आर्य धीरे-धीरे सारे भारत में फैल गए

By: May 23rd, 2018 12:05 am

द्रविड़ अभी पूर्ण रूप से अपनी शक्ति सुदृढ़ नहीं कर पाए थे कि एक और जाति ने अपने पांव भारत भूमि पर रखे। इस जाति को आर्य कहा जाता है। धीरे-धीरे ये लोग सारे देश में फैल गए और सभी जातियों पर अपना प्रभाव जमा लिया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इसी तरह ये जातियां हिमाचल प्रदेश में आईं और गईं…

इसके बाद हिमालय के दक्षिण पठार की तरफ से किरात जाति के लोगों का आगमन हुआ। किरातों के साथ ही लगभग 5500 वर्ष ईसा पूर्व एक और दूसरी जाति पश्चिम की ओर से इस देश में आई, जिसे द्रविड़ कहा जाता है। आज भी द्रविड़ भाषा शायद इन्हीं लोगों की देन है। बड़े नगरों का निर्माण भी शायद द्रविड़ जाति ने ही शुरू किया। द्रविड़ अभी पूर्ण रूप से अपनी शक्ति सुदृढ़ नहीं कर पाए थे कि एक और जाति ने अपने पांव भारत भूमि पर रखे। इस जाति को आर्य कहा जाता है। धीरे-धीरे ये लोग सारे देश में फैल गए और सभी जातियांे पर अपना प्रभाव जमा लिया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इसी तरह ये जातियां हिमाचल प्रदेश में आईं और गईं। हिमाचल प्रदेश अनेक जातियांे का मिश्रण है। कोल, किन्नर, किरात, खश, नाग आदि वे जातियां हैं जो हिमाचल में आर्यों से पूर्व निवास करती थीं। आर्यों के बाद यहां पर शक, हूण, गुज्जर, भोट, ब्राह्मण, राजपूत, क्षत्रिय, वैश्य, घिरथ, कोली तथा सूद आदि जातियां अस्तित्व में आईं। आर्यों के बाद की जातियां तो आज हिमाचल का वर्तमान हैं। मगर आर्यों से पूर्व की जाति; के नाम जो प्रायः नष्ट हो चुकी हैं, आज भी वैसे ही प्रचलित हैं। यहां निवास करने वाली प्रमुख जातियां निम्न प्रकार हैं-

कोल : अधिकतर इतिहासकार इस जाति को निषादों की उपजाति मानते हैं। कोल जाति के लोग उत्तर-पूर्वी घाटियांे से भारत में आए थे और पश्चिम हिमालय मंे फैल गए। कृषि और पशुपालन से ही ये लोग अपनी आजीविका कमाते थे। कुछेक शिल्प में भी रुखि लेते थे। ये लोग झुंड बनाकर रहते थे, जिसके परिणामस्वरूप गांव आबाद होते रहे। कुछेक विद्वान ‘शम्बर’ को भी कोली जाति से संबंधित बताते हैं, क्यांेकि ऋग्वेद में उसे ‘कोलितर’ कह कर पुकारा गया है। निरमंड के  कोली यहां के प्राचीनतम निवासी हैं, ऐसा इतिहासकारों का मत है, क्यांेकि उनका संबंध सीधा आस्ट्रेलायड कोल आबादी से जोड़ा जाता है। संभवतः पश्चिमी हिमालय के आज के कोली, हाली, डूम, चनाल, रेहड़, बढ़ई (बाढ़ी) लुहार, तुरी आदि इसी जाति से संबंध रखते हैं। अनुमान है कि हिंदू धर्म और संस्कृति में जो बातें न आर्यों की हैं और न द्रविड़ों की, वे शायद इसी जाति की हैं। जैसे हिंदू धर्म में नाग, गणेश इत्यादि पशु देवता इसी प्राचीन जाति की देन हैं। किन्नर- किरात : कोल जाति के बाद किन्नर- किरात जाति ने प्रवेश किया। इन्हों ने तिब्ब्त के मार्ग से भारत में प्रवेश किया। कुछ एक इतिहासकारों का मत है कि ये लोग पूर्व की ओर से ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे – किनारे यहां आए। भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वान किरातों को तिब्बती-वर्मा शब्द का पर्याय मानते हैं। इनके अनुसार किरात द्रविड़ों और आर्यों के पश्चात भारत में आए।

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