मिंजर मेले से होता है वरुण देवता की पूजा का एहसास

By: Apr 18th, 2018 12:05 am

‘अखंड चंडी महल’ से एक सुंदर जुलूस निकाला जाता है, जो शहर की सुसज्ज्ति गलियों से निकलता हुआ रावी के किनारे पहुंचता है, जहां लोग हाथों में लिए हुए मिंजर मक्की के फूल व नारियल पानी में बहाते हैं। इसमें वरुण देवता की पूजा का भी  आभास मिलता है…

चंबा का मिंजर मेला : यह चंबा जिला का देश भर में प्रसिद्ध मेला है, जो श्रावण मास के दूसरे रविवार से आरंभ होकर अगले रविवार तक चलता रहता है। यह मेला चंबा के राजा साहिल वर्मन (920-940ई.), जिसने चंबा शहर की नींव रखी थी, के समय से आरंभ हुआ था। राजा साहिल वर्मन एक अति वीर राजा था, जिसने किर और तुरूकश नामक शक्तिशाली कबीलों को हराया था। इसी विजय की खुशी में राजा को लोगों ने मिंजरें (मक्की के पौधे के ऊपरी भाग) भेंट की व राजा ने उन्हें अशरफियां भेंट कीं। उसी समय से यह मेला आयोजित किया जाता है। मेले के अंतिम दिन चंबा के सारे देवता इकट्ठे होते हैं। ‘अखंड चंडी महल’ से एक सुंदर जलूस निकाला जाता है, जो शहर की सुसज्जित गलियों से निकलता हुआ रावी के किनारे पहुंचता है, जहां लोग हाथों में लिए हुए मिंजर मक्की के फूल व नारियल पानी में बहाते हैं। इसमें वरुण देवता की पूजा का भी आभास मिलता है। यह एक राज्य स्तरीय मेला है।

देवी मेले: हिमाचल व देश भर में प्रसिद्ध देवी मेले बिलासपुर में श्रीनयनादेवी, ऊना में चिंतपूर्णी और कांगड़ा में ज्वालाजी तथा बज्रेश्वरी देवी के मेले हैं। इन मंदिरों में नवरात्र में तीन बार चैत्र, श्रावण व आसूज के महीनों में मेले लगते हैं, जिनमें देश के कोने-कोने से आकर लोग देवी के दर्शन करते हैं और इच्छानुसार देवी को भेंटें चढ़ाते हैं। नवरात्र में जिन्हें ‘देवी के वार’ कहते हैं, देवी के दर्शन करना पुण्य माना जाता है। हिमाचल प्रदेश के कस्बे में कई देवी मंदिर हैं।

मेला बड़भाग सिंह: डेरा बाबा बड़भाग सिंह ऊना से 40 किलोमीटर दूर मैड़ी में स्थित है। ऊना का यह सबसे बड़ा धार्मिक स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि 300 वर्ष पूर्व पंजाब के कस्बा करतारपुर से बाबा राम सिंह के पुत्र बाबा बड़भाग सिंह अहमदशाह अब्दाली के हमलों से तंग आकर शिवालिक पहाडि़यों की ओर आ गए थे तथा वह नैहरी के समीप दर्शनी खड्ड में पहुंच गए। बड़भाग सिंह बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। करतारपुर में अफगान सैनिकों द्वारा तंग करने के कारण उन्होंने मैड़ी में अपना जीवन व्यतीत करने का इरादा बना लिया था, परंतु उन्हें सैनिकों द्वारा यहां आकर भी तंग करने का प्रयास किया गया और दर्शनी खड्ड के पास उनका अफगानी फौज के साथ युद्ध हुआ। बताते हैं कि उन्होंने आध्यात्मिक प्रभाव से अफगान फौज को वहां से खदेड़ दिया और मैड़ी को अपनी तपस्या स्थली बना लिया। उस समय वह स्थान वीरान था। यह भी कहा जाता है कि यदि इस क्षेत्र में कोई व्यक्ति भूल से प्रवेश करता था, तो भूत-प्रेत और दुष्ट आत्माएं उसे बीमार या पागल कर देती थीं।

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