भगवा आतंकवाद का झूठ

By: Apr 18th, 2018 12:05 am

क्या अब कहा जा सकता है कि ‘भगवा या हिंदू आतंकवाद’ नाम की कोई हकीकत नहीं है? वह कांग्रेस की राजनीतिक साजिश थी और वह हिंदू-मुसलमान विभाजन से वोट बटोरना चाहती थी। यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे सुशील कुमार शिंदे और चिदंबरम के इन आरोपों से मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी भी दुखी और परेशान थे। कई मासूमों ने इस अवधारणा के तहत सालों जेलों में यातनाएं भी झेलीं। अब बुनियादी सवाल यह है कि ‘भगवा आतंकवाद’ की फर्जी अवधारणा को गढ़ने के लिए क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी देश से सार्वजनिक माफी मांगेंगे? सोनिया कांग्रेस एवं यूपीए अध्यक्ष थीं और आज राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हैं। चूंकि हैदराबाद की मक्का मस्जिद विस्फोट में आरएसएस से जुड़े कुछ चेहरों को भी गिरफ्तार किया गया था। अब उनमें स्वामी असीमानंद समेत 5 आरोपी बरी कर दिए गए हैं, क्योंकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इन कथित ‘हिंदूवादी’ आरोपियों के खिलाफ प्रमाणित साक्ष्य पेश करने में नाकाम रही। लिहाजा ‘भगवा आतंकवाद’ के गुमराह को भी खंडित किया गया है। स्वामी असीमानंद अजमेर दरगाह विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस विस्फोट आदि आतंकी वारदातों में भी आरोप-मुक्त हो चुके हैं या जमानत पर हैं। उनके समेत साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित, इंद्रेश आदि ‘संघवादी’ बरी हो चुके हैं या आरोप नाकाम रहे हैं। लिहाजा सवाल है कि उन आतंकी हरकतों के पीछे आखिर कौन-सा रंग काम कर रहा था-भगवा या हरा? दरअसल जो मानते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म या रंग नहीं होता, वे झूठ बोलते हैं या अज्ञानी हैं! आतंकी गतिविधियां धर्म से ही प्रेरित रही हैं। नहीं तो कांग्रेस हिंदू धर्म और संस्कृति पर प्रहार करने के मद्देनजर ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा क्यों गढ़ती? 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, कांग्रेस-यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस के ही जयपुर चिंतन शिविर के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री शिंदे ने भाजपा और संघ के टे्रनिंग सेंटरों में ‘भगवा या हिंदू आतंकवाद’ की सक्रियता की बात कही थी, तो वह रंग कहां से आया? उनसे पहले 2010 में तब के गृहमंत्री चिदंबरम ने भी ‘भगवा आतंकवाद’ के आरोप चस्पां किए थे। यह भी कहा गया था कि संघ नेताओं ने कुछ आतंकी हमलों को अंजाम दिया था। हालांकि तब विपक्ष में रही भाजपा के भारी विरोध के बाद शिंदे को लोकसभा में माफी मांगनी पड़ी थी, लिहाजा ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा को भी वापस लेना पड़ा था, लेकिन कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमरीकी राजदूत के साथ संवाद के दौरान हिंदुओं को ‘अलकायदा’ से भी ज्यादा खतरनाक करार दिया था। सवाल है कि आज राहुल ‘जनेऊ’ धारण कर हिंदू मंदिरों और मठों में दर्शन करते, पूजा-पाठ करते और संतों के चरण स्पर्श करते क्यों घूम रहे हैं? क्या अब ‘हिंदुत्व’ ही चुनावी बेड़ा पार लगाएगा? ‘खतरनाक हिंदू’ आज ‘श्रद्धेय’ कैसे और क्यों हो गए हैं? मक्का मस्जिद केस ने पूरी कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी को बेनकाब कर दिया है। गृह मंत्रालय में तब अंडर सेक्रेटरी रहे आरवीएस मणि का यह कथन भी रहस्योद्घाटन करता है-‘2010 तक एक भी खुफिया सूचना नहीं थी भगवा आतंकवाद की। सीबीआई जांच में भी भगवा आतंकवाद के कोई लिंक सामने नहीं आए। बाद में यूपीए सरकार ने एनआईए को केस सौंप दिया। वह एक नई एजेंसी थी। उसके पास कोई ऐतिहासिक और प्रामाणिक डाटा भी नहीं था, लिहाजा देश को गुमराह किया गया कि भगवा या हिंदू आतंकवाद है।’ गौरतलब है कि हैदराबाद की मक्का मस्जिद में 18 मई, 2007 को जुम्मे की नमाज के दौरान धमाके किए गए थे। उनमें नौ लोग मारे गए और 58 जख्मी हुए थे। तत्कालीन गृहमंत्रियों के ‘हिंदू आतंकवाद’ आरोपों के कारण जिन बेकसूर लोगों को सालों-साल जेल में यातनाएं झेलनी पड़ीं, क्या उनके लिए शिंदे और चिदंबरम को दोषी करार न दिया जाए? लिहाजा चुनाव आयोग से आग्रह है कि वह इन दोनों नेताओं पर चुनावी पाबंदी थोप दे। सोनिया और राहुल गांधी माफी नहीं मांगते हैं, तो देश के मतदाता कांग्रेस की नियति तय करें। ‘भगवा आतंकवाद’ कहना कोई सामान्य अपराध नहीं है। गांधी परिवार उस आपराधिक साजिश में लिप्त रहा है, लिहाजा उनके खिलाफ कानूनन कार्रवाई की जाए। कांग्रेसी प्रवक्ता इस अवधारणा के लिए तत्कालीन गृहसचिव आरके सिंह पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। सिंह आज भाजपा सांसद हैं और मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं। सवाल भोला-सा है कि गृह मंत्रालय का प्रभारी गृहमंत्री होता है या एक सचिव…? क्या मंत्री के तौर पर शिंदे और चिदंबरम अपने गृह सचिव के जुमले को नकार नहीं सकते थे? और गौरतलब यह भी है कि उस केस की जांच 2011 में एनआईए को सौंपी गई। तब तक जांच सीबीआई कर रही थी, उसने ढेरों साक्ष्य जमा किए थे, लेकिन उससे पहले 2010 में ही तब के गृहमंत्री चिदंबरम को ‘भगवा आतंकवाद’ का सपना कहां से आ गया? किसने यह अवधारणा उनके मानस में उंडेल दी? बहरहाल अब यह मुद्दा कर्नाटक के चुनाव को प्रभावित कर सकता है, लेकिन आरोपियों को बरी करने वाले विशेष जज रवींद्र रेड्डी ने अपने पद से इस्तीफा क्यों दिया, यह सवाल भी संदेह पैदा करने वाला है।

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