आम आदमी की अनदेखी का नतीजा

By: May 29th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

जनधन योजना से जितनी रकम बैंकों में जमा हुई है, उसकी लगभग तिहाई रकम ही ऋण के रूप में गरीबों को दी गई है। दो-तिहाई रकम जन धन के माध्यम से उद्यमियों को पहुंचा दी गई। खाद्य सबसिडी की कृपा से गरीब को सस्ता अनाज अवश्य उपलब्ध है, परंतु इससे भी आय की मूल समस्या का हल नहीं होता है। वित्त मंत्री उस डाक्टर की तरह हैं, जो मरीज की किडनी निकाल लेता है और उसे बादाम-काजू खाने को देता है। वित्त मंत्री ने गरीब का धंधा चौपट कर दिया है। सस्ता अनाज और मुफ्त शौचालय देने से वह दर्द समाप्त नहीं होता है…

सरकार की मूल आर्थिक फिलासफी सही दिशा में है। आयकर, आयात कर तथा विनिवेश से अधिक रकम अर्जित करके इस रकम का उपयोग हाईवे, रेल तथा एयरपोर्ट के विकास में किया जा रहा है। बुनियादी संरचना में निवेश बढ़ाना अच्छा है। परंतु इससे आम आदमी का भला नहीं होने वाला है। आम आदमी को इन सार्थक नीतियों से लाभ न होने का नतीजा भाजपा ने कर्नाटक में झेला है। कृषि क्षेत्र के लिए वित्त मंत्री ने सड़क और सिंचाई में निवेश बढ़ाया है तथा आसान ऋण उपलब्ध करवाने की बात कही है। सही है कि इस निवेश से कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी। परंतु कृषि उत्पादन तो स्वतंत्रता के बाद से निरंतर बढ़ता ही आया है। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ किसानों द्वारा आत्महत्याएं बढ़ती ही गई हैं। कारण है कि उत्पादन अधिक और दाम कम हों, तो किसान को घाटा होता है, जैसे-मंडी में आलू को 2 रुपए में खरीददार उपलब्ध नहीं होता है। तुलना में उत्पादन कम और दाम अधिक हों, तो किसान को लाभ अधिक होता है, जैसे-मौसम के शुरू में आम के दाम अधिक होते हैं। वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि प्रमुख फसलों का समर्थन मूल्य इस प्रकार निर्धारित किया जाएगा कि लागत से डेढ़ गुना आय किसान को मिले। यहां पेंच लागत की गणना करने में है। लागत में लाभ जोड़कर समर्थन मूल्य पहले ही निर्धारित किए जा रहे थे। आंकड़ों में किसान को लाभ तो हो ही रहा था, तब किसान आत्महत्या और उनके बच्चे पलायन क्यों कर रहे थे? सच यह है कि सरकार द्वारा लागत की सही गणना नहीं की जा रही थी। लागत की गलत गणना पर अब लाभ की दर बढ़ाने से बात नहीं बनती है। सच यह है कि वैश्विक स्तर पर खेती अब घाटे का सौदा हो गई है।

वित्त मंत्री को इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए था। नई सोच की जरूरत थी। सरकार द्वारा वर्तमान में फर्टिलाइजर, फूड एवं सिंचाई पर लगभग 500,000 करोड़ रुपए की सबसिडी हर वर्ष दी जा रही है। इन सबसिडीज को समाप्त करके इस रकम को देश के दस करोड़ किसान परिवारों में 50,000 रुपए प्रति वर्ष की दर से सीधे वितरित करने चाहिए थे। छोटे उद्योगों की भी कमोबेश यही स्थिति है। वित्त मंत्री ने इन्हें ऋण लेने में समर्थन दिया है। परंतु साथ-साथ वित्त मंत्री बड़ी कंपनियों द्वारा आटोमेटिक मशीनों से उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। छोटे उद्योगों का बाजार सिकुड़ रहा है जैसे-बनारस के बुनकरों का बाजार सूरत की बड़ी कपड़ा मिलों ने ले लिया है। ऐसे में अधिक ऋण लेकर छोटे उद्योग गहरे दलदल में धंसते जा रहे हैं। इसी प्रकार मंझले उद्योगों के लिए आयकर की दर को 30 प्रतिशत की दर से घटाकर 25 प्रतिशत करना निष्प्रभावी होगा। आय होगी तभी तो आयकर दिया जाएगा? वित्त मंत्री को स्वीकार करना चाहिए था कि छोटे उद्योगों की उत्पादन लागत ज्यादा आती है। अतः छोटे उद्योगों को जीवित रखना है, तो बड़े उद्योगों पर बढ़ाकर टैक्स लगाना होगा। वित्त मंत्री ने यह कदम नहीं उठाया है, इसलिए छोटे उद्योग मरते जाएंगे। छोटे बिल्डर, बिस्कुट निर्माता, पुस्तक प्रकाशक एवं भड़भूजे-सभी समाप्त होते जा रहे हैं। सिकुड़ते रोजगार इस बात के गवाह हैं कि देश में छोटे उद्योग दबाव में हैं। वित्त मंत्री ने गरीब को राहत देने की तमाम योजनाएं गिनाई हैं, लेकिन गरीब की मूल समस्या रोजगार अथवा धंधे की है, जिसे मेक इन इंडिया का ग्रहण लग गया है। जैसे-उज्ज्वला के अंतर्गत गरीब को मुफ्त गैस सिलेंडर दिया गया है। साथ-साथ गैस का दाम बढ़ा दिया गया है।

स्वयं सहायता समूहों को ऋण उपलब्ध करवाया गया है, परंतु इस ऋण का उपयोग उत्पादन के कार्यों में कम ही हो रहा है, चूंकि उत्पादन मेक इन इंडिया की भेंट चढ़ गया है। जनधन योजना से जितनी रकम बैंकों में जमा हुई है, उसकी लगभग तिहाई रकम ही ऋण के रूप में गरीबों को दी गई है। दो-तिहाई रकम जन धन के माध्यम से उद्यमियों को पहुंचा दी गई। खाद्य सबसिडी की कृपा से गरीब को सस्ता अनाज अवश्य उपलब्ध है, परंतु इससे भी आय की मूल समस्या का हल नहीं होता है। वित्त मंत्री उस डाक्टर की तरह हैं, जो मरीज की किडनी निकाल लेता है और उसे बादाम-काजू खाने को देता है। वित्त मंत्री ने गरीब का धंधा चौपट कर दिया है। सस्ता अनाज और मुफ्त शौचालय देने से वह दर्द समाप्त नहीं होता है। फिर भी वित्त मंत्री ने ग्रामीण क्षेत्रों में ब्राडबैंड और वाई फाई का विस्तार करके सही कदम उठाया है। इस सुविधा से आने वाले समय में हमारे युवा कुछ धंधा कर सकते हैं, परंतु यह कदम बहुत छोटा है। जरूरत थी कि आने वाले समय में जिन क्षेत्रों में रोजगार बन सकते हैं उन्हें वित्त मंत्री चिन्हित करते, जैसे-विभिन्न भाषाओं के बीच अनुवाद, मोबाइल एप्स का निर्माण, विदेशी छात्रों को आनलाइन ट्यूशन देना इत्यादि। ऐसे क्षेत्रों को बढ़ाने की योजनाएं बनानी चाहिए थी। अंतिम विषय स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं का है। इन क्षेत्रों में कार्यरत सरकारी कर्मियों की कार्य करने की तनिक भी रुचि नहीं है, जैसे-स्कूल में बायोमीट्रिक हाजिरी करने से गुरुजी की पढ़ाने में रुचि नहीं बढ़ती है। गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा को सरकार के हाथ में नहीं देना चाहिए। सरकारी डाक्टरों एवं टीचरों ने कल्याणकारी माफिया का रूप धारण कर लिया है। एक झटके में इस पूरे तंत्र को साफ करके उपलब्ध रकम को लाभार्थियों में बाउचर के माध्यम से सीधे वितरित कर देना चाहिए। वर्तमान बजट का सार्थक पक्ष बुनियादी संरचना में बढ़ा निवेश है, परंतु आम आदमी को तनिक भी राहत नहीं मिल रही है। फर्टीलाइजर और डीजल के बढ़ते दाम का संज्ञान लें, तो कृषि घाटे का सौदा होती जा रही है। छोटे उद्योगों का बाजार सिकुड़ता जा रहा है। सरकारी डाक्टर एवं टीचर मौज कर रहे हैं। आम आदमी बैरंग रह गया है। कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी उभर कर आई है, परंतु भाजपा को केवल 36 प्रतिशत वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस को 38 प्रतिशत। भाजपा के वोट का हिस्सा कम होता जाना इस बात को दर्शाता है कि आम आदमी खुश नहीं है। प्रतीत होता है कि जिस प्रकार 2004 में अटल विहारी वाजपेयी ने अच्छी सरकार चलाने के बावजूद हार खाई थी, उसी प्रकार की परिस्थिति पुनः बन रही है। भाजपा को चेतना चाहिए। शहरों व उच्च वर्ग की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका है। बुलेट ट्रेन चलनी चाहिए, परंतु हाइवे, एयरपोर्ट और बुलेट ट्रेन से आम आदमी को सरोकार कम ही है। आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए भाजपा को निम्न पालिसी तत्काल लागू करनी चाहिए। कृषि सबसिडी किसान परिवार को सीधे वितरित कर देनी चाहिए। मेक इन इंडिया को उन क्षेत्रों से बाहर करना चाहिए जिनमें हमारे छोटे उद्यम फल-फूल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे शहरों में मुफ्त वाई-फाई उपलब्ध कराना चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ्य के सरकारी तंत्र को समाप्त कर रकम को सीधे परिवार में वितरित करना चाहिए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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