हिमाचली छलांग का दिवस

By: Apr 14th, 2018 12:05 am

स्थापना से संदर्भों तक बिछी हिमाचल की प्रगति तस्वीर ने देश के दर्पण को अचंभित किया, तो दूसरी ओर अधिकारों की जंग में मसलों की फेहरिस्त का घायल दर्द विद्यमान है। हिमाचल दिवस अपने हिस्से की राजनीति चुनता है, तो इस बार केंद्रीय रिश्तों की बात पर भाजपा सरकार कुछ साहसिक संदर्भ चुन सकती है। इस दौरान एक विस्तृत तुलनात्मक इतिहास हिमाचली सुशासन की सहभागिता बढ़ा देता है। यहां आंकड़े अगर सही हैं, तो हिमाचली छलांगों का यह दिवस हमेशा निगरानी करता है कि सरकार अपने दायित्व का निर्वहन किस तरह करती है। शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, पेयजल तथा विद्युत आपूर्ति के कीर्तिमान अगर स्थापित हुए तो यह प्रदेश अपने कई मुख्यमंत्रियों की विरासत में खुशहाल दिखाई देता है और यही उम्मीदें जयराम सरकार के लिए दिवस के दीदार तक रहेंगी। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचली अस्मिता के कारण यह छोटा सा प्रदेश बड़े-बड़े राज्यों से मुकाबिल रहा और इसीलिए जब राष्ट्रीय पैमाने दिखाई देते हैं, तो राज्य की श्रेष्ठता को कबूल किया जाता है। नोबल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन ने प्राथमिक शिक्षा के भारतीय परिदृश्य में हिमाचल का जिक्र जिस खूबसूरती से किया है, उसके व्यावहारिक पक्ष में यह प्रदेश अपनी मंजिलें निरंतर दर्ज करता है। सामाजिक सुरक्षा के हर पहलू में सरकारों ने अपनी गणना की, तो आज नतीजे हर परिवार की चौखट तक पहुंचे हैं। हिमाचल दिवस की उड़ानों का एक हिसाब-किताब सरकारी दस्तावेज हैं, लेकिन दूसरी ओर सामाजिक उत्थान की कतार में अग्रसर एक महत्त्वाकांक्षी हिमाचल भी है। यह व्यक्तिगत उपलब्धियों से भरपूर एक ऐसा हिमाचल है जो प्रतिस्पर्धा के आलम में अपनी रैंकिंग बढ़ा रहा है। देश के लिए कुर्बानियों का इतिहास लिखने वालों ने भारत के हर शिखर पर खुद को बुलंद किया है, तो हिमाचली युवाओं की ऊर्जा का आकलन असीमित है। खासतौर पर हिमाचली बेटियों ने अपनी चादर को प्रतिष्ठित किया है, तो देश के सामने समाज की ताकत का इजहार भी किया है, लेकिन कहीं जब मां का आंचल सिसकता है तो समाज के भेडि़ए अपमानित कर रहे होते हैं। कोटखाई प्रकरण ने हमें जो जलालत दी, उसका अंत नहीं हुआ है। अपराध की शाखाओं में टूटती हिमाचली परंपराएं चीखती हैं, तो माफिया गिरोहों के बीच पलती राजनीति भयावह हो जाती है। बेशक हिमाचल ने तरक्की की और समाज अग्रणी हो गया, मगर सियासी जागरूकता से लबालब माहौल ने हमारी अंतरात्मा छीन ली। यह प्रदेश अब सियासी समारोहों की रौनक में वजूद की रखवाली करना चाहता है, इसलिए कहीं न कहीं हर पत्तल में छेद है और स्वार्थी दंभ में हम भूलते जा रहे हैं कि जमीन की अस्मिता केवल संस्कृति व इतिहास के गौरव से अक्षुण्ण रहती है। सीबीएसई पेपर लीक मामले की पृष्ठभूमि अगर ऊना में तैयार होती है, तो यह सामाजिक अस्थिरता की निशानी है। पतन की ऐसी राहों पर हिमाचल को बुलंद नहीं किया जा सकता है, अतः हिमाचल दिवस के सरकारी समारोहों के बीच राज्य के दायित्व पर विचार करना होगा। हमारी छलांगें हमें काफी आगे ले आई हैं, लेकिन उत्कंठा के बीच सामाजिक जिम्मेदारी न बढ़ी तो कहीं अंजाम के साथ-साथ खुद के खोने का खतरा न बढ़ जाए। बेशक हम साक्षरता दर में अव्वल हो गए, लेकिन शिक्षा के मजार पर भविष्य का अंधेरा स्पष्ट है। तरक्की के पलक पर नित नए कीर्तिमान, लेकिन हिमाचली जीवन का संयोग व सारांश, कहीं न कहीं भटक रहा है। राजनीतिक फरियाद से हट कर हिमाचली अपनी पड़ताल करें, तो मालूम होगा कि अभी हम अपने जीवन के क्षेत्रफल में केवल क्षेत्रवाद में फंसे हैं। सियासत ने हमें टुकड़े दे-देकर टुकड़ों में बांट दिया, जबकि हिमाचली एहसास के लिए शिक्षा-चिकित्सा में गुणवत्ता, अभिव्यक्ति में एक हिमाचली भाषा और सत्ता के चयन में सुशासन की दरकार निरंतर रहेगी।

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