अज्ञानता दूर करता है परमात्मा

By: May 12th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘भगवान’ पर उनके विचार ः

-गतांक से आगे…

परमात्मा यानी गॉड सर्वव्यापक है। वह सर्वकालिक, सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिशाली है। हम उसकी रचनाएं हैं। यह अंतर्ज्ञान ही है जिसने हमारी गगनचुंबी इमारतें बनाने में मदद की है। एक पक्षी में केवल अंतर्ज्ञान ही होता है तथा इसके पास अन्य कोई मददगार कारक नहीं होता है।

इसलिए इसका घोंसला वैसा ही है जैसा सदा होता है। अपने दिमाग में हमेशा अपना विश्लेषण रखें। हमें सत्य की सहायता लेनी होती है। इसकी सहायता से हमें वह सब हटाना होता है जो हमारे विकास में बाधा बनता है तथा वह सब स्वीकार करना होता है जो हमारे विकास में सहायक बनता है।

हम महान लोगों के जीवन से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं, परंतु रास्ते पर कदम हमें खुद रखना होता है। हम सत्य तक केवल सत्य के माध्यम से ही पहुंच सकते हैं। विक्टर ह्यूगो द्वारा रचित ‘ला मिसरेबल’ में जब पुजारी को पता चलता है कि चोर जरूरतमंद है, तो वह उसे उससे ज्यादा चांदी के सिक्के देता है, जितने उसने चर्च से चुराए थे। चोर समझ जाता है कि यह पुजारी मार्गदर्शन कर सकता है तथा अपनी मौत पर सिक्कों को अपने हाथों में जकड़े हुए वह पूछता है, ‘मास्टर, क्या मैं ठीक हूं?’ दिमाग के साथ जो उपजती है, वह माया अर्थात लगाव होता है।

आध्यात्मिक रूप से वह है जो आत्मा के साथ विकसित होती है-आदमी का सार, और यह है स्वाभाविकता। स्वाभाविकता रचना है। अपने में आदमी भूतकाल, वर्तमान व रचना तथा भविष्य है अर्थात आदमी एक अनंतकाल है तथा इसका अर्थ है भगवान की प्रतिछाया, आध्यात्मिकता सुबोध। उसे केवल अपनी आंतरिक गहराई में देखना होता है। पूजा स्थलों के क्या मतलब हो सकते हैं। आप वहां से क्या प्राप्त करने जा रहे हैं अगर वह आपकी नामंजूरी है। तब, प्रतीक का क्या मतलब होगा। प्रकृति के पास वापस जाओ, उतने ज्यादा जाओ जितनी आपके पास भगवान की प्रतिछाया हो सकती है। सभी समस्याएं स्वनिर्मित हैं।

कुछ लोग जो जागते हैं और उनके प्रति प्रतिक्रियाएं देते हैं, उन्हें हम महान आदमी कहते हैं। कुछ अन्य ऐसे भी हैं जो सत्य का झरोखा प्राप्त करते हैं। उन्होंने कोई शिक्षा कभी नहीं दी होती है और न ही स्वीकार की होती है। वे सादगी से दिव्य प्रज्ञा से तालमेल कर लेते हैं। धार्मिक स्थलों अथवा पूजा स्थलों की एक कीमत होती है कि आप वहां स्वतंत्र होते हैं और आपके पास समस्या के लिए अपना दिमाग एप्लाई करने के लिए समय होता है। यह ध्यानप्रार्थना वास्तविक सिमरन है अर्थात भगवान को याद करना।

भगवान

सिख संसार में भगवान को वाहेगुरु कहा जाता है। वाहेगुरु वाहे अर्थात एक प्रशंसा है, आश्चर्यजनक, प्लस गुरु-एक वह शक्ति जो अज्ञानता को दूर करती है। इस तरह इसका मतलब है, ‘उसका अभिवादन करो जो ज्ञान रखता है।’ आंखें, कान, नाक, जीभ और त्वचा अनुभूति के हमारे उपकरण हैं। अनुभूति के ये उपकरण हमारे ज्ञान गुरु हैं अर्थात ज्ञान के उपकरण हैं।

यह छठा कलात्मक भाव है जो उसकी प्रशस्ति है जो अनुभव किया गया हो। आपने मेरे चित्रों या विचारों को पसंद किया, किसी ने प्रशंसा की तथा आपने मुझे पसंद कर लिया। जिसने आपके दिमाग में मुझे देखने का भाव डाला, वही आपका गुरु है। आपने मेरी पेंटिंग पसंद की या किसी ने प्रशंसा की, इसने आपको मेरे बारे में ज्ञान दिया। तब आपने मुझसे मिलने का निश्चय किया ताकि आप उसे देख सकें जिसने इसे बनाया। यह सत्य को जानने का आपका प्रयास था। वाहेगुरु एक प्रशस्ति हैं। यह अनुभूति का परिणाम है। इसलिए वाहेगुरु शब्द से शारीरिक  अभिव्यक्ति होती है। यह अपने आप में भगवान नहीं है। यह उसका नाम है। हम सर्जक की रचना देखकर वाहेगुरु कहकर उसकी प्रशंसा करते हैं। यह भगवान तक पहुंचने का माध्यम है।

                                -क्रमशः

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