हिमाचली पुरुषार्थ : माईना से महाशक्ति अमरीका तक सुनील की धाक

By: Apr 25th, 2018 12:08 am

सिरमौर जिला के रेणुका विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव माईना के रहने वाले रामानंद शर्मा व प्रेमलता शर्मा ने शायद ही सोचा होगा कि उनका बेटा जो माईना की पहाडि़यों पर नन्हे पांव को रखकर स्कूल तक पैदल पहुंचता है, वह किसी दिन विश्व के सबसे बड़ी महाशक्ति अमरीका में दौड़ को जीतने का लक्ष्य रखेगा…

नाहन में चौबीस घंटे में पहले 202 किलोमीटर का एशियाई रिकार्ड तोड़ने व उसके पश्चात 214.13 किलोमीटर का नया रिकार्ड बनाने वाले सुनील शर्मा अब प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चित चेहरा बन चुके हैं। तीन मरीजों की चैरिटी के लिए सुनील शर्मा ने नया इतिहास कायम कर दिया है। सिरमौर जिला के रेणुका विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव माईना के रहने वाले रामानंद शर्मा व प्रेमलता शर्मा ने शायद ही सोचा होगा कि उनका बेटा जो माईना की पहाडि़यों पर नन्हे पांव को रखकर स्कूल तक पैदल पहुंचता है, वह किसी दिन विश्व के सबसे बड़ी महाशक्ति अमरीका में दौड़ को जीतने का लक्ष्य रखेगा। अल्ट्रा मैराथन धावक सुनील शर्मा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए हैं। जिला सिरमौर ही नहीं, अपितु हिमाचल प्रदेश व अब एशियाई रिकार्ड तोड़ने के बाद भारत वर्ष के लिए गौरव बन चुके सुनील शर्मा का जन्म एक साधारण परिवार में माईना में हुआ। छह भाई-बहनों में सुनील शर्मा चौथे नंबर पर हैं। सुनील शर्मा समेत सुनील के तीन भाई व दो बहनें हैं। सुनील की आरंभिक पढ़ाई घर के समीप स्थित उच्च विद्यालय रजाना में हुई।

उसके पश्चात जमा दो की पढ़ाई ददाहू से पूरी करने के बाद कालेज की पढ़ाई के लिए नाहन की ओर चल पड़े। कालेज की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत सुनील शर्मा अपनी व अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कुछ रोजगार की तलाश कर रहे थे तो वह चंडीगढ़ पहुंचे। सुनील की दौड़ वर्ष 1999 से उस वक्त शुरू हुई, जब परिवार की आर्थिक हालत कमजोर होने की वजह से सुनील शर्मा रोजगार की तलाश में चंडीगढ़ की ओर रवाना हुए। चंडीगढ़ में रहते हुए सुनील का जज्बा समाज सेवा की ओर ऐसा जागृत हुआ कि सुनील ने रक्तदान के लिए चंडीगढ़ जैसे शहर में पंजाब यूनिवर्सिटी व चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों के सैकड़ों छात्रों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया। स्वयं सुनील शर्मा 19 बार रक्तदान कर चुके हैं। सुनील शर्मा ने दिव्य हिमाचल से विशेष बातचीत में बताया कि ग्राउंड पर दौड़ने का उनका उद्देश्य केवल लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक करना था। सुनील शर्मा ने बताया कि वह पीजीआई चंडीगढ़ में रक्त के लिए भटक रहे लोगों से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने चंडीगढ़ में रक्तदान करने के लिए एक मुहिम छेड़ दी तथा उनका यह कारवां आगे बढ़ता गया तथा उन्होंने चंडीगढ़ के युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित किया। सुनील शर्मा ने बताया कि मैराथन दौड़ का उनका कारवां वर्ष 2011 में शुरू हुआ। वह चंडीगढ़ के युवाआें को कहते थे कि प्रतिदिन समाज सेवा के लिए दौड़ के माध्यम से लोगों को रक्तदान के लिए जागरूक करें। सुनील शर्मा की मैराथन दौड़ की शुरुआत 17 फरवरी, 2011 को हुई जब उन्होंने दिल्ली में 42 किलोमीटर की मैराथन दौड़ में हिस्सा लिया। सुनील शर्मा यूं तो अब तक दर्जनों हॉफ व फुल मैराथन दौड़ में हिस्सा ले चुके हैं, परंतु एक दर्जन के करीब सुनील की कुछ ऐसी मैराथन हैं, जो अपने आप में ऐतिहासिक बन चुकी हैं। सुनील शर्मा अब बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, पानी और जंगल बचाओ के लिए एक दौड़ भारतीय सैनिकों के नाम बंगलूर स्टेडियम दौड़ के अलावा सबसे कठिन माने जाने वाले खारदुंगला लद्दाख जैसे क्षेत्रों में दौड़ लगाकर एक विश्व कीर्तिमान की ओर अग्रसर हैं।

सुनील शर्मा के ऐतिहासिक मैराथन

 सुनील शर्मा ने सर्वप्रथम लंबी मैराथन में पानी व जंगल बचाओ के नारे पर चंडीगढ़ स्थित सुकना लेक से श्रीरेणुकाजी झील तक 127 किलोमीटर की दौड़ 13 घंटे 55 मिनट में पूरी की।

 सुनील शर्मा ने दूसरी लंबी दूरी की दौड़ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान पर चंडीगढ़ से दिल्ली तक 250 किलोमीटर की 38 घंटे 25 मिनट में पूरी की।

 तीसरी मैराथन सुनील शर्मा ने दिल्ली से मुंबई तक तय की, जिसकी दूरी 1455 किलोमीटर थी। यह दूरी सुनील शर्मा ने 19 दिनों में पूरी की।

 दि ग्रेट सिरमौर रन-1 में सिरमौर शर्मा ने किडनी के मरीजों के लिए नाहन, रेणुकाजी, सतौन, पांवटा साहिब से वापिस नाहन तक वर्ष 2017 में करीब 150 किलोमीटर की तय की।

 सुनील शर्मा की पांचवीं लंबी दौड़ की मैराथन कारगिल में हुई, जिसमें सुनील ने एक दौड़ भारतीय सेना के नाम से 160 किलोमीटर की दूरी पूरी कर भारतीय सैनिकों को सेल्युट किया।

 सुनील शर्मा के पांव यहीं नहीं रुके तथा उन्होंने बंगलूर स्टेडियम रन में चौबीस घंटे लगातार दौड़ते हुए राष्ट्रीय रिकार्ड बनाकर 192 किलोमीटर की दूरी तय की। यह दौड़ 29 जुलाई, 2017 को थी।

 सुनील शर्मा ने देश के सबसे कठिन क्षेत्र खारदुंगला पास से लद्दाख तक 72 किलोमीटर की दूरी 10 घंटे 45 मिनट में पूरी की।

 फरीदाबाद भट्टी लेक में सुनील शर्मा करीब 20 किलोमीटर दौड़कर प्रथम रहे थे।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दौड़े सुनील के कदम

सिरमौर के छोटे से गांव माईना से आगे बढ़े सुनील के कदम अब विदेशी भूमि पर भी पड़ चुके हैं। सुनील शर्मा ने नेपाल में 40 देशों के धावकों के साथ दौड़ लगाकर जहां भारत का नाम रोशन किया, वहीं हाल ही में ब्राजील में भी सुनील ने विश्व के करीब 100 से अधिक धावकों के बीच मैराथन में हिस्सा लिया।

अगला लक्ष्य

सुनील शर्मा का अगला लक्ष्य 23 जुलाई, 2018 को अमरीका में विश्व की सबसे कठिन माने जाने वाली डैथ वैली रन में हिस्सा लेना है। इस दौड़ के लिए विश्व से 100 धावकों का चयन किया गया है।

सुनील की मदद को बढ़े हाथ

सुनील शर्मा को इन दौड़ों में हिस्सा लेने के लिए आर्थिक मदद की भी जरूरत थी, जिसके लिए सुनील को दो सिरमौरी बेटे ही मदद के लिए आगे आए। देश के जाने माने शुगलू गु्रप व सिरमौरी सोलर के चेयरमैन तथा सिरमौर के बेटे एलडी शर्मा ने सुनील शर्मा को शुगलू गु्रप का ब्रांड एंबेसेडर बनाया है। इसके अलावा भारतीय सेना के मेजर जनरल व नाहन के बेटे अतुल कौशिक भी सुनील की आर्थिक मदद में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं।

दूसरों के लिए  दौड़े

 अल्ट्रा मैराथन धावक सुनील शर्मा के पिता रामानंद शर्मा व माता प्रेमलता शर्मा ने बताया कि आज उनके बेटे ने जो मरीजों की मदद के लिए दौड़ लगाई है उससे उनका सीना फख्र से चौड़ा हो गया है। सुनील के माता-पिता सुनील के समाजसेवा के जज्बे से बेहद खुश हैं।

-सूरत पुंडीर, नाहन

जब रू-ब-रू हुए…  हिमाचल में ग्रामीण स्तर पर खेल प्रतिभाओं को उभारने की जरूरत है…

दौड़ना आपके लिए बचपन की आदत का बड़ा लक्ष्य क्यों और कैसे बना?

गांव के लोग बचपन से अपने पालतू पशुओं के साथ दौड़ते हैं तथा यही दौड़ की आदत आज मेरे काम आ रही है। यही आदत मेरा लक्ष्य भी बन गई है।

वह कौन सी दौड़ थी, जब सुनील ने ठान लिया

कि यही कदम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों तक पहुंच सकते हैं?

जंगल बचाओ जल बचाओ विषय को लेकर सुकना लेक चंडीगढ़ से रेणुकाजी तक की पहली दौड़ एक चुनौती थी। यही दौड़ इस मुकाम तक ले आई।

दौड़ते वक्त आपकी शक्ति का स्रोत और साधना का अर्थ किस तरह आपको प्रोत्साहित करता है?

दौड़ते वक्त लोगों का आशीर्वाद व देश भक्ति के गीत मुझे लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि और जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य क्या है?

किडनी के मरीजों की जब गत वर्ष किडनी ट्रांसप्लांट हुई तो वही मेरी पहली उपलिब्ध थी। भारत वर्ष के लिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना तथा देश में अमन व शांति का पैगाम देना सबसे बड़ा लक्ष्य है।

अपने शरीर को किस तरह फिट रखते हैं। एक धावक को अपनी ऊर्जा एकत्रित करने के लिए किस तरह की अनिवार्यता रहती है?

प्रतिदिन मैं 20 से 21 घंटे की प्रैक्टिस करता हूं। शरीर में एनर्जी बनाए रखने के लिए फल व लिक्विड डाईट जरूरी है।

समाज सेवा या किसी अभियान से जुड़कर दौड़ना आपके लिए मिशन है या केवल उद्देश्य?

समाज सेवा के लिए दौड़ना ही मेरा मिशन व सबसे बड़ा उद्देश्य है।

हिमाचली आपसे सीखें, तो प्रदेश की खेल क्षमता में कैसी संभावना देखते हैं?

हिमाचल की प्रतिभा को निखारने के लिए छोटे-छोटे स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में खेलकूद प्रतियोगिताओं के आयोजन किए जाने चाहिए। हिमाचल में प्रतिभा की कमी नहीं है। प्रयास करना जरूरी है।

प्रदेश को अगर खेल राज्य बनना हो तो क्या करना होगा। आपके अनुसार यहां किन- किन खेलों को अपनाना होगा?

हिमाचल को खेल राज्य बनाने के लिए सरकार को ग्रामीण स्तर पर खेल प्रतिभाओं को उभारने का प्रयास करना होगा, तभी हिमाचल प्रदेश एक खेल राज्य बन सकता है। यहां सब खेलों को तरजीह मिलनी चाहिए।

हिमाचल और देश के प्रति आपके सपने?

भारत वर्ष का नेतृत्व ओलंपिक में करना ही मेरा देश व हिमाचल के प्रति एकमात्र सपना है।

अब तक की सबसे कठिन दौड़ या जब आपको खुद से लड़ना पड़ा?

मेरी अब तक की सबसे कठिन दौड़ सुकना लेक से रेणुकाजी झील तक की थी। इस दौड़ में मैदानी क्षेत्र व पहाड़ी क्षेत्र का समावेश था, जिसके चलते दौड़ने में कुछ कठिनाइयां जरूर आई। पहली दौड़ होने की वजह से पूरा अभ्यास भी नहीं था, परंतु लक्ष्य सामने था तो इसे पूरा करना आवश्यक था।

दौड़ने में आपका आनंद क्या है और ऐसा कौन सा ट्रैक है, जो आपको आकर्षित करता है?

हिमाचल की वादियों के बीच सड़कें ही उनका पसंदीदा ट्रैक है। इन सड़कों पर अकसर दौड़ने का दिल करता है।

दौड़ने में आप किस धावक से प्रेरित हैं। अपनी सांसों में हौसला भरने की तकनीक या विश्व भर की चुनौतियों से सीख लेने के लिए क्या करते हैं?

मैं ‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म को सैकड़ों बार

देख चुका हूं। मिल्खा सिंह व बड़े भाई एनएसजी कमांडो जोगेंद्र सिंह शर्मा मेरे प्रेरणा स्रोत धावक हैं। इन्हीं से मैं लक्ष्य प्राप्ति की चुनौतियों से लड़ने का तरीका सीख रहा हूं।

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