आर्थिक खतरे को नकारती हिमाचल सरकार

By: May 26th, 2018 12:05 am

हेम राज

लेखक, बकाणी चंबा से हैं

प्रदेश का राजकोषीय घाटा वर्ष 2016-17 में बढ़कर 2948 करोड़ हो गया है। यह घाटा वर्ष 2015-16 में 2165 करोड़ था। यानी इसमें एक वित्तीय वर्ष में 783 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2016-17 में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज बढ़कर 65 हजार 444 रुपए हो गया है, जो वर्ष 2012-13 में 43 हजार 726 रुपए था…

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था कृषि, बागबानी, पर्यटन व लघु और सूक्ष्म उद्योगों के साथ केंद्रीय अनुदान पर निर्भर है। इन्हीं पहियों से हिमाचल के विकास की गाड़ी चलती है। केंद्रीय अनुदान को छोड़ प्रदेश अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र इतने सक्षम नहीं हैं कि हिमाचल समृद्धशाली व आत्मनिर्भर बन सकें। इसी कारण विकास के लिए धन की आवश्यकता के लिए राज्य सरकार ऋण पर निरंतर निर्भर बनती जा रही है। पिछले पांच वर्षों से हिमाचल निरंतर वित्तीय अनुशासनहीनता का शिकार रहा है, क्योंकि तत्कालीन सरकार ने वित्तीय अनुशासन पर ध्यान देने की जहमत न उठाई। इसी कारण हिमाचल निरंतर ऋण के जाल में जकड़ता चला गया। वर्तमान समय में यह ऋण 50 हजार करोड़ पहुंच गया है। हिमाचल निरंतर आर्थिक अकाल की ओर बढ़ता जा रहा है। भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक यानी कैग के बार-बार चेताने के बाद भी आर्थिक मोर्चे पर हिमाचल के लिए खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है। राज्य का राजकोषीय घाटा बेकाबू है और प्रति व्यक्ति कर्ज पिछले पांच साल में दोगुना हो गया है। विधानसभा सत्र के आखिरी दिन कैग की रिपोर्ट विधानसभा में रखी गई।

कैग रिपोर्ट में खराब वित्तीय प्रबंधन के कई खुलासे हुए हैं। यह रिपोर्ट वित्त वर्ष 2016-17 की थी। रिपोर्ट बताती है कि पांच साल के अंतराल में हिमाचल में प्रति व्यक्ति कर्ज 50 फीसदी तक बढ़ गया है। वेतन, पेंशन और कर्ज चुकाने के बढ़ते खर्च को देखते हुए वित्तीय संतुलन खतरे में है। प्रदेश का राजकोषीय घाटा वर्ष 2016-17 में बढ़कर 2948 करोड़ हो गया है। यह घाटा वर्ष 2015-16 में 2165 करोड़ था। यानी इसमें एक वित्तीय वर्ष में 783 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2016-17 में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज बढ़कर 65 हजार 444 रुपए हो गया है। जो वर्ष 2012-13 में 43 हजार 726 रुपए था। आगामी पांच साल में लिए गए ऋण के दस हजार करोड़ चुकाने होंगे। कर्ज अदायगी व ब्याज अदायगी के लिए आने वाले समय में और ऋण लेना पड़ेगा। इससे हिमाचल कर्ज के जाल में बुरी तरह से घिर जाएगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वित्तीय स्थिति किस कद्र बेकाबू होती जा रही है। वर्तमान सरकार भी पिछली सरकार का अनुसरण करते हुए तीन महीनों में 1000 करोड़ रुपए का ऋण ले चुकी है।

यानी कि सरकार कोई भी आए ऋण लेने की परिपाटी नहीं छोड़ेंगी। माना कि ऋण लेना हिमाचल सरकार की मजबूरी है, परंतु आय के स्रोतों को विकसित करना भी सरकार की मजबूरी होनी चाहिए। यह बड़ी विडंबना है कि चुनाव के समय प्रत्येक राजनीतिक दल बड़ी ईमानदारी के साथ वादे करते हैं, परंतु चुनाव के पश्चात सबसे पहले राजनीतिक दल ही चुनावी वादे भूलते हैं और सत्ता सुख में रम जाते हैं। सत्ता सुख की होड़ में कानूनों को तोड़-मरोड़ कर अपने पक्ष में किया जाता है, जो कि लोकतंत्र का गला घोटने के समान है। अगर विपक्ष किसी मुद्दे पर सत्तापक्ष को चेताए, तो यह कहकर उनको चुप करवा दिया जाता है कि आपके कालखंड में भी ऐसा हुआ था। ये बातें बार-बार विधानसभा के अंदर और बाहर सुनने को मिलती हैं।  एक दूसरे पर आरोप लगाने का सिलसिला कभी नहीं थमता है। सत्तापक्ष को यह कार्य संस्कृति बदलनी होगी।

हिमाचल सरकार को कर्ज के पिछले कड़वे सत्य को स्वीकारते हुए निःस्वार्थ व निष्काम भाव से कार्य करने की सख्त जरूरत है, क्योंकि वर्तमान सरकार आर्थिक खतरे को नकारते हुए मुख्य सचेतक और उपमुख्यसचेतक जैसे अनुत्पादक व अनुपयोगी पदों को स्थापित कर रही है, जो कि ऋण में जकड़े हिमाचल पर निरर्थक भार है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार 23 बोर्ड और निगमों में 11 बोर्ड घाटे में चल रहे हैं। दस बोर्डों ने अपने लाभांश की जानकारी नहीं दी है। सिर्फ दो बोर्ड ही लाभांश कमा रहे हैं। इन दो बोर्डों ने भी मात्र 2016-17 में 24 करोड़ कमाए हैं।  सरकार धीरे-धीरे इन बोर्डों और निगमों में सुधार के बजाय राजनीतिक नियुक्तियां करने में लगी है। इससे जाहिर होता है कि प्रदेश सरकार राज्य के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कितनी वचनबद्ध है। सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, परंतु स्थापित व्यवस्था तो निरंतर चलती रहती है, इसमें कभी बदलाव लाने की कोशिश नहीं की जाती है। इसलिए स्थापित व्यवस्था को सशक्त व सुदृढ़ बनाना प्रचलित सरकार का कर्त्तव्य होता है। हिमाचल सरकार तमाम दुराग्रहों को पीछे छोड़ते हुए विराट बहुमत के सम्मान पर कैग की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए हिमाचल को आर्थिक बदहाली से निकालकर समृद्ध हिमाचल बनाए। इसी विश्वास के साथ प्रदेश की जनता ने भाजपा को विराट बहुमत दिया है और तत्कालीन सरकार को नकारा है। देवभूमि हिमाचल में प्राकृतिक व मानव संसाधन विद्यमान हैं, जो प्रदेश को आर्थिक बदहाली से बाहर निकालने में सक्षम हैं। बशर्ते इसके लिए कुशल नीति नियंता व राजनीतिक दल बिना किसी दुराग्रह से अपना कर्त्तव्य निभाएं।

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