अंजनि का वानरी रूप

By: May 19th, 2018 12:05 am

एक बार देवराज इंद्र की सभा स्वर्ग में लगी हुई थी। इसमें दुर्वासा ऋषि भी थे। जिस समय सभा में विचार-विमर्श चल रहा था, उसी समय सभा के मध्य ही पुंजिकस्थली नामक इंद्रलोक की अप्सरा बार-बार इधर-उधर घूम रही थी। सभा के मध्य पुंजिकस्थली का यह आचरण ऋषि दुर्वासा को अच्छा न लगा। उन्होंने पुंजिकस्थली को टोक कर ऐसा करने से मना किया, लेकिन वह अनसुना कर वैसा ही करती रही, तो दुर्वासा ऋषि ने कहा, तुझे देव सभा की मर्यादा का ज्ञान नहीं। तू कैसी देव अप्सरा है, जो वानरियों की तरह बार-बार सभा में व्यवधान डाल रही है। जा, अपनी इस आदत के कारण तू वानरी हो जा। दुर्वासा ऋषि का श्राप सुन कर पुंजिकस्थली सन्न रह गई। अपने आचरण का यह परिणाम वह सोच भी नहीं सकती थी, पर अब क्या हो सकता था? उसने हाथ जोड़कर कहा, ऋषिवर! अपनी मूढ़ता के कारण यह भूल मैं अनजाने में करती रही और आपकी वर्जना पर भी ध्यान न दिया। कृपया बताइए, अब आपके इस श्राप से मेरा उद्धार कैसे होगा? अप्सरा की विनती सुन कर ऋषि दुर्वासा बोले, अपनी इस चंचलता के कारण अगले जन्म में तू वानर जाति के राजा विरज की कन्या के रूप में जन्म लेगी। तू देव सभा की अप्सरा है, अतः तेरे गर्भ से एक महान बलशाली, यशस्वी तथा प्रभु भक्त बालक का जन्म होगा। पुनर्जन्म में वानर राज विरज की कन्या के रूप में उसका जन्म हुआ। उसका नाम अंजनि रखा गया। विवाह योग्य होने पर इसका विवाह वानर राज केसरी से हुआ। अंजनि केसरी के साथ सुखपूर्वक प्रभास तीर्थ में रहने लगी। इस क्षेत्र में बहुत शांति थी। एक बार ऐसा हुआ कि वन में विचरने वाला शंखबल नामक जंगली हाथी प्रमत्त हो उठा तथा वन में उत्पात मचाने लगा। उसने कई आश्रमों को रौंद डाला। यज्ञ वेदियां नष्ट कर दीं। उसके भय से भागते हुए अनेक तपस्वी बालक आहत हो गए।  कई ऋषि भय के कारण आश्रम छोड़कर चले गए। केसरी को जब शंखबल नामक हाथी के इस उत्पात का पता लगा, तो वह आश्रम वासियों की रक्षा के लिए तत्काल वहां आए और शंखबल को बड़ी कुशलता से घेर कर उसके दोनों दांतों को पकड़ कर उखाड़ दिया। पीड़ा से चिंघाड़ता हुआ वह हाथी वहीं धराशायी हो गया और मर गया। आश्रम की रक्षा के लिए उनके अचानक पहुंचने तथा हाथी को मार कर आश्रम वासियों को निर्भय कर देने वाले केसरी का ऐसा बल देख कर ऋषि-मुनि बहुत प्रसन्न हुए और केसरी के पास आकर आशीर्वाद देते हुए कहा, वानर राज केसरी! जिस प्रकार तुमने आज हम सबकी तथा आश्रम की रक्षा की, इसी प्रकार भविष्य में तुम्हारा होने वाला पुत्र पवन जैसे वेग वाला होगा तथा रुद्र जैसा महान बलशाली होगा। तुम्हारे बल तेज के साथ-साथ उसमें पवन तथा रुद्र का तेज भी व्याप्त रहेगा। केसरी ने कहा, ऋषिवर! मैंने तो बिना किसी कामना के प्रमत्त हाथी को, जो किसी प्रकार वश में नहीं आ रहा था, मार कर आपकी इस यज्ञ भूमि को निर्भय किया है। आपका दिया यह स्वतःआशीर्वाद मुझे शिरोधार्य है। केसरी ऋषियों को प्रणाम कर चले गए। समय आने पर अंजनि के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ। उसमें अपने बाल्यकाल से ही ऋषियों द्वारा दिए आशीर्वाद का तेज झलकने लगा। आश्रमों में वह पवन वेग की तरह जहां-तहां पहुंच जाता। आश्रमों में विघ्न डालने वाले वन्य जीवों तथा दुष्ट व्यक्तियों को अपने अपार बल से खदेड़ देता। उसको खेलने से कोई रोकता तो वह उसको भी तंग करने लगता। बालक तो था ही। उसके बाल कौतुक से जब ऋषियों को असुविधा होने लगी तथा उनके पूजा-पाठ और यज्ञ में व्यवधान आने लगा तो उन्होंने उसके स्वभाव में शांति लाने के लिए आशीर्वाद जैसा श्राप दिया कि तुम अपने बल को हमेशा भूले रहोगे जब कोई तुम्हें आवश्यक होने पर तुम्हारे बल की याद दिलाएगा तब फिर तुममें अपार बल जाग्रत हो जाएगा। इससे वह बालक शांत स्वभाव का हो गया। केसरी नंदन यह बालक आगे चल कर हनुमान नाम से प्रसिद्ध हुआ। सीता जी की खोज के लिए जब कोई समुद्र पार करने का साहस नहीं कर रहा था, तो जामवंत ने हनुमान जी को उनके बल की याद दिलाई थी। तब उन्होंने समुद्र पार कर सीता की खोज की।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App