बेटियों के लिए ‘व्रत’ कब ?

By: Apr 14th, 2018 12:05 am

संसद में गतिरोध पर प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और करीब 2000 सांसदों-विधायकों का एकदिनी सामूहिक उपवास तर्कसंगत और सरोकारी था। करीब 250 घंटे संसद में हंगामे और नारेबाजी ने बर्बाद कर दिए। देश के करदाताओं के करीब 372 करोड़ रुपए स्वाहा हो गए। बीते 18 सालों में संसद में इतना कम काम कभी नहीं हुआ। देश और बौद्धिक वर्ग इस मुद्दे पर लगातार चीखते रहे हैं, असंख्य संपादकीय और आलेख छापे जा चुके हैं, लेकिन बहरे कानों और अंधी आंखों वाली जमात ने कब संज्ञान लिया है! बेशक यह एक राष्ट्रीय और चिंतित सरोकार का मुद्दा है। लोकतंत्र को दबोचने और संसद को बंधक बनाने वालों को बेनकाब करना चाहिए। प्रधानमंत्री के इस कथन से हम भी सहमत हैं, लेकिन इतना ही महत्त्वपूर्ण सरोकार उप्र के उन्नाव बलात्कार कांड के संदर्भ में भी जरूरी है, जिसमें भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर कालिखों के घेरे में है। बलात्कार के 260 दिनों बाद तो प्राथमिकी दर्ज की गई और पाक्सो कानून भी चस्पां किया गया। यह कानून ही गैर-जमानती है, तो आरोपी विधायक को अभी तक जेल में ठूंसा क्यों नहीं गया? यदि विधायक आज भी छुट्टा घूम रहा है और प्रदेश के मुख्य सचिव तथा पुलिस महानिदेशक उस विधायक को ‘माननीय’ संबोधित करते हुए पुख्ता सबूतों से इनकार करते हैं, तो भाजपा की योगी सरकार की कानून-व्यवस्था पर ही सवाल उठते हैं। एक नाबालिग लड़की से बलात्कार और उसके पिता को पीट-पीट कर मार देने के पीछे कौन गुंडे-मवाली थे, योगी सरकार सबूतों के संदर्भ में असमर्थता जता रही है। फिर भाजपा और गुंडों की अन्य सरकारों में फर्क ही क्या रहा? पीडि़ता आत्महत्या का प्रयास कर चुकी है, अब भी जान देने पर उतारू है, क्या बलात्कार की बात कहना कोई बड़ी शान की बात है? बलात्कार के नए कानून के मुताबिक और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद बलात्कार के आरोप के तुरंत बाद ही आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए। पीडि़ता का बयान ही बुनियादी सबूत माना जाए, लेकिन पाक्सो एक्ट के बावजूद विधायक एक खुले सांड की तरह घूम रहा है। घोर आश्चर्य…इसी व्यवस्था के लिए उप्र में भाजपा को जनादेश दिया गया था? बहरहाल 260 दिनों के बाद प्राथमिकी और अब सीबीआई जांच को सौंपना…! साफ है कि योगी सरकार और भाजपा इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहती हैं। सीबीआई भी तो केंद्र सरकार का ‘तोता’ है। उसकी स्वायत्तता और ईमानदारी केंद्र सरकार के इशारों के मुताबिक ही चलती है। उपवास के दौरान पत्रकारों ने भाजपा नेताओं की टिप्पणियां जाननी चाहीं, तो अधिकतर चुप्पी साध गए या टरकाऊ-सा बयान दे दिया। अंततः सवालों के कटघरे में प्रधानमंत्री मोदी ही हैं। हमने बीते कल भी इसी मुद्दे का विश्लेषण किया था। बेटियों से जुड़े सरोकार प्रधानमंत्री और निजी तौर पर मोदी की आत्मा के करीब रहे हैं। संसद में गतिरोध पर उपवास तो मोदी सरकार और भाजपा का कायराना व्यवहार है। भाजपा के ही कुछ वरिष्ठ सांसद उपवास और वेतन-भत्ते न लेने के फैसले के खिलाफ हैं। उनकी अनौपचारिक दलीलें हैं कि वे तो नियमित तौर पर संसद में गए, लेकिन वेतन और भत्ते उनके काटने चाहिए, जिन पर सदन की कार्यवाही चलाने के दायित्व हैं। या उन्हें दंडित किया जाए, जो संसद के भीतर ‘सब्जी मंडी’ बनाए हुए थे। उपवास रखने से संसद से जुड़े मसलों का समाधान नहीं हो सकता। यदि इसके समानांतर बेटियों की इज्जत को लेकर भी मोदी सरकार और भाजपा एक लंबे उपवास पर बैठें, तो उसका सामाजिक-राष्ट्रीय संदेश बहुत दूर तक जाएगा और भाजपा को सियासी फायदा भी होगा। कमोबेश उन असंख्य घरों के जख्मों पर मरहम भी लगेगा, जो भारत में बेटी के जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं। लोग अब नया नारा कहने लगे हैं-‘बेटी डराओ, विधायक बचाओ।’ प्रधानमंत्री मोदी ऐसे मुद्दों की गहराई समझें, जो देश के सरोकार बन रहे हैं, उन मुद्दों को भी समझें। सामाजिक संदर्भों को खूंटी पर नहीं टांगा जा सकता। जन-धन, उज्ज्वला, मुद्रा, एक रुपए में जीवन बीमा, बिजली, सड़कें और अंतरराष्ट्रीय छवि ही पर्याप्त नहीं है। बलात्कार सरीखे मुद्दों पर जनता का मूड बदलने लगा, तो 2019 में कुछ भी हो सकता है।

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