बेटी को लेकर बहुत असुरक्षित महसूस करता हूं

By: Apr 15th, 2018 12:10 am

मनोज बाजपेयी

मनोज बाजपेयी बालीवुड के बेहतरीन अदाकारों में से हैं। किरदारों की रूह में जाना उन्हें खूब आता है। उनके सशक्त अभिनय से सजी अय्यारी भले ही बॉक्स आफिस पर अपना जलवा न दिखा सकी, मगर उनकी हालिया रिलीज बागी -2, 150 करोड़ कमा चुकी है। उनकी फिल्म मिसिंग को भी दर्शकों का एक खास वर्ग पसंद कर रहा है। इस फिल्म से वह एक्टर के अलावा को-प्रोड्यूसर के तौर पर भी जुड़े हैं। इस मुलाकात में उन्होंने फिल्म, अपनी बेटी, तब्बू, अय्यारी की नाकामी जैसे कई विषयों पर बात की…

आपकी साथी कलाकार तब्बू का कहना है कि उन्होंने सेट पर आपको बहुत परेशान किया और खूब नखरे दिखाए?

हां। वह नखरे दिखाती हैं और वह इसलिए कि मैं उनका दोस्त हूं। उन्होंने मुझे कतई परेशान नहीं किया। असल में जब वह शूटिंग पर आईं, तो मैंने उनसे कहा कि रिजॉर्ट में जो सबसे अच्छा कमरा है, वह उसे चुन लें। वह मेरी प्रिय दोस्त हैं और मेरी फिल्म की हीरोइन, तो उन पर खास तवज्जो देना मेरा फर्ज बन जाता है। आमतौर पर लोगों का मानना है कि अपोजिट जेंडर के दो लोग दोस्त नहीं बन सकते। मगर मेरी और तब्बू की दोस्ती इस बात की मिसाल है। तब्बू और अपने बारे में क्या कहूं, हम सालों से दोस्त हैं। तकरीबन रोजाना बात करते हैं। जब भी कुछ साझा करना होता है, हम एक-दूसरे को फोन लगा देते हैं। हम न केवल एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं बल्कि अपने द्वंद्व से निकलने में भी मदद करते हैं। तब्बू को मैं अपने परिवार का हिस्सा मानता हूं।

अय्यारी से लोगों को बहुत उम्मीदें थीं, आपको क्या लगता है, क्या कसर रह गई?

प्रदर्शन की तारीखों का बार-बार बदलना फिल्म के लिए घातक साबित हुआ। पूरी दुनिया ने देखा था कि हम रिलीज डेट को लेकर किस तरह से फंस गए थे। जहां पर दो बड़ी फिल्मों ने हमारे साथ ही आना उचित समझा और हमने विवेकी होकर उस क्लैश को टालने की पहल की। हम चाहते थे कि हमें सोलो रिलीज का फायदा मिले, मगर वह अंत तक नहीं हो पाया। फिल्म अगर अपनी तयशुदा तारीख पर रिलीज होती, तो फिल्म को यकीनन फायदा मिलता। ‘अय्यारी’ भले चली नहीं, मगर यह मेरे करियर की सबसे अहम फिल्म है और यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि एक कलाकार के रूप में मैं अपने अभिनय के क्राफ्ट को अलग स्तर तक ले जा पाया।

बागी- 2 जैसी फिल्म तेजी से 100 करोड़ क्लब में शामिल हो गई है। आपने इस फिल्म में अपनी भूमिका से लोगों को चौंका भी दिया है। कैसा महसूस हो रहा है?

काश इसका आधा भी मेरे घर आ जाता। कह कर जोर से हंस देते हैं। वैसे मैं टाइगर के लिए बहुत खुश हूं। उसने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की है। शूटिंग के समय हमने वह मेहनत देखी थी। अहमद खान के लिए खुश हूं क्योंकि उन्हें जरूरत थी इस हिट की। अपने करियर के आरंभिक दौर में उन्होंने जो फिल्में बनाई थीं, वे चली नहीं थीं। अहमद खान मेरा बहुत पुराना दोस्त है। अगर आपको याद होगा, तो सत्या का ‘सपने में मिलती है रे कुड़ी’ उसी ने कोरियॉग्राफ किया था। मैंने यह फिल्म उसके सपोर्ट में की है। आप सभी जानते हैं कि अमूमन मैं कमर्शल-मसाला फिल्मों का हिस्सा नहीं होता। इस फिल्म को करने के लिए मैं इसलिए राजी हुआ कि अहमद चाहता था कि मैं यह रोल करूं और कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा की इच्छा थी कि हम सभी मिलकर अहमद का साथ दें। मैंने दोस्त के लिए फिल्म की और दोस्त की फिल्म सुपर हिट हो गई है, तो इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती है।

आपकी हालिया फिल्म ‘मिसिंग’ बच्ची के अगवा होने की कहानी है। आप स्वयं एक बेटी नायला के पिता भी हैं। कभी बेटी की सुरक्षा को लेकर घबराहट होती है?

मुझे तो बहुत घबराहट होती है। मेरा मानना है कि बच्चों के साथ में कुछ भी गलत होता है, तो हर तरह से माता-पिता ही जिम्मेदार हैं। हमने अपने परिवार में बेटी को लेकर एक नियम बनाया है कि जब तक वह एक खास उम्र की नहीं हो जाती, हम अपनी बेटी को आंखों के सामने से ओझल नहीं होने देंगे। वह सिर्फ  उतने समय तक दूर रहती है, जब तक वह स्कूल में होती है। उसके पहले या उसके बाद हम उसको मेड के सहारे नहीं छोड़ते। हमारी कोई चाइल्ड मेड या नैनी नहीं हैं। हम अपनी बच्ची को लेकर बहुत केयरफुल हैं। भगवान करे कि सब कुछ अच्छा रहे, मगर आजकल बच्चों पर खतरा बहुत है। दुनिया में आबादी बहुत बढ़ी है और उसी के साथ अच्छे ही नहीं, बुरे लोग भी बढ़े हैं। ऐसे में बुरे लोगों को पहचान पाना बहुत मुश्किल है। मैं तो बहुत ही इन्सिक्यॉर पिता हूं।

आप फिल्म के निर्माता बनने को कैसे प्रेरित हुए?

मैं नीरज पांडे जी के कारण प्रोड्यूसर बना। असल में मेरा स्वभाव बहुत ही पारदर्शी है। या तो मैं हंसता हूं या गुस्सा होता हूं। मैं जरा भी डिप्लोमेटिक नहीं हूं और निर्माता को बीच में रहना पड़ता है। कई बार मैं एक्सट्रीम पर पहुंच जाता हूं, तो मैं निर्माता नहीं बन सकता। अब सोचता हूं, तो लगता है कि नीरज पांडे और शीतल भाटिया ने मुझे इसलिए भी प्रोड्यूसर बनाया कि मैं शूटिंग करवा सकूं क्योंकि वे लोग किसी और फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे।


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