आप श्रद्धा दें, पितर शक्ति देंगे

By: May 26th, 2018 12:07 am

-गतांक से आगे…

कुछ दिन बीते, पद्म का देहांत हो गया। लीला ने पति का शव सुरक्षित रखवा कर भगवती सरस्वती का ध्यान किया। सरस्वती ने उपस्थित होकर कहा-भद्रे! दुःख न करो, तुम्हारे पति इस समय यहीं हैं, पर वे दूसरी सृष्टि में हैं। उनसे भेंट करने के लिए तुम्हें भी उसी सृष्टि वाले शरीर (मानसिक-कल्पना) में प्रवेश करना चाहिए। लीला ने अपने मन को एकाग्र किया, अपने पति की याद की और उस लोक में प्रवेश किया जिसमें पद्म की अंतर्चेतना विद्यमान थी। लीला ने जाकर जो कुछ दृश्य देखा, उससे बड़ी आश्चर्यचकित हुई। उस समय सम्राट पद्म इस लोक के 16 वर्ष के महाराज थे और एक विस्तृत क्षेत्र में शासन कर रहे थे।

लीला को अपने ही कमरे में इतना बड़ा साम्राज्य और एक ही क्षण के भीतर 16 वर्ष व्यतीत हो गए देखकर बड़ा विस्मय हुआ। भगवती सरस्वती ने समझाया, ‘‘हे लीला! जिस प्रकार केले के तने अंदर एक के बाद एक परतें निकलती चली आती हैं, उसी प्रकार प्रत्येक सृष्टि के भीतर नाना प्रकार के सृष्टि क्रम विद्यमान हैं। इस प्रकार एक के अंदर अनेक सृष्टियों का क्रम चलता है। संसार में व्याप्त चेतना के प्रत्येक परमाणु में जिस प्रकार स्वप्न लोक विद्यमान है, उसी प्रकार जगत में अनंत द्रव्य के अनंत परमाणुओं के भीतर अनेक प्रकार के जीव और उनके जगत विद्यमान हैं।’’

अपने कथन की पुष्टि में एक जगत दिखाने के बाद कहा—देवी तुम्हारे पति की मृत्यु 70 वर्ष की आयु में हुई है, ऐसा तुम मानती हो। इससे पहले तुम्हारे पति एक ब्राह्मण थे और तुम उनकी पत्नी। ब्राह्मण की कुटिया में उसका मरा हुआ शव अभी भी विद्यमान है। यह कहकर भगवती सरस्वती लीला को और भी सूक्ष्म जगत में ले गई। लीला ने वहां अपने पति का मृत शरीर देखा—उनको उस जीवन की स्मृतियां भी याद हो आईं और उससे भी बड़ा आश्चर्य यह हुआ कि जिसे वह 70 वर्ष की आयु समझे हुए थी, वह और इतने जीवन काल में घटित सारी घटनाएं उस कल्प के कुल 7 दिनों के बराबर थीं। लीला ने देखा—उस समय मेरा नाम अरुंधती था—एक दिन एक राजा की सवारी निकली, उसे देखते ही मुझे राजसी भोग भोगने की इच्छा हुई।

उस वासना के फलस्वरूप ही उसने लीला का शरीर प्राप्त किया और राजा पद्म को प्राप्त हुई। इसी समय भगवती सरस्वती की प्रेरणा से राजा पद्म, जो अन्य कल्प में था, उसे फिर से पद्म के रूप में राज्य-भोग की वासना जाग उठी, लीला को उसी समय फिर पूर्ववर्ती भोग की वासना ने प्रेरित किया। फलस्वरूप वह भी अपने व्यक्ति शरीर में आ गई और राजा पद्म भी अपने शव में प्रविष्ट होकर जी उठे। फिर कुछ दिन तक उन्होंने राज्य-भोग भोगे और अंत में मृत्यु को प्राप्त हुए। इस एक आख्यायिका से आत्मा की अकूत सामर्थ्य, देश काल की सापेक्षता, संकल्प की प्रचंड शक्तिमत्ता और जगत की अनंत रूपता रहस्यमयता, सभी पर सुंदर प्रकाश पड़ता है। हजारों वर्षों के उपरांत भी पितर-सत्ताओं का सक्रिय रहना देश-काल की सापेक्षता और संकल्प शक्ति की प्रखरता का परिणाम है। उनका सर्वव्यापी हो सकना और विशिष्ट सामर्थ्य संपन्न होना आत्मसत्ता की अकूत सामर्थ्य पर प्रकाश डालता है तथा इसी जगत् में, हमारे ही इर्द-गिर्द उनकी विद्यमानता जागतिक-संरचना की विलक्षणता को प्रकट करती है। संकल्प-साधना और श्रद्धा-भावना से इन पितर-सत्ताओं से संपर्क साधा जा सकता है और लाभ उठाया जा सकता है।

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