संसदीय प्रणाली : इंडियन नेशनल कांग्रेस बनी जन संगठन
गतांक से आगे…
भारत सरकार अधिनियम, 1919 :
1926 के निर्वाचनों के परिणाम स्वराज पार्टी के लिए निराशाजनक रहे। मार्च, 1926 को अखिल भारत कांग्रेस समिति ने सरकार से सहयोग के कोई चिन्ह दिखाई न देने के कारण स्वराजवादियों से कहा कि वे विरोध स्वरूप विधानमंडलों से उठकर चले आएं। इस प्रकार से स्वराजवादी प्रयोग भी समाप्त हुआ। इस अवधि के दौरान एक महत्त्वपूर्ण घटना अध्यक्ष पद का विकास था। केंद्रीय विधानसभा का प्रथम प्रेजिडेंट (अध्यक्ष), सर फ्रेडरिक ह्नाइट को मनोनीत किया गया था, परंतु अगस्त, 1926 में श्री विट्ठलभाई पटेल को चुना गया और वह सभा के प्रथम गैर-सरकारी प्रेजिडेंट (अध्यक्ष) बने। उन्होंने तथा सदन के अनेक सदस्यों ने महसूस किया कि सभा का सचिव भारत सरकार के अधीन विधायी विभाग का सचिव होने से निर्वाचित अध्यक्ष की स्वतंत्रता का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 22 सितंबर,1928 को पंडित मोतीलाल नेहरू ने सदन में संकल्प पेश किया कि एक पृथक सभा विभाग (एसेंबली डिपार्टमेंट) बनाया जाए। यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार हुआ। सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया ने कुछ रूपभेदों के साथ उसे स्वीकृति प्रदान की और 10 जनवरी, 1929 से विधानसभा विभाग नामक एक पृथक पूर्ण विभाग बनाया गया। अध्यक्ष को नए विभाग का वास्तविक प्रमुख अधिकारी बनाया गया और उसके लिए कर्मचारी अध्यक्ष की अनुमति से नियुक्त किए गए। भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अनुसार किए गए सीमित सुधार प्रतिनिधि उत्तरदायी सरकार की जनता की मांग को पूरा करने में पूर्णतया अपर्याप्त सिद्ध हुए। सीमित शक्तियों वाले विधानमंडल के विरुद्ध राष्ट्रीय मत बढ़ता गया और वर्ष- प्रतिवर्ष पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न संसद और उत्तरदायी सरकार के लिए मांग जोर पकड़ती गई। साइमन कमीशन की नियुक्ति ः 1920 से 1935 तक के वर्ष बहुत महत्त्वपूर्ण थे। इन वर्षों में देश में बहुत राजनीतिक चेतना पैदा हुई। महात्मा गांधी के नेतृत्व में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने एक जन संगठन का रूप ले लिया। 1919 के अधिनियम में व्यवस्था थी कि दो वर्षों की अवधि व्यतीत हो जाने पर एक रायल कमीशन नियुक्त किया जाए।
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