हिमाचली पुरुषार्थ : भारत शिक्षा रत्न से गौरवान्वित दिवेंद्र गुप्ता

By: Apr 18th, 2018 12:07 am

उन्होंने फल और वनस्पति में कीट संबंधित कई समस्याओं के समाधान सुझाए हैं और अपने विभाग में फल मक्खियों की जनसंख्या की गतिशीलता और प्रबंधन का अध्ययन करने में भी बेहतरीन कार्य किया है। उन्होंने फल मक्खियों की प्रबंधन विधियों को भी तैयार किया है…

डा. दिवेंद्र गुप्ता का जन्म 23 अक्तूबर 1962 को शिमला के सुन्नी गांव में हुआ। 1989 में डा. वाईएस परमार बागबानी और वानिकी यूनिवर्सिटी नौणी (सोलन) से  एंटोमोलॉजी में डाक्टरेट की। 1989 में अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा समाशोधन के बाद वह पांच महीनों की संक्षिप्त अवधि के लिए आईसीएआर में वैज्ञानिक के रूप में शामिल हो गए। बाद में, अगस्त 1990 में उन्होंने जाच्छ (नूरपुर) में विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्रों में सहायक वैज्ञानिक के रूप में काम किया, जहां उन्होंने लगभग छह साल तक निचले क्षेत्र की कीट समस्याओं पर काम किया और क्षेत्र के प्रमुख कीटों की पहचान की।

उन्होंने कुछ कीट समस्याओं के लिए भी समाधान प्रदान किया। इसके बाद उन्हें 1996 में एंटोमोलॉजी विभाग नौणी में मुख्य परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने अब तक 11 स्नातकोत्तर छात्रों को निर्देशित किया है। उनके अनुसंधान का प्रमुख जोर कीटनाशक यानी कीट प्रबंधन के व्यावहारिक पहलू पर है और फलों और सब्जी फसलों की कीटनाशक समस्याओं का समाधान करता है। उनका मुख्य काम फलों-मक्खियों पर होता है जो फलों के प्रमुख कीट (आडू, आम, अमरूद, सरस आदि) और सब्जी (टमाटर और कर्कबेट्स) क्रॉप्स हैं और किसानों को भारी नुकसान पहुंचाता है। डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में कार्यरत कीट वैज्ञानिक डा. दिवेंद्र गुप्ता को प्रतिष्ठित भारत शिक्षा रत्न पुरस्कार से नवाजा गया है। यह पुरस्कार उन्हें कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए दिया गया है। ग्लोबल सोसायटी फॉर हैल्थ एंड एजुकेशनल ग्रोथ ने दिल्ली के विठ्ठलभाई पटेल हाउस में आयोजित समारोह में डा. गुप्ता को यह पुरस्कार दिया।

वर्तमान में डा. गुप्ता नौणी विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग में प्रमुख वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहे हैं। अखिल भारतीय कृषि सेवा में कुछ समय लगाने के बाद डा. गुप्ता वर्ष 1990 में विश्वविद्यालय से जुड़े और जाच्छ में क्षेत्रीय स्टेशन में कार्य किया। विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में स्थानांतरण पर डा. गुप्ता ने अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों के अलावा शैक्षिक कार्यों में भी भाग लिया। डा. गुप्ता का मुख्य अनुसंधान कार्य फल-मक्खियों पर है, जो बागबानी फसलों का एक महत्त्वपूर्ण कीट है और हर साल फल और सब्जियों को बहुत नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने फल और वनस्पति में कीट संबंधित कई समस्याओं के समाधान सुझाए हैं और अपने विभाग में फल मक्खियों की जनसंख्या की गतिशीलता और प्रबंधन का अध्ययन करने में भी बेहतरीन कार्य किया है। उन्होंने फल मक्खियों की प्रबंधन विधियों को भी तैयार किया है। डा. गुप्ता ने एक रसायन का भी मूल्यांकन किया है, जो फल मक्खी के शरीर के अंदर अंडे को खत्म करने में मदद करता है। वह इस पद्धति पर और अध्ययन कर रहे हैं।कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में शोध पत्रों के अलावा डा. गुप्ता के पांच अध्याय, मैनुअल और कई बुलेटिन भी प्रकाशित हुए हैं। इस अवसर पर नौणी विवि के कुलपति डा. एचसी शर्मा और अन्य संकाय ने डा. गुप्ता को शुभकामनाएं दीं।

  • माहिनी सूद, नौणी

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जब रू-ब-रू हुए…   :किसान-बागबान नई वैज्ञानिक तकनीक को अपनाएं…

वैज्ञानिक संदर्भों के हिमाचल में अब तक के क्रांतिकारी प्रयास?

हिमाचल में बागबानी के क्षेत्र में काफी क्रांतिकारी प्रयास हो रहे हैं। अब किसान व बागबान वैज्ञानिक तरीके से नई तकनीकों को अपनाकर अपने उत्पादन को बढ़ा रहे हैं।

क्या हिमाचल किसान – बागबान वैज्ञानिक अनुसंधान का पूरा फायदा उठा पाया। कहां कमी रह गई ?

जो आज तक के प्रसार माध्यम थे, उनसे तकनीकी किसान एवं बागबान भाई एवं बहनों तक पहुंचाई गई है। बागबान अनुसंधान का फायदा उठा पाए हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अभी जागरूकता की आवश्यकता है। अब इस दिशा में नई प्रसार तकनीकों का अधिक प्रयोग होना चाहिए।

क्या आप संतुष्ट हैं कि अनुसंधान प्रयोगशाला खेत-बागीचे तक पहुंच गई या इस दिशा में होना क्या चाहिए?

प्रयोगशाला से बाहर निकलने से ही किसान-बागबान की समस्याओं का समाधान संभव है। किसान तथा बागबान से समय-समय पर प्रतिक्रिया मिलनी चाहिए, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके तथा नई समस्याओं पर अनुसंधान हो सके।

किसान की सबसे बड़ी चिंता का वैज्ञानिक हल ?

एक ही फसल को बार-बार लगाना हानिकारक है। फसलों में विविधता की आवश्यकता है। यही किसान व बागबान की सबसे बड़ी चिंता का विषय है।

बागबान की सबसे बड़ी चिंता का वैज्ञानिक हल?

एकीकृत नाशीकीट प्रबंधन एक कारगर विधि है। इस विधि के द्वारा बागबान अपनी पैदावार को खराब होने से बचा सकता है।

हिमाचली परिदृश्य जमीन का सदुपयोग अगर करना है, तो नीतिगत अंतर कहां देखते हैं?

बागबान एवं किसानों की प्रतिक्रिया पर अनुसंधान एवं प्रसार कार्य हों। इस तरह किसान-बागबान का तकनीक के प्रति ज्ञान बढ़ेगा और अपनी कमयिों को जानकर वह उन्हें दूर करेगा। ऐसा करने से हिमाचली   जमीन का भी सदुपयोग होगा।

फल कीटों  से मुक्ति का सबसे आसान और कारगर तरीका?

एकीकृत नाशीकीट प्रबंधन द्वारा भी कीटनाशकों का दुष्प्रभाव कम किया जा सकता है।  फल कीटों से मुक्ति का बस यही सबसे आसान तरीका है।

क्या सेब राज्य होने की सजा फलोत्पाद को नहीं मिल रही। सेब के अलावा हिमाचली आर्थिकी के लिए कौन से फलों का उत्पादन लाभकारी रहेगा?

सेब में भी विभिन्न किस्मों का चयन बागबान भाई अपने बागीचों में कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मध्यवर्ती क्षेत्रों में गुठलीदार फल (खुमानी, प्लम इत्यादि) की बागबानी भी काफी लाभकारी है।

कृषि -बागबानी क्षेत्र में हिमाचली अनुसंधान में नई ताजगी लाने के लिए, सरकारी स्तर पर क्या बदलाव तथा प्रथामिकता होनी चाहिए?

हिमाचल प्रदेश पूरे देश में तथा खासकर पर्वतीय प्रदेशों में कृषि- बागबानी क्षेत्र में अग्रणी राज्य बने, इसके लिए सरकारी स्तर पर प्रयास होने चाहिए। सरकार को किसानों व बागबानों को जागरूक करने के लिए विभिन्न माध्यमों का प्रयोग करना चाहिए। ताकि किसान-बागबान आधुनिक तकनीकी से वाकिफ हों और वे इस क्षेत्र में अधिक लाभ अर्जित कर सकें।

किसी बागबान से कभी प्रभावित हुए या जहां साधारण व्यक्ति से वैज्ञानिक सोच प्रभावित हुई?

बहुत से बागबानों एवं किसानों का अनुभव, वैज्ञानिकों की सोच में परिवर्तन लाता है तथा अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त होता है।

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