हादसों से त्रस्त हिमाचल को दिलवाओ छुटकारा

By: Apr 26th, 2018 12:05 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालयन नीति अभियान

अधिकांश बाइकर बिना हेलमेट ही चलते हैं या हेलमेट को बाजू से लटका कर रखते हैं और पुलिस नाके के पास दिखाने भर के लिए पहन लेते हैं। हमें समझना चाहिए कि हेलमेट पहन कर पुलिस पर कोई एहसान नहीं किया जा रहा है। प्रशासनिक सख्ती के साथ सामाजिक जागरूकता का होना जरूरी है…

हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी सडकें वाहन चालकों के लिए हर समय कठिन परीक्षा से गुजरने के समान हैं। हर पहाड़ी प्रदेश की कमोबेश यही स्थिति होती है। ऐसे में यदि हर दिन का अखबार भयानक दुर्घटनाओं का समाचार ले कर आए, तो यह जाहिर होता है कि पहाड़ी सड़कों की विकटता का ध्यान रख कर जरूरी सावधानियों की अनदेखी की जा रही है। नूरपुर स्कूल बस हादसा इस असावधानी का ताजा उदाहरण है। यह हादसा कभी न भूलने वाले ऐसे जख्म दे गया है कि प्रभावित परिवारों को सांत्वना देने के लिए शब्द भी छोटे पड़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में हर साल औसत 3000 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें बहुमूल्य 1000 जानें हर वर्ष असमय काल का ग्रास बन रही हैं। 70 लाख की आबादी पर यह आंकड़ा काफी डराने वाला है। ऐसे समय में कुछ देर के लिए हम जागने का प्रयास करते हैं और फिर सो जाते हैं। अब तो स्थिति यह आ गई है कि सड़क किनारे खड़े या सड़क पार कर रहे लोग भी सुरक्षित नहीं हैं।

सनौरा के पास सड़क के किनारे खड़े तीन लोगों को स्कूल बस कुचल गई, जिनमें से रैत का एक अभागा युवक काल का ग्रास बन गया और दो उपचाराधीन हैं। चालक नशे में धुत्त बताया गया है। नशे में ड्राइविंग, तेज रफ्तार, नौसिखिए चालक गाड़ी चलाते समय मोबाइल या ईयरफोन का प्रयोग, ओवरलोडिंग आदि दुर्घटनाओं के मुख्य कारण पाए जाते हैं। ये सभी कारण मानवीय लापरवाही का नतीजा हैं। हां वाहन में खराबी के कारण होने वाली दुर्घटनाएं अलग श्रेणी में आती हैं, किंतु ऐसे मामले बहुत कम होते हैं। मानवीय लापरवाही से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जहां एक ओर प्रशासनिक चौकसी और सख्ती की जरूरत होती है, वहीं  दूसरी ओर सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है। सभी जानते हैं कि दोपहिया वाहन दुर्घटनाओं में 80 प्रतिशत मृत्यु का कारण सिर में लगने वाली चोट होता है। इसलिए हेलमेट पहनना जरूरी बनाया गया है, किंतु अधिकांश बाइकर बिना हेलमेट ही चलते हैं या फिर हेलमेट को बाजू से लटका कर रखते हैं और पुलिस नाके के पास दिखाने भर के लिए पहन लेते हैं। हमें समझना चाहिए कि हेलमेट पहन कर पुलिस पर कोई एहसान नहीं किया जा रहा, बल्कि अपनी जान की सुरक्षा की गारंटी ली जा रही है।

इतनी सी बात हम समझ कर भी समझना नहीं चाहते। न ही परिवार के बड़े लोग भी बच्चों के मन में ऐसी सोच विकसित करने के लिए तर्कसम्मत चिंतन को प्रोत्साहन देने का कार्य करते हैं। जबकि आज अधिकांश लोग शिक्षित हैं और उनके लिए यह कार्य करना आसान ही है, किंतु किसी के पास समय ही नहीं है। न ही हम ऐसे मामलों में कुछ सामूहिक पहल करने की स्थिति में रहे हैं, क्योंकि सोए को जगाया जा सकता है, किंतु जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कोई भी जगा नहीं सकता। बहुत से कम उम्र बच्चे वाहन चलाते दिख जाते हैं, जिनके पास लाइसेंस तक नहीं होता। प्रशासनिक सख्ती के साथ सामाजिक जागरूकता का होना निहायत जरूरी है। नशे में वाहन चलाने और तेज गति पर नियंत्रण के लिए हर नाके पर जांच उपकरण उपलब्ध करवाए जाने चाहिए। नाकों के अलावा मोबाइल पैट्रोलिंग की व्यवस्था का विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि छोटी सड़कों पर भी लापरवाही रोकी जा सके। ट्रैफिक ड्यूटी स्टाफ  की पदोन्नति को उनके इलाके में दुर्घटनाओं के नियंत्रण प्रतिशत से जोड़ा जाना चाहिए और अच्छा काम करने वालों को पुरस्कृत करने का भी प्रावधान होना चाहिए। नौसिखिए ड्राइवर वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग, ओवर लोडिंग और इयरफोन का प्रयोग जैसी लापरवाहियों को प्रशासनिक सख्ती से रोका जा सकता है। तब आदमी गंभीरता से सोचता है वरना ‘सब चलता है’ वाली सोच से हिंदोस्तानी ग्रस्त तो हैं ही। लाइसेंस जारी करने से पहले चालक की कठिन परीक्षा ली जानी चाहिए। ड्राइविंग लाइसेंस लोगों को सुरक्षित लाने-ले-जाने का मामला है। ड्राइवरों की समय-समय पर चिकित्सकीय जांच होनी चाहिए और सामयिक परीक्षा भी होनी चाहिए। छोटी गाडि़यों के ड्राइविंग लाइसेंस धारकों को बड़े वाहन चलाने पर नियंत्रण होना चाहिए। सड़कों के गढ्ढे भरने और अंधे मोड़ सुधारने के काम की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। कई बार तो सड़कों के टूटे डंगे पर साधारण चेतावनी बोर्ड लगाने या सफेद निशान लगाने तक में भी लापरवाही बरती जाती है। इस पर तो कोई खर्च नहीं होता। केवल चौकसी की जरूरत है। ब्लैकस्पाट चिन्हित करना, उनमें सुधार और चेतावनी एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए। इसमें ढील अक्षम्य है।

पहाड़ी राज्यों में सड़क निर्माण के मानक भी सुरक्षा और पर्यावरण सुरक्षा के दृष्टिगत बदले जाने चाहिए और इसके लिए जरूरी इंजीनियरिंग और डिजाइन में सुधार लाए जाने चाहिए। कुछ ऐसे क्षेत्र जहां सड़क निर्माण खतरनाक और कठिन हो, वहां  रोप-वे के विकल्प पर भी विचार होना चाहिए। देश का यह दुर्भाग्य बन गया है कि कानून तोड़ना गौरव की बात बनती जा रही है। प्रजातंत्र में कानून जनहित में बनाए जाते हैं, जिनका पालन करके हम अपना और अपने समाज का हित कर रहे होते हैं। यदि कोई कानून जनहित में नहीं है, तो उसे बदलवाने के शांतिपूर्ण संघर्ष के तरीके भी हैं। और ऐसे बदलाव प्रजातंत्र में समय-समय पर आते भी रहते हैं। इसलिए कानून का पालन हमारी आदत होनी चाहिए और तोड़ना अपवाद होना चाहिए. तभी हिमाचल को इतनी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से बचाया जा सकता है।

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