व्यास गुफा के नाम पर पड़ा बिलासपुर का नाम

By: Apr 18th, 2018 12:05 am

पहले बिलासपुर का नाम व्यासपुर था। यहां पर रंगनाथ जैसे कुछ पुराने मंदिर और एक व्यास गुफा थी। संभवतः इस व्यास गुफा से ही इस स्थान का नाम व्यासपुर और फिर बिलासपुर पड़ा। इस राजा ने बिलासपुर में अपने लिए भवन, लोगों के लिए रंगनाथ मंदिर के सामने धर्मशाला और एक देवमती मंदिर भी बनवाया…

बिलासपुर

राजा तारा चंद (1645 ई.) ः कल्याण चंद के आठ पुत्र थे और तारा चंद उनमें सबसे बड़ा था। इसने राजा बनने के पश्चात हिंदूर पर चढ़ाई करके महलोग तक का पहाड़ी प्रदेश जीत लिया और नालागढ़ के ऊपर अपने नाम से ‘तारागढ़ किला’ और ‘तारादेवी का मंदिर’ बनवाया। जब गुरु हरगोबिंद सिंह (1595-1644ई.)और उनके पश्चात गुरु हरिराय (1630-1661ई.) ने कीरतपुर में स्थायी तौर पर रहना आरंभ कर दिया तो शाहजहां ने राजा तारा चंद को उनको वहां से निकाल देने के लिए कहा।परंतु राजा ने मुगल सम्राट के फरमानों की अवहेलना की। इसलिए नजाबत खां ने शाहजहां के आदेश पर 1645 ई. में कहलूर पर आक्रमण करके राजा तारा चंद को बंदी बना लिया। गुरु हरिराय ने स्वयं सिरमौर में किसी ‘थपल’ नामक स्थान में शरण ली। कहलूर की आतंरिक स्थिति से लाभ उठाकर नालागढ़ के राजा ने सुकेत और कांगड़ा के राजाओं को अपनी ओर मिलाकर कहलूर पर तीन तरफ से आक्रमण कर लिया। हिंदूर ने कई किले जीते। हिंदूर में तारागढ़ नामक किला उसी ने बनवाया था, जो अब ढह गया है। राजा दीप चंद (1650-1656 ई.) ः दीप चंद राज बना तो वह अपनी राजधानी सुन्हाणी से बिलासपुर ले आया। पहले इस स्थान का नाम व्यासपुर था। यहां पर रंगनाथ जैसे कुछ पुराने मंदिर और एक व्यास गुफा थी। संभवतः इस व्यास गुफा से ही इस स्थान का नाम व्यासपुर और फिर बिलासपुर पड़ा। इस राजा ने बिलासपुर में अपने लिए भवन, लोगों के लिए रंगनाथ मंदिर के सामने धर्मशाला और एक देवमती मंदिर भी बनवाया। ‘शशिवंश विनोद’ में नई राजधानी की स्थापना की। तिथि सन् 1654 ई. दी गई है। राजा ताराचंद के समय में जो राज्य के हिस्से हाथ से निकल गए थे, वे इस राजा ने वापस ले लिए और स्थानीय सीमांत को फिर से अपने अधीन कर लिया। राजा दीप चंद ने खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। उसने बिलासपुर में ‘ढोलरा’ नामक महल का निर्माण करवाया। दीप चंद के समय औरंगजेब मुगल सम्राट था। औरंगजेब ने एक बार दीप चंद को लाहौर बुलाया और अपनी कुछ सेना देकर ‘अटक’ के पठानों पर चढ़ाई करने के लिए भेजा। वहां पर राजा ने बड़ी वीरता दिखाई और अटक के किले पर अधिकार कर लिया। जब वह अटक से किला जीत कर लाहौर लौट आया तो औरंगजेब ने उसको पांच लाख रुपए की खिल्लत और राजा की पदवी प्रदान की। उसे एक सनद भी दी गई, जिसके द्वारा उसे बाइस पहाड़ी राज्यों की प्रभुसत्ता भी प्रदान की गई। राजा ने अभिवादन के  लिए नए तरीके विकसित किए, जिसमें राजा के लिए जय देवा मियां के लिए ‘जयां’ तथा राणाओं के लिए ‘राम-राम’। लाहौर से वापस आते समय वह कांगड़ा आया। कहते हैं कि वहां के राजा आलम चंद ने नादौन नामक स्थल पर उसे भोजन में विष देकर मार दिया।

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