असम के राजा आए थे आनंदपुर साहिब

By: May 2nd, 2018 12:05 am

राजा मेदनी प्रकाश के मन में गुरु जी के लिए आदर और श्रद्धा की भावना रही हो या राजा भीम चंद तथा गुरु के बीच उत्पन्न हुए मनमुटाव को शांत करने की, परंतु गुरु ने राजा सिरमौर के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और वह नाहन चले गए। सावधानी के तौर पर वह अपने साथ प्रशिक्षित सैनिक भी ले गए…

बिलासपुर

इन्ही दिनों असाम के राजा गुरु गोविंद सिंह के दर्शन के लिए आनंदपुर आए और बहुत से उपहारों में गुरु  जी जो ‘प्रसादी’ नाम के एक सफेद रंग का हाथी भेंट कर गए। इस हाथी के गुण बहुत बढ़ा-बढ़ा कर कहे गए, जिसे सुनकर राजा भीम चंद के मन में उसे देखने तथा प्राप्त करने की लालसा बहुत बढ़ गई। अतः वह गुरु जी से मिलने आनंदपुर चले गए। गुरु जी की संपदा तथा हाथी को देखकर ईर्ष्यावश हाथी को प्राप्त करने का यत्न सोचने लगे। इसके थोड़ ही समय के पश्चात राजा के पुत्र का विवाह गढ़वाल के राजा फतेहशाह की पुत्री से होना था।  राजा ने अपने वजीर को गुरु के पास हाथी लेने के लिए भेजा, लेकिन गुरु गोविंद सिंह ने हाथी देने से इनकार कर दिया और कहा कि यदि आज मैं राजा को हाथी देता हूं तो मुझे कल से राज कर भी देना होगा। इससे दोनों में द्वेष बढ़ गया। गुरु ने अपने वजीर नंद चंद को तुरंत सैनिक तैयारी का आदेश दिया। वे स्वयं भी तैयारी करने लगे और खुलेआम शस्त्र और घोड़ों के लिए लोगों से अनुरोध किया। इसी अवधि में सिरमौर के राजा मेदनी प्रकाश ने गुरु गोविंद सिंह को नाहन बुलाया। इसके पीछे राजा मेदनी प्रकाश के मन में गुरु जी के लिए आदर और श्रद्धा की भावना रही हो या राजा भीम चंद तथा गुरु के बीच उत्पन्न हुए मनमुटाव को शांत करने की, परंतु गुरु ने राजा सिरमौर के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और वह नाहन चले गए। सावधानी के तौर पर वह अपने साथ प्रशिक्षित सैनिक भी ले गए। अपने सिरमौर प्रवास के दिनों में गुरु गोविंद सिंह ने पांवटा में एक किला बनवाया और वहीं रहने लगे। उधर, भीम चंद अपने पुत्र अजमेर चंद का विवाह गढ़वाल के राजा फतेहशाह की पुत्री से करवाने के लिए बारात लेकर ‘श्रीनगर’ पहुंचा। उनके साथ कांगड़ा के राजा कृपाल चंद, जसरोटा का राजा सुखदेव चंद, हिंदूर का राजा हरि चंद, डोडवादके राजा पृथ्वी चंद आदि भी थे। गुरु गोविंद सिंह ने भी राजा फतेहशाह की पुत्री के विवाह के लिए उपहार भेजे। जब उन उपहारों को लौटाने के लिए यह कहकर बाध्य किया कि गुरु गोविंद सिंह उसका शत्रु है। इस पर श्रीगुरु जी ने लड़ाई की तैयार कर ली। दो भेदिये बंगाणी की ओर भेज दिए गए। जब राजाओं का दल यमुना और गिरि नदियों के  मध्य बंगाणी के निकट पहुंचा दो भेदियों ने गुरु को आकर उनके आने की सूचना दी। गुरु स्वयं तलवार और धनुषबाण ले घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। पठान सैनिक, जो पहले गुरु की सेवा में थे, राजाओं के साथ आ मिले। घोर युद्ध हुआ और उन्होंने भेदियों का काम तमाम कर दिया। लड़ाई में हिंदूर का राजा हरि चंद हार गया। गुरु की विजय हुई। यह युद्ध 1686 ई. में हुआ माना जाता है। इसके पश्चात गुरु गोविंद सिंह जी  वापस आनंदपुर लौट आए। अब राजा भीम चंद के व्यवहार में भी परिवर्तन आ गया।

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