शहर की ऐसी शराफत गले नहीं उतरती

By: Apr 29th, 2018 12:06 am

पुस्तक समीक्षा

* कहानी संग्रह का नाम : शहर की शराफत

* कहानीकार का नाम : शेर सिंह

* कुल पृष्ठ : 144

* मूल्य : 350 रुपए

* प्रकाशक : भावना प्रकाशन, पटपड़गंज, दिल्ली

हिमाचल के प्रसिद्ध लेखक शेर सिंह इस बार कहानी संग्रह ‘शहर की शराफत’ लेकर आए हैं। यह इनकी तीसरी पुस्तक तथा दूसरा कहानी संग्रह है। पहला कहानी संग्रह ‘आस का पंछी’ में ग्रामीण, नगर और महानगरों से संबंधित जीवन सरोकारों की मिश्रित कहानियां थीं, तो वर्तमान कहानी संग्रह में ‘अभिशप्त’ के अलावा शेष सभी कहानियां शहरी और वे भी महानगरों के जीवन, मानव स्वभाव, चरित्र और सबसे बढ़कर आज के समय में बढ़ती संवेदनहीनता की समस्याओं को दर्शाने वाली हैं। मूलतः कुल्लू के रहने वाले शेर सिंह का मानना है कि वर्तमान में सभी ओर बदलाव व प्रगति का आभास होता है। लेकिन इस प्रगति में मनुष्य का, समाज का, देश और दुनिया के चरित्र में जो बदलाव दिख रहा है, उसे उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता, बल्कि सामाजिक मान्यताओं, अपेक्षाओं के अनुरूप और अनुकूल तो यह लगता ही नहीं है। जटिल होते सामाजिक सरोकारों, विश्वासों, गिरती चारित्रिक शुचिता, खंडित होते पारिवारिक रिश्तों का जो रूप और व्यवहार नजर आता है, वह कतई मानवीय संवेदनाओं को बढ़ाता नजर नहीं आ रहा है। इस कहानी संग्रह में कुल 11 कहानियां हैं। इनमें अभिशप्त, सफर में, अतृप्ति, शिकारी, मां, अजनबी हमसफर, अनुशासन का कीड़ा, बड़े अधिकारी का निरीक्षण दौरा, दरकते रिश्ते, सुबह का उजाला व शहर की शराफत शामिल हैं। टाइटल कहानी शहर की शराफत इस कहानी संग्रह की मुख्य कहानी है जो पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचती है तथा जब तक कहानी खत्म नहीं होती, तब तक उन्हें बांधे रखती है। इसमें एक वृद्ध आदमी की कहानी बताई गई है जो शहर में अपने कुछ युवा परिचितों के साथ कुछ दिन बिताता है। उसे शहर का वातावरण पसंद नहीं आता है क्योंकि इसमें उसे नकलीपन की बू आती है। शहरी युवाओं का खान-पान व रहन-सहन का ढंग भी उसे पसंद नहीं आता है और वह जैसे-तैसे इन लोगों के बीच कुछ दिन बिताता है। जिन युवा दोस्तों का यह जबरदस्ती मेहमान बना था, वे हाल ही में मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी में लगे थे। वास्तव में शहरी जीवन में जो प्यार है, वह गंभीर होने के बजाय उथला हुआ है और इस वृद्ध को टीस भी यही है। यह कहानी इस ओर संकेत करती है कि अधेड़ उम्र के व्यक्ति का शहरी युवा लोगों के साथ रहना वास्तव में मेल नहीं खाता है और ऐसे लोगों को बड़ी मुश्किल से एडजस्ट करना होता है। इस वृद्ध को लगता है कि लोग शहरों में नकली जीवन व्यतीत करते हैं, उसमें प्राकृतिक कुछ भी नहीं है। उनके गर्व और उच्च स्तर में नकलीपन का एहसास होता है। कहानी संग्रह की अन्य कहानियां भी कुछ न कुछ सामाजिक संदेश देती हैं। ये कहानियां सरल भाषा में लिखी गई हैं। कहानियों में ट्विस्ट भी है जो पाठकों को अपने साथ बांधे रखता है। कहानियां अपने विस्तार में छोटी हैं तथा पाठकों को दुरूह नहीं लगती हैं। आशा है पाठकों को यह कहानी संग्रह पसंद आएगा।

-फीचर डेस्क

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