स्कूल के समय के प्रति कठोरता न होना भी इसका कारण है। सरकारी स्कूलों में कई बच्चे सुबह की प्रार्थना के समय तक भी नहीं पहुंच पाते। इसके लिए शिक्षकों को भी सख्ती से काम करना चाहिए। अगर सरकारी स्कूलों के बच्चों को भी प्राइवेट स्कूलों की तरह हाइटेक सुविधा मिलना शुरू हो जाए, तो सरकारी स्कूलों में भी बच्चों की संख्या बढ़ सकती है और अगर ऐसा नहीं किया जाएगा, तो साल-दर-साल सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम ही होती जाएगी। आजकल सभी अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक हैं। कुछ स्कूल एक अध्यापक के सहारे चल रहे हैं, ऐसे में अभिभावकों को यह शिकायत रहती है कि एक शिक्षक के सहारे उनके बच्चे क्या पढ़ पाएंगे और एक टीचर कैसे संभालेगा स्कूल को। तभी अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में दाखिला देने से कतराते हैं। कुछ सरकारी स्कूलों में एक और बात देखने में आई है कि इन स्कूलों में इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई जारी करने के बावजूद बच्चों को मजबूरन हिंदी मीडियम में पढ़ाई करनी पड़ रही है, क्योंकि वहां अध्यापक इन्हें इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना नहीं चाहते हैं। इसके लिए भी शिक्षकों के खिलाफ कठोरता से कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि जो बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना चाहते हैं, वे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ सकें। सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारा जाए और निजी स्कूलों की तर्ज पर शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जाए और प्री नर्सरी कक्षाएं शुरू की जाएं। प्री नर्सरी के बच्चों को एनटीटी टीचर रखे जाएं। और भी कई बदलाव इस क्षेत्र में किए जा सकते हैं जैसे शिक्षकों की कमी को दूर किया जाए, जिससे सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या भी बढ़ेगी, शिक्षा का स्तर भी सुधरेगा और यह तभी संभव है, जब शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे।
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