आकांक्षा और सफलता

By: May 19th, 2018 12:05 am

श्रीराम शर्मा

कई बार सुयोग्य और पुरुषार्थी व्यक्ति परिस्थितिवश असफल होते देखे गए हैं। हर प्रयत्नशील को सफलता मिलनी ही चाहिए, इसकी कोई गारंटी नहीं। शारीरिक श्रम, मानसिक लगन और सांसारिक परिस्थितियों के समन्वय से ही सफलता सामने आती है…

आकांक्षा और सफलता नदी के दो तटों की तरह हैं। जिनके बीच पानी की प्रचंड धारा बहती है। एक तट से दूसरे तक जाने के लिए साहस भरे प्रयास करने पड़ते हैं और आवश्यक साधन जुटाने पड़ते हैं। तैरना सीखने से लेकर नाव का आश्रय लेने तक के अनेक उपाय अपनाने पड़ते हैं और लहरों तथा भंवरों के साथ टकराते हुए धारा की प्रचंडता को पार करना पड़ता है। आकांक्षा को सफलता की स्थिति तक पहुंचाने के लिए भी लंबे, कठिन और जटिल मार्ग को पार करने वाली कष्टों से भरी तप साधना करनी पड़ती है।

प्रगति की आकांक्षाएं करना न तो बुरा है और न अनुचित। साहसी और मनस्वी व्यक्ति की मनःस्थिति ऐसी ही होनी चाहिए कि वह बढ़े-चढ़े सपने गढ़े और उनकी पूर्ति के लिए उत्कृष्ट पुरुषार्थ में निरत रहकर अपनी समर्थ साहसिकता का परिचय दे। सफलता का वरदान ऐसे ही कर्मनिष्ठ व्यक्तियों के लिए सुरक्षित रखा गया है।

प्रगति के रास्ते में कई बाधाएं आती हैं। उसमें पग-पग पर व्यवधान और अवरोध बिछे होते हैं। बड़ी सफलताएं बड़े व्यक्तित्वों के लिए प्रकृति ने सुरक्षित रखी हैं। कायर और कमजोर लोग भी उन्हें प्राप्त करने लगें तो फिर मनुष्यों की उस गरिमा का विकास कैसे होगा, जिसके आधार पर महत्त्वपूर्ण सफलताओं का गौरवास्पद उपहार मिला करता है। अवरोधों का ही दूसरा नाम असफलता है। उनका सृजन इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपनी निष्ठा एवं तत्परता का परिचय दे सके। धैर्य और साहस के साथ ही क्रमिक गति से प्रगति के पथ पर बढ़ाता रहे। इन अवरोधों में कुछ ऐसे भी होते हैं, जो असफलता जैसे भयावह दिखते हैं। इन्हें देखकर न तो ठिठकने की आवश्यकता होती है और न निराश एवं अधीर ही होना चाहिए। बड़े प्रयासों में बीच-बीच में सुधार एवं परिवर्तन भी आवश्यक होते हैं। इन्हीं को असफलता कह सकते हैं। हर असफलता से मनस्वी व्यक्ति सीखते हैं। भूलों को सुधारने की, अधिक हिम्मत, सूझबूझ और तत्परता से काम करने की प्रेरणा देने के लिए ही समस्याएं आती हैं। सरलतापूर्वक सफलता प्राप्त करने वालों की प्रतिभा उतनी नहीं निखरती जितनी कि असफलताओं से लड़ते हुए, व्यवधानों को कुचलते हुए चलने वालों की। सफलता का अपना उतना महत्त्व नहीं, जितना उस मंजिल को पार करते हुए प्रतिभा का विकास करने का है। सफलता की उपलब्धि क्षणिक प्रसन्नता देने के बाद विस्मृति के गर्त में जा गिरती है, फिर उसका कोई महत्त्व नहीं रह जाता। किंतु उस प्रयास में जो श्रमशीलता जगाई गई थी, जागरूकता विकसित की गई थी और धैर्ययुक्त साहसिकता बढ़ाई गई थी उससे उत्पन्न हुई प्रतिभा का लाभ चिरस्थायी ही बना रहेगा।

असफलता न तो लज्जा की बात है और न दुखी होने की। कई बार सुयोग्य और पुरुषार्थी व्यक्ति परिस्थितिवश असफल होते देखे गए हैं। हर प्रयत्नशील को सफलता मिलनी ही चाहिए इसकी कोई गारंटी नहीं। शारीरिक श्रम, मानसिक लगन और सांसारिक परिस्थितियों के समन्वय से ही सफलता सामने आती है। यदि कभी असफल रहना पड़े तो इतना ही सोचना चाहिए कि अभी अधिक परिश्रम और मनोयोग के साथ प्रयत्नरत होने की आवश्यकता है। दोगुने उत्साह और चौगुने साहस को विकसित करने वाली असफलता वीर पुरुषों के लिए वरदान बन जाती है और उसका चिरस्थायी लाभ उन्हें सस्ती और सरल सफलता की अपेक्षा सैकड़ों, हजारों गुना अधिक मिलता है।

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