समृद्धि ही बचा सकती है दंगों से

By: Apr 5th, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

जब समय कठिन होता है तो उत्तेजना की नहीं, बल्कि धैर्य और सम्मति की आवश्यकता होती है। हमारे देश में जनतंत्र की हालत यह है कि शासन-प्रशासन में जनता की भागीदारी कहीं भी नहीं है। देश में जनतंत्र सिर्फ 5 साल बाद आता है, जब लोग सत्तापक्ष को सत्ता से बाहर करके अपना गुस्सा निकालते हैं। दुर्भाग्य यह है कि दल बदल देने से स्थिति नहीं बदल जाती। हम सांपनाथ को हटा देते हैं और किसी नागनाथ को सत्ता सौंप देते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में ऐसे ‘बंद’ और आंदोलन आम हैं, जिनमें तोड़-फोड़ और हिंसा होती है…

पद्मभूषण समाजसेवी बाबा अन्ना हजारे की उपलब्धियों की सूची बहुत लंबी है। उन्होंने विकास, सरकारी कामों में पारदर्शिता, सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार के निवारण आदि के लिए लगातार काम किया। बाबा हजारे ने महाराष्ट्र के गांव रालेगण सिद्धि को एक आदर्श गांव में परिवर्तित कर दिया। यूपीए-2 के कार्यकाल में जब भ्रष्टाचार शिखर पर था, तो 5 अप्रैल, 2011 को उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया, तो सारा देश उनके पीछे हो लिया। टीवी की लाइव कवरेज और भारी जन समर्थन ने आंदोलन को मजबूती दी। अंततः सरकार को झुकना पड़ा और सरकार ने लोकपाल बिल लाने की बात मान ली। लेकिन अंततः राजनीतिक धूर्तता की जीत हुई और सरकार ने संसद में एकेडमी लोकपाल बिल पेश किया, जिसे आंदोलनकारियों ने जोकपाल कह कर तुरंत अस्वीकार कर दिया। उसके बाद उस आंदोलन का वैसा प्रभाव कभी नहीं बन पाया। वही अन्ना हजारे, वही नारा, वही उद्देश्य, लेकिन सिकुड़ता जनसमर्थन टीआरपी के भूखे टीवी चैनलों पर इतना असर नहीं डाल सका कि वे दोबारा इस आंदोलन की लाइव कवरेज का लालच करें। कभी उन्होंने ममता बनर्जी के साथ आंदोलन शुरू किया और फिर जन समर्थन के अभाव में हाथ वापस खींच लिया।

गत माह उन्होंने एक बार फिर आमरण अनशन के गांधी जी के हथियार को आजमाया, लेकिन जनता साथ नहीं जुड़ी क्योंकि लोग जानते हैं कि शांतिपूर्ण आंदोलन करने से, मोमबत्तियां जलाने से, ज्ञापन देने से सरकार पर कोई असर नहीं होता। हां, भारी तोड़-फोड़ हो जाए, आगजनी हो जाए, कुछ लोग हिंसा का शिकार हो जाएं, दंगों के कारण चल-अचल संपत्ति की हानि हो तो सरकार सुनने की मुद्रा में आती है। सरकार सारी शक्तियों का केंद्रीयकरण चाहती है, और सरकार यह भी चाहती है कि उसके फैसलों ही नहीं, उसके अनैतिक कामों पर भी कोई उंगली न उठाए। मोदी सरकार ने हालिया वित्त विधेयक में चुपचाप अपनी सुविधा के लिए ऐसे बहुत से प्रावधान पास करवा लिए, ताकि उसके पिछले पापों पर पर्दा पड़ा रहे। मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप लागू है। सच और झूठ के चतुराईपूर्ण मिश्रण से बने चुटकुले सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। सत्तापक्ष अपनी इमेज पर खुद ही फिदा है। हमारे देश में जनतंत्र की हालत यह है कि शासन-प्रशासन में जनता की भागीदारी कहीं भी नहीं है। किसी सरकारी दफ्तर में कोई काम पड़ जाए, तो चक्कर लगने शुरू हो जाते हैं, काम कब होगा इसकी तो छोडि़ये, होगा भी या नहीं, इसकी ही गारंटी नहीं है। देश में जनतंत्र सिर्फ 5 साल बाद आता है, जब लोग सत्तापक्ष को सत्ता से बाहर करके अपना गुस्सा निकालते हैं। दुर्भाग्य यह है कि दल बदल देने से स्थिति नहीं बदल जाती। हम सांपनाथ को हटा देते हैं और किसी नागनाथ को सत्ता सौंप देते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में ऐसे ‘बंद’ और आंदोलन आम हैं, जिनमें तोड़-फोड़ और हिंसा होती है।

वोट बैंक के लालच में सरकार उन पर कोई कार्रवाई नहीं करती। पहले समाज का एक वर्ग आंदोलन करता है, तोड़-फोड़ करता है, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है और फिर कोई दूसरा वर्ग उसके विरोध में वैसा ही सब कुछ दोहरा देता है। अंधी-बहरी नपुंसक सरकार चुपचाप बैठी रहती है। जाट आंदोलन हो, करणी सेना का उपद्रव हो, किसी बाबा की गिरफ्तारी का मामला हो, पटेल आंदोलन हो, दलित आंदोलन हो, हर बार सरकार यूं बेहोश हो जाती है कि जलते रोम में नीरो की बांसुरी की कहावत की याद आ जाती है। सरकार की चुप्पी तोड़ने का दूसरा तरीका है कि कोई राजनीतिक दल बनाया जाए, सत्ताधीशों को चुनौती दी जाए और खुद सत्ता में आया जाए। जब अन्ना हजारे का आंदोलन दिल्ली में पहली बार चला, तो जनसामान्य में किसी को मालूम नहीं था कि आंदोलन कि रूपरेखा के सूत्रधार अन्ना हजारे नहीं, बल्कि अरविंद केजरीवाल हैं। तब सब समझते थे कि अन्य लोगों की तरह केजरीवाल भी अन्ना हजारे के एक प्रमुख समर्थक मात्र हैं। केजरीवाल को जल्दी ही समझ आ गया कि आंदोलनों से सरकार को थोड़ा-बहुत हिलाया तो जा सकता है, पर कोई बड़ी उथल-पुथल संभव नहीं है। यही कारण है कि आंदोलन के अपने बहुत से साथियों के विरोध के बावजूद उन्हें आम आदमी पार्टी का गठन करना पड़ा।

खबरें आ रही हैं कि अब दलित प्रदर्शन के विरोध में करणी सेना फिर सक्रिय हो गई है। एक बार फिर तोड़-फोड़ होगी, जान-माल का नुकसान होगा और सरकार तमाशा देखने के साथ-साथ अनाप-शनाप बयान देकर लोगों को संतुष्ट करने का असफल प्रयास करेगी। इस सारे घालमेल का कोई इलाज है क्या? मुझे याद आता है कि 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी जेके त्रिपाठी ने तमिलनाडु के शहर त्रिची में एक चमत्कार कर दिखाया था। त्रिची में एक-तिहाई हिंदू, एक-तिहाई मुस्लिम और एक-तिहाई ईसाइयों की आबादी के कारण स्थिति सदैव विस्फोटक रहती थी। धार्मिक उन्माद चरम पर होता था और प्रशासन बेबस था। ऐसे में एक पुलिस अधिकारी ने अपनी सूझबूझ से पूरे समाज के बीच तालमेल बैठाया और शहर में अभूतपूर्व शांति स्थापित की। उन्होंने कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की, ज्यादा पुलिस बल की मांग नहीं की, केवल धैर्य और सूझबूझ से एक ऐसी समस्या का हल ढूंढ निकाला, जिसे दूर करना असंभव माना जा रहा था। सभी समुदायों के नेताओं में संवाद और आपसी समझ पैदा करके उन्होंने यह चमत्कार कर दिखाया। हम जानते हैं कि सरकारी पद असीमित नहीं हैं, हर किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, ऐसे में आरक्षण किसी समस्या का हल नहीं है। हमारी सरकारें निकम्मी हैं, समस्या का समाधान अब समाज को ही करना होगा।

जब समय कठिन होता है तो उत्तेजना की नहीं, बल्कि धैर्य और सम्मति की आवश्यकता होती है। हमें मिलकर ऐसा कुछ करना होगा कि युवाओं को रोजगार की कमी न रहे। उद्यमियों और व्यावसायिक संगठनों के सहयोग से यह संभव है। सीआईआई, फिक्की, चैंबर आफ कामर्स, टाई, मैनेजमेंट एसोसिएशन्स आदि मिलकर इस काम को अंजाम दे सकते हैं। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, तो युवा समाज शरारत के बजाय काम में व्यस्त होगा। उद्यमियों का रुझान टैक कंपनियों की ओर है। निवेशक उसी कंपनी में निवेश करना चाहते हैं, जिसके स्केल-अप होने की संभावना हो। इस नजरिए में कुछ सुधार की आवश्यकता है। सीएसआर, यानी, कारपोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी के तहत, यदि विभिन्न व्यावसायिक संगठन और उद्यमी बेराजगार युवाओं को रोजगार के काबिल बनाने की दिशा में काम करेंगे, तो बहुत से नौजवानों को रोजगार मिलेगा। दंगों की समस्याओं के हल का पहला कदम आलोचना या उत्तेजना नहीं बल्कि रोजगार है। हमें याद रखना चाहिए कि दंगों से उद्योग, समाज और देश, सभी का नुकसान होता है। बेरोजगारी, खाली समय, भविष्य की अनिश्चितता का डर युवकों को गलत राह पर ले जाता है। रोजगार सृजन के प्रयास सफल होंगे, तो न केवल अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि समाज में शांति भी कायम हो सकेगी।

ईमेलःindiatotal.features@gmail. com


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