लंदन से ‘लिगायत’ नमः!

By: Apr 20th, 2018 12:05 am

प्रधानमंत्री मोदी ने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद इतना समय जरूर निकाला कि वह लिंगायतों के भगवान-स्वरूप संत बसवेश्वर के दर्शन कर सकें और उनकी जयंती पर उन्हें याद कर सकें। लंदन में प्रधानमंत्री मोदी ने संत की प्रतिमा पर फूल बरसाए, मन में ही उनका स्मरण किया और माथा टेक कर अपनी आस्था बयां की। अल्बर्ट इंबैंकमेंट में स्थापित संत बसवेश्वर की प्रतिमा पहली ऐसी मूर्ति है, जिसका अनावरण भारतीय प्रधानमंत्री ने किया। यह ऐसी प्रतिमा है, जिसकी मंजूरी ब्रिटिश कैबिनेट ने संसद परिसर के पास दी। ब्रिटेन में भी ‘बसवेश्वर फाउंडेशन’ नामक संगठन है, जिसने प्रतिमा पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का आयोजन किया था। भारत में कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की उस मुद्रा पर भी सवाल उठाए। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसामे के साथ संवाद के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी ने लिंगायतों के ‘प्रथम पुरुष’ का उल्लेख किया। दो साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने ही उस प्रतिमा का अनावरण किया था। लंदन के ऐतिहासिक ‘वेस्टमिंस्टर सेंट्रल हॉल’ में भारतवंशियों को संबोधित करते हुए भी प्रधानमंत्री ने लिंगायती संत का उल्लेख किया। यह वही हॉल है, जहां महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग सरीखे विश्व-नेताओं ने कभी संबोधित किया था। भारतवंशी ‘मोदी…मोदी…मोदी’ के नारे गुंजाते थक नहीं रहे थे। एक भी भारतवंशी ने विदेशी जमीन पर अपने प्रधानमंत्री के किसी भी कथन और फैसले पर सवाल नहीं उठाए। यदि संत, समाज सुधारक, भारतीय चिंतक बसवेश्वर की जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी संत की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि नहीं देते, तब भी कांग्रेस सवाल उठाती और कर्नाटक में चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करती। यदि प्रधानमंत्री ने 12वीं शताब्दी के संत का स्मरण कर उनकी प्रासंगिकता स्थापित करने का प्रयास किया है, तो कांग्रेस का सवाल है कि विदेशी प्रवास के दौरान भी प्रधानमंत्री सियासत नहीं भूलते। बल्कि एक धार्मिक-सामाजिक संत के जरिए सियासत की जा रही है। दरअसल प्रधानमंत्री की इस मुद्रा में भी गलत क्या है, उनका पाप या अपराध क्या है? कर्नाटक में 12 मई को मतदान है। प्रधानमंत्री मोदी भी बुनियादी तौर पर एक राजनेता ही हैं। वह राजनीति करें या हवन-कुंड लेकर यज्ञ करने लगें! विदेशी जमीन पर प्रधानमंत्री मोदी पूरे हिंदुस्तान के ‘प्रतिनिधि’ होते हैं, लिहाजा वह भारतीय संदर्भों, संतों, महापुरुषों, जयंती और पुण्यतिथियों को कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? उन्होंने विदेशी जमीन पर राष्ट्रपिता गांधी की प्रतिमाएं स्थापित करवाईं, उन पर माल्यार्पण किया, तो ‘लौहपुरुष’ सरदार पटेल का भी सम्मान किया, डा. भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों पर भी पुष्पांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री देश के स्वतंत्रता संग्राम या विश्व युद्धों के दौरान ‘शहीद’ हुए भारतीय सैनिकों और जवानों तक को नहीं भूले। उनके नाम भी श्रद्धांजलि के शब्द लिखे। कांग्रेस की आशंका है कि लिंगायतों के भगवान पर फूल बरसाने से ही भाजपा को वोट मिलने लगेंगे। ऐसा कांग्रेस ने ही कोशिश की है, जिसकी कर्नाटक में पांच साल सरकार रही, लेकिन चुनाव से कुछ सप्ताह पहले ही उसने प्रस्ताव पारित किया कि लिंगायत को अलग धर्म माना जाए और उसे ‘अल्पसंख्यक’ का दर्जा दिया जाए। सिद्धरमैया सरकार ने वह प्रस्ताव केंद्र की मोदी सरकार को भेज रखा है। बेशक लिंगायत कर्नाटक के उत्तर में एक प्रभावशाली जमात है। करीब 17-18 फीसदी आबादी वाले इस समुदाय का प्रभाव कमोबेश 100 विधानसभा सीटों पर है। परंपरा से लिंगायत भाजपा-समर्थक रहे हैं। भाजपा ने इस बार भी लिंगायतों के बड़े नेता येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया है। राज्य के 9 मुख्यमंत्री लिंगायत रह चुके हैं, लिहाजा वह प्रस्ताव पारित कर कांग्रेस ने भाजपा के जनाधार में सेंध लगाने की रणनीति तय की थी, लेकिन 40 से अधिक मठों ने लिंगायतों के बंटवारे का विरोध किया है। संत बसवेश्वर ने हालांकि 1311 में कर्नाटक के बागेवाड़ी के एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया, लेकिन वह समाज में व्याप्त गरीब-अमीर, जातिवाद और ब्राह्मणवाद के खिलाफ थे। संत ने बांटो और राज करो सरीखी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी। लिंगायत संप्रदाय की स्थापना करने वाले संत की प्रतिमा पर आस्था जताकर, प्रधानमंत्री मोदी ने बेशक मास्टर-स्ट्रोक खेला है।

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